बच्चो कि बहुत ज्यादा इंटरनेट पर हो गया है, इसी वजह से खुद में रचनात्मकता की कमी होती है। हर चीज के लिए इंटरनेट पर जा के चेक करता है, काफ़ी समय में गवा देता है। मोबाइल और इंटरनेट हमारी सुविधा और आराम के लिए है, परंतु आज के यंगक्लास पूर्ण रूप से इस पर स्थायी है। इसलिए इसी कारण से बच्चो की लेखन कला और बोल कौशल कमजोर हो गया है, साथ ही बच्चा सही रूप से शब्दों का उच्चारण नहीं कर पाता है। अंग्रेजी के 26 अक्षर होते हैं और हिन्दी में 52 स्वर और व्यंजन वर्ण होते हैं जिनको नियमित रूप से बोलने से बच्चेचो का उच्चारण सही होता है व पूर्ण रूप से जीभ का विकास होता है।
तो हमें क्या करना चाहिए जिससे बच्चों का उच्चारण सही हो साथ ही उनमें से पढ़ने व वाक-चातुर्यता का विकास भी हो सकता है?
इस समस्या को जटिल होने से पूर्व हम मुश्किल तो सरलता से समाधान कर सकते हैं और इसके लिए न तो मैक्सिमा, डॉक्टरों या वाक् चिकित्सक की स्थैतिकता हैं। हमें तो बस बच्चों को रोज एक पृष्ठ (पेज) हिंदी का या फिर कोई भी भगवान की चालीसा देख, अंगुलि धारण कर जोर से बोल के पढ़ना है। ऐसा करने से बच्चे का आकर्षण तो सही होता है साथ ही उन्हों हिन्दी और संस्कृत के शब्दों के व्याकरण (व्याकरण) समझ की योगयता भी विकसित होती है।
इसी के साथ बच्चों को प्रेरित किया (प्रेरित करना) करे कि वे अपने पूरे दिन का विवरण या फिर अपनी इचछाओं को एक पृष्ठ पर हिंदी में लिखें, जिससे उनकी लिपियों को व्यक्त करने की भावना व क्षमता का विकास होता है। बच्चे के अगर नित्य अच्छा है तो कुछ व्यवहारिक विकास होगा और साथ ही वे पूर्ण रूप से आश्वस्त बनेंगे जो उनका जीवन भर बना रहेगा।
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