आकाश में सभी चीजें है, बनती है, खोती है, रहती है, मिट जाती है, आकाश को उनका पता भी नहीं चलता और आकाश में सारे रंग प्रगट होते हैं, लेकिन आकाश बिना रंग के रह जाता है। अंधेरा आता है, सुबह होती है, प्रकाश आता है, लेकिन आकाश न अंधेरे से प्रभावित होता है और ना ही प्रकाश से। आकाश अस्पर्शित रह जाता है, उससे जो भी घटित होता है, उसका कोई निशान आकाश पर नहीं रहता। इसलिए आकाश में अतिरिक्त और निर्लिप्तता का कोई उदाहरण नहीं है।
आकाश का अर्थ है खाली जगह। आप बैठे हैं, आपके चारों तरफ आकाश है। आपके भीतर भी आकाश है। एक बीज फूट रहा है, आकाश में जन्म ले रहा है। कल वृक्ष बनेगा, मुरझायेगा, वृद्ध होगा, जीर्ण-जर्जर होगा, आकाश में, खो जाएगा। लेकिन आकाश पर कोई रूप-रेखा नहीं रहती। आकाश को पता भी नहीं चलेगा। पानी पर हम हाथ से रेखा खीचें तो बनती है, बनते ही मिट जाती है। पत्थर पर रेखा खीचें तो बनी रह जाती है। आकाश में रेखा खीचें तो खिंचती ही नहीं। आकाश पर कुछ भी अंकित नहीं होता।
आप जब आकाश की तरफ देखते है, तो आकाश नीला दिखाई देता है तो आप सोचते है कि आकाश का रंग नीला है, तो आपने गलती कर दी। आकाश का कोई रंग नहीं है। नीला तुमको दिखाई पड़ता है। आकाश का कोई रंग नहीं है। तुमको नीला दिखाई देने का कारण हवायें है। बीच में हवाओं की पर्तें हैं दो सौ मील तक। सूर्य की किरणें इन दो सौ मील तक हवाओं में प्रवेश करके भ्रांति पैदा करती हैं नीलिमा की। इसलिए जैसे ही इन दो सौ मील के पार उठ जाता है। अंतरिक्ष में यात्री, आकाश रंगहीन हो जाता है, कलरलेस हो जाता है।
आकाश में कोई रंग नहीं है, लेकिन हमारी आंख आकाश में रंग डाल देती है। उसे भी नीला कर देती है। अस्तित्व में भी कोई रंग नहीं है। लेकिन हमारे विचार और हमारी देखने की दृष्टि उसमें भी रंग डाल देती है। हम वही देख लेते हैं जो हम देख सकते हैं, वो नहीं देख पाते जो है। माध्यम से जब भी कुछ देखा जाएगा – किसी भी माध्यम से तो माध्यम भी विकार पैदा करेगा। तो वह तो निर्लेप आकाश जैसा सिद्धांत है, उसे तो तभी देखा जा सकता है, जब देखने वाले ने अपने देखने के सब साधन छोड़ दिये- सब साधन छोड़ दिये, तुम कान का उपयोग नहीं करते सुनने के लिए, अपनी आंख का प्रयोग नहीं करते हो देखने के लिए, अपने हाथ का उपयोग नहीं करते छूने के लिये। हम जिस चीज का उपयोग करते हैं, वही प्रगाढ़ हो जाती है, प्रखर हो जाती है, तेजस्वी हो जाती है। अगर तुम बैठे रहे तो पैर चलने की क्षमता खो देते हैं, अगर तुम आंखें बंद कर रहे हो तो कुछ ही दिनों में आंखें देखना बंद कर देती है।
इंद्रिय-निग्रह का पूरा नियंत्रण रहे, थोड़ी सी भी व्यर्थ नहीं हो शक्ति, तो तुम सात दिन में इतनी शक्ति को इकट्टा कर लोगें कि तुम उसका उपयोग कर और उस शक्ति के माध्यम से तुम्हें अंर्तयात्रा पर जा सकते हो। भोजन कम-से-कम लो। क्योंकि भोजन को पचाने में हमारी अधिकतम ऊर्जा व्यय होती है। इतना भोजन लें कि तुम्हें पता नहीं चले कि तुमने भोजन किया है। जब भी भोजन पचता है तो मस्तिष्क की सारी ऊर्जा पेट पर चली जाती है। इसीलिए तो भोजन के बाद नींद आती है, क्योंकि मस्तिष्क की ऊर्जा नीचे उतर जाती है और तुम्हें तो ध्यान की प्रक्रिया में जाना है। तो सारी ऊर्जा को मस्तिष्क की तरफ ले जाना है। वहीं से रास्ता खुलेगा, इसीलिए कम से कम भोजन करें। ध्यान से जो गुजरेगा पूरे पागलपन से उसकी जिन्दगी में पागलपन कभी नहीं आ सकता और जो ध्यान से पागलपन से गुजरने की हिम्मत नहीं जुटाता वह कभी भी पागल हो सकता है।
ध्यान की गहराई में एक दिन ऐसा आ जाता है, जब बिना छुए स्पर्श होता है और बिना आंख के दिखाई पड़ता है और बिना कान के स्वर सुनाई पड़ने लगते हैं। जो बिना कान के सुनाई पड़ता है, उसे अनाहत कहा गया है। जो बिना आंख के दिखाई पड़ता है उसे अगोचर कहा गया है। जो बिना हाथ के जिसका स्पर्श हो जाता है, उसे अमूर्त कहा गया है। लेकिन उस अनुभव के पहले स्वयं भी आकाश जैसा निर्मल और निर्लेप हो जाना जरूरी है। सारी इंद्रियां हट जायें बीच से, तो तुम्हारे अन्दर जो चेतना का आकाश है वह मुक्त हो जाता है और बाहर के आकाश से एकाकार हो जाता है।
अनुभव सदा विपरीत का होता है। अगर मुझे दुख का अनुभव होता है, तो उसका अर्थ ही यही है कि मेरे अन्दर कुछ है, जिसका अनुभव दुख नहीं है। नहीं तो अनुभव नहीं होता। अगर मेरे भीतर जो है, उसका स्वभाव भी दुख है, तो बाहर का दुख आता और मिल जाता और एक हो जाता। मैं और धनी हो जाता। मैं और संपत्तिशाली हो जाता। पीड़ा, परेशानी, चिंता नहीं होती। अंधेरे में थोड़ा अंधेरा और आकर मिल जाता, तो कौन सी खलल पड़ती! जहर में थोड़ा जहर और आ जाता है तो क्या जहर की मात्रा बढ़ने से कुछ परेशानी होती!
अमृत की तरंगों से युक्त। यह जो जीवन की आन्तरिक धारा है, गत्यात्मक है, भरे हुए तालाब की तरह नहीं है, जिसमें पानी भरा है। एक बहती हुई नदी की तरह है- उफनती, दौड़ती, भागती, जीवंत। ध्यान रहे, सरोवर अपने आप में बंद और कैद होता है और नदी सागर की खोज पर होती है। सागर की तरफ जो दौड़ है, वही नदी का रूप है। उस सागर की तरफ जो खिंचाव है, कशिश है, वही तो नदी का जीवन है। अमृत की तरंगों से भरी हुई नदी जैसी जिसकी चेतना है, जो निरन्तर गतिमान है, नदी जब सागर में गिरती है तो उसकी खोज समाप्त नहीं हो जाती। लेकिन नदी तो सागर में और गहरे, और गहरे में डूबती ही चली जाती है। तट छूट जाते हैं नदी की सीमा मिट जाती है, लेकिन सागर की गहराईयों का कोई अंत नहीं है। तुम डरते हो जीवन के खोने से, क्योंकि जीवन से बड़ा तुम्हारे हाथ में कुछ भी नहीं है। और तुम तब तक डरते ही रहोगे जब तक जीवन से बड़ा कुछ तुम्हारे हाथ में न आ जाए। परमात्मा हाथ में आ जायें, प्रेम हाथ में जा जायें, प्रार्थना आ जायें, ध्यान आ जाये, समाधि आ जाये, तब तुम जीवन को ऐसे दे दोगे जैसे कुछ मूल्य ही न था। तुमने जीवन का सार पा लिया। जीवन के अवसर से जो मिलने वाली सुगंध तुम्हें मिल गई। अब तुम जीवन को दे सकते हो। अब कोई तुमसे जीवन छीनता हो तो तुम हंसते हुये मर सकते हो। अब तुम्हें कोई डरा नहीं सकेगा। और जो जीवन छोड़ सकता है उसे तुम कैसे डराओगे? क्योंकि डर तो मूलतः मृत्यु का डर है।
वर्ष में सर्वश्रेष्ठ पर्व में दीपावली और होली ही प्रत्येक सांसारिक व्यक्ति के लिये महापर्व कहलाती है। इन पर्वों के माध्यम से जीवन को उल्लास और रंगों से सरोबार किया जाता है। ऐसा ही महोत्सव कैलाश सिद्धाश्रम में 04-05 मार्च को होली महापर्व पर अष्ट सिद्धि अणिमा-महिमा, गरिमा, लधिमा, ईशित्व, वशीत्व, प्राप्ति, प्राकाम्य और नव निधि पद्मावती, महान्, खैरब, कुण्डल, नील, शंख, कच्छप, मुकुण्ड, मकर से युक्त शक्तिपात दीक्षायें जीवन को महावीरमय बनाने हेतु प्रदान की जायेगी।
आद्या शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार मठ में से अपने आप में पूर्ण चैतन्य युक्त एवं सिद्धिप्रद रामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग। जो भी इस रामेश्वरम् मंदिर में दर्शन, अर्चन, साधना, पूजा करता है वह अपने जीवन के युद्ध में, जितने प्रकार की भी लड़ाइयां उसे इस समाज से और अपने-आप से लड़नी है, उन सब में विजय श्री प्राप्त होती ही है, क्योंकि भगवान रामेश्वरम् शिव का ही एक चैतन्यमयी स्वरूप है, उनकी उपासना व साधना करना तो जीवन का परम सौभाग्य है। अपने जीवन के मानसिक, शारीरिक और आर्थिक सभी कष्टों से मुक्ति पाकर जीवन में शांति, मुक्ति और मोक्ष प्राप्त करना, जिसे पाने के लिए वह हर क्षण बेचैन रहता है, जिसे पाने के लिए वह व्याकुल और अतृप्त रहता है और वही सुख, वही आनन्द उसे रामेश्वरम् में साधना द्वारा प्राप्त हो जाता है, इसके फलस्वरूप कई-कई जन्मों के पापों के शमन के साथ-साथ भक्त शिव स्वरूप बनने की ओर अग्रसर होता है इसके प्रभाव से जीवन में सभी रूपों में धर्म, अर्थ, काम की भौतिकता की पूर्णता के साथ साधनात्मक उच्चता को प्राप्त होता है। सद्गुरुदेव स्वामी सच्चिदानन्द जी महाराज के पूर्ण आशीर्वाद से ऐसे दिव्य पवित्र स्थान पर नूतन विक्रम संवत् के प्रारम्भ में धन प्रदाता रामेश्वरम् शिव-गौरी ज्योतिर्लिंग साधना महोत्सव 14-15 मार्च को सत्संग भवन, गोस्वामी मठ-2, सीता तीर्थ के पास, रामेश्वरम् में सम्पन्न होगा। आप सभी यहां की पावनतम भूमि पर सद्गुरुदेव का सानिध्य प्राप्त कर अपने जीवन को सत् प्रकाश और ज्योतिर्मय युक्त बना सकेंगे।
वर्ष का सर्वप्रथम श्रेष्ठतम स्वरूप में सूर्य ग्रहण 20 मार्च को भूमंडल पर दृष्टि गोचर होगा इस हेतु नारायण धाम कैलाश सिद्धाश्रम दिल्ली में धन वैभव तेजस्विता प्राप्ति और शत्रु मर्दन साधना के साथ-साथ स्व रूद्राभिषेक और हवन भी सम्पन्न कराया जायेगा। इसके साथ ही विक्रम संवत् 2072 नूतन वर्ष के रूप में प्रारम्भ होगा जिससे कि आपके जीवन में मलिनता पूर्ण क्रियायें समाप्त हो और जीवन जाज्वल्यमान कामनापूर्ति हो सके। चैत्रिय नवरात्रि में नव दुर्गा अष्ट सिद्धि दीक्षा महोत्सव दिल्ली में 24-25-26-27 मार्च में प्रत्येक साधक साधिका द्वारा व्यक्तिगत रूप से हवन और रूद्राभिषेक सम्पन्न कराया जायेगा। जिससे की नव वर्ष के प्रारम्भ से ही साधक हर स्वरूप में दुर्गा की शक्तियों को आत्मसात कर सके और जीवन में हर तरह की श्रेष्ठता से युक्त हो सके।
महादवे की नगरी काशी जो शिवरूपी सद्गुरू की तपोभूमि भी है, जिस धरा की रज के कण-कण में चतैन्यता व्याप्त है। ऐसे दिव्य भूमि पर प्रत्येक शिष्य को पूर्ण गुरूमय होने के लिए परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानन्द जी महाराज की तपोभूमि काशी विश्वनाथ की नगरी वाराणसी में 19-20-21 अप्रैल को ‘सद्गुरू जन्मोत्सव साधना शिविर’ सम्पन्न होगा। जिससे आप ज्योतिर्मय स्वरूप गंगा के समान स्वच्छ, निमर्ल, पवित्र गृहस्थ जीवन की प्राप्ति के साथ श्रेष्ठमय जीवन का निर्माण कर धर्म, अर्थ, सौन्दर्य, काम शक्ति से युक्त आरोग्यमय पूर्ण आयु की प्राप्ति कर सकें, इस हेतु काशी विश्वनाथ प्रणीत महामृत्युजंय रूद्राभिषेक आरै अक्षय तृतीया के पावन अवसर पर तारा अक्षय धन लक्ष्मी महागौरी शिव-शक्ति युक्त दीक्षायें प्रदान की जाएगी। साथ ही जीवन के सभी दुष्ट शक्तियों के शमन आरै पापों के नाश हेतु काल भैरव शक्ति मंत्रों से युक्त हवन की व्यवस्था की गयी है। जीवन को अक्षय सुखों से युक्त बनाने हेतु अक्षय तृतीया के दिव्य अवसर पर सद्गुरू जन्मोत्सव आपके जीवन में निश्चिन्त रूप से श्रेष्ठता ला सकेगा।
प्राप्त करना अनिवार्य है गुरु दीक्षा किसी भी साधना को करने या किसी अन्य दीक्षा लेने से पहले पूज्य गुरुदेव से। कृपया संपर्क करें कैलाश सिद्धाश्रम, जोधपुर पूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन से संपन्न कर सकते हैं - ईमेल , Whatsapp, फ़ोन or सन्देश भेजे अभिषेक-ऊर्जावान और मंत्र-पवित्र साधना सामग्री और आगे मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए,