इस अंक से हम एक विशेष लेख की शुरुआत कर रहे हैं, जो हमारे बच्चों और युवा पीढ़ी को भारतीय संस्कृति, आचरण, व्यवहार, पूजा-पाठ, गुरू-शिष्य की परंपरा से अवगत करायें। अच्छे संस्कारों से ही लोगों का व्यक्तित्व निखरता है। इस स्तंभ में कई रोचक कहानियां, सीखें और ज्ञान से भरी चीजों को प्रस्तुत किया जाएगा।
यह बेशक पढ़े व साथ ही आपके बच्चों को भी पढ़े, आपके विचार व आप किस तरह के लेख चाहते हैं, यह बेशक अपना मत बोलें।
इस बार का लेख चरण स्पर्श व प्रणाम पर है। बड़े व जलाशय को प्रणाम करना, पैर छूना- हमारी संस्कृति में श्रेष्ठ माना जाता है। हमारे गुरूजन को प्रणाम करने की प्रथा सदा से चल रही है।
यह भारतीय संस्कृति में ग्रहण, सम्मान व्यक्त करने का तरीका है।
प्रातः काल उठने के बाद बच्चों को घर के बड़े, माता-पिता व अपने गुरु, भगवान के चरण छूना हुआ। पैर छूते समय दोनो हाथो से या दायां (सही) हाथ से पैरों के अंगूठों को छूकर अर्शिवाद प्राप्त करना चाहिए।
यदि साष्टांग प्रणाम नमस्कार कर के उनका आर्शीवाद लिया जाए तो सर्वोत्तम होता है। यह एक योग आसन की क्रिया का हिस्सा है, पैर पकड़ने से कमर का व्यायाम होता है और यह कमर व पैरों को नेविगेट करता है।
ऐसी मान्यता है कि जब हम अपने गुरु, माता-पिता, व आदरणीय जन के पैर छूकर उन्हें अर्शीवाद प्राप्त करते हैं, तो इससे अच्छे गुण व हमारे बच्चों के विचार में भी परिर्वतन होता है। ही साथ हमारी बुद्धि की भी समानताएं प्रखर हो जाती हैं। साथ ही साथ एक सकारात्मक (सकारात्मक) विद्युत संचार होता है।
प्राप्त करना अनिवार्य है गुरु दीक्षा किसी भी साधना को करने या किसी अन्य दीक्षा लेने से पहले पूज्य गुरुदेव से। कृपया संपर्क करें कैलाश सिद्धाश्रम, जोधपुर पूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन से संपन्न कर सकते हैं - ईमेल , Whatsapp, फ़ोन or सन्देश भेजे अभिषेक-ऊर्जावान और मंत्र-पवित्र साधना सामग्री और आगे मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए,