सदा प्रिये कहने वाली लिपी-मीठी बात कहने वाले लोग तो सरलता से मिल सकते हैं, परन्तु जो सुनने में पहले हो परिणाम में हितकर हो ऐसी बात कहने वाले सिर्फ सद्गुरु ही होते हैं।
जिस साधक की भौतिक अभिलाषाएं समाप्त नहीं होती, उसके बिना रहने से, बाल बढ़ाने से, राख लपेटने से, भगवा धारण करने से, उपवास करने से, मंत्र जप करने से, भूमि शयन करने से, कई प्रकार के तप करने से भी कोई लाभ नहीं पता नहीं चलता, क्योंकि उनकी आत्मा शुद्ध नहीं हो पा रही है, क्योंकि साधक को भौतिक का त्याग करना चाहिए।
बन्धन से छूटने की कोशिश ना करो, बन्धन को जानने की कोशिश करो, निश्चित में बंधन है क्या ?
मन में बनी रहें, तो स्वाध्याय और दुखद छाप से बहुत कुछ खुशी हो सकती है
स्वयं को परामात्मा में, सद्गुरु में इतना लीन कर दो कि ईश्वर स्वयं ने पूछा, बताओ तुम्हारी रजा क्या है ?
भली-भांति अपने कर्तव्य का पालन करके चलते हैं और दूसरों को अपने विषय में बोलने के लिए छोड़ देते हैं।
चंदन वह होता है, जो आपके अंदर बहुत अधिक शीतलता और स्वादयुक्त घटक रखता है। जबकि उसके आसपास जहरीला सांप लिपटा रहता है। जहरीला खाने के बाद भी वह पवित्र रहता है। यानी हमें चंदन जैसा बनना होगा। बुराई सुनने के बाद भी हमें अच्छाई आएगी। कभी-कभी स्वयं की बुराई की ओर से नहीं की जाती है।
प्राप्त करना अनिवार्य है गुरु दीक्षा किसी भी साधना को करने या किसी अन्य दीक्षा लेने से पहले पूज्य गुरुदेव से। कृपया संपर्क करें कैलाश सिद्धाश्रम, जोधपुर पूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन से संपन्न कर सकते हैं - ईमेल , Whatsapp, फ़ोन or सन्देश भेजे अभिषेक-ऊर्जावान और मंत्र-पवित्र साधना सामग्री और आगे मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए,