आयुर्वेद विश्व की सबसे पुरानी चिकित्सा प्रणालियों में से एक है, जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘‘जीवन का ज्ञान’’। इसका जन्म लगभग 3 हजार वर्ष या उससे भी पहले भारत में ही हुआ था। इसे विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा भी एक पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली के रूप में स्वीकार किया गया है। आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति की तुलना कभी भी मार्डन मेडिसिन सिस्टम से नहीं की जा सकती है, क्योंकि इनका शरीर पर काम करने का तरीका एक-दूसरे से काफी अलग रहा है। जहाँ एलोपैथिक दवाएं रोग से लड़ने के लिए डिजाइन की जाती हैं, वहीं आयुर्वेदिक औषधियां रोग के विरुद्ध शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाती हैं, ताकि आपका शरीर खुद उस रोग से लड़ सके। आयुर्वेद इस विश्वास पर आधारित है कि स्वास्थ्य और कल्याण मन, शरीर, आत्मा और पर्यावरण के बीच नाजुक संतुलन पर निर्भर करता है। आयुर्वेदिक चिकित्सा का मुख्य लक्ष्य अच्छे स्वास्थ्य को बढ़ावा देना और बीमारी को रोकना है, लड़ना नहीं।
आपने अमलतास के पेड़ को अनेक स्थानों पर देखा होगा। यह पेड़ प्रायः सड़कों के किनारे या बाग-बगीचे में दिखाई देते हैं। इसमें पीले-पीले फूल होते है। ये फूल देखने में बहुत ही मनमोहक होते हैं। इन फूलों को घरों में सजावट के लिये प्रयोग किया जाता है। सच यह है कि अमलतास का पेड एक औषधी भी है और अमलतास के पेड से फायदे भी होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार बुखार, पेट संबंधित रोग, त्वचा रोग, खाँसी, टीबी और हृदय रोग आदि में अमलतास के फायदे मिलते हैं।
कई प्राचीन ग्रन्थों में अमलतास का विवरण मिलता है। इसके वृक्ष पहाड़ियों पर अपने मालाकार सुवर्ण फूलों से शोभा बढ़ाते हैं। मार्च-अप्रैल में वृक्षों की पत्तियां झड़ जाती हैं। इसके बाद नई पत्तियां और पीले रंग के फूल साथ ही निकलते हैं। उसके बाद फली लगती है। फली लम्बी गोल और नुकीली होती है और वर्ष भर लटकी रहती है।
अमलतास फल मज्जा, पिप्पल की जड़, हरीतकी, कुटकी एवं मोथा के साथ बराबर-बराबर मात्रा में लें। इसका काढ़ा पीने से बुखार उतर जाता है।
अमलतास के पेड़ से पत्त्ते लें। इसे गाय के दूध के साथ पीस के इसका लेप लगाने से नवजात शिशु के शरीर पर होने वाले छाले दूर हो जाते हैं।
अमलतास पेड़ के पत्तों और छाल को पीस लें। इसे नाक की छोटी-छोटी फुन्सियों पर लगाने से फुन्सियां ठीक हो जाती हैं।
अमलतास के फल मज्जा को धनिया के साथ पीस लें। इसमें थोड़ा कत्था मिलाकर ग्रहण करने से मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं।
अमलतास, चमेली तथा करंज के पत्तो को लेप बनाकर घाव में लगाने से पुराना से पुराना घाव भी ठीक हो जाता है। इसमें अमलतास के पत्तो को दूध में पीस कर लगाने से भी घाव में तुरंत फायदा होता है।
अमलतास के पेड़ की 10-15 ग्राम जड़ लें। आप जड़ की जगह छाल भी ले सकते हैं। इसे दूध में उबालें। इसे पीसकर लेप करने से शरीर की जलन ठीक हो जाती है।
अमलतास के पेड़ की जड़ को चावल के पानी के साथ पीस लें । इसे सुंघाने और लेप करने से कंठ के रोगों में लाभ होता है।
कफ के कारण टान्सिल बढ़ने पर अमलतास का पानी पीने में आराम मिलता है। टान्सिल में जब दर्द हो रहा हो तब 10 ग्राम अमलतास की जड़ की छाल लें। इसे थोड़े जल में पकाएं। इसे बूंद-बूंद कर मुँह में डालते रहने से आराम होता है।
अमलतास के 5-10 ग्राम गिरी को पानी में घोटें। उसमें तीन गुना चीनी का गूरा डाल लें। इसे गाढ़ी चाशनी बनाकर ग्रहण करने से सूखी खाँसी ठीक होती है। अमलतास फल मज्जा को पिप्पली की जड़, हरीतकी, कुटकी एवं मोथा के साथ बराबर भाग में मिलाएं। इसका काढ़ा बनाकर पीने से कफ में लाभ होता है।
अमलतास के पेड़ से गूदे को निकाल लें। श्वसनतंत्र विकार को ठीक करने के लिए गूदे का काढ़ा बना लें। इसे पिलाने से सांसों की बीमारी में लाभ होता है।
चार वर्ष से लेकर बारह वर्ष तक के बच्चे के शरीर में जलन हो रही हो, या वह आँतों की बीमारी से परेशान है तो उसे अमलतास फल की मज्जा को 2-4 नग मुनक्का के साथ देने से आराम मिलता है।
पेट के रोगों का इलाज करने के लिए अमलतास के 2-3 पत्तों में नमक और मिर्च मिला लें। इसे खाने से पेट साफ होता है। अमलतास फल की मज्जा को पीसकर बच्चों की नाभी के चारों ओर लेप करें। इससे पेट के दर्द से आराम मिलता है।
अमलतास फल मज्जा, पिप्पली की जड़, हरीतकी, कुटकी एवं मोथा को काढ़ा बनाकर पीने से पाचनतंत्र संबंधी विकार ठीक होते हैं।
अमलतास के फूलों का गुलकंद बनाकर सेवन कराने से कब्ज में लाभ होता है। इसी तरह 15-20 ग्राम अमलतास फल का गूदा लें। इसे मुनक्का के रस के साथ सेवन करने से कब्ज ठीक हो जाता है।
अमलतास के फल का गूदा लें। इतना ही गन्ना या भूमि कूष्मांड या आंवले का रस लें। इसे दिन में दो बार देने से पीलिया रोग का निवारण होता है।
10 ग्राम अमलतास के पत्तों को 400 मिली पानी में पकाऐं। जब काढ़ा एक चौथाई रह जाये तो इसका सेवन करें। इससे मधुमेह या डायबिटीज में लाभ होता है।
जोडों के दर्द के लिए 5-10 ग्राम अमलतास की जड़ को 250 मिली दूध में उबालें। इसे ग्रहण करने से जोडों के दर्द में लाभ होता है।
अमलतास के 10-15 पत्तो को गर्म करके उनकी पट्टी बांधने से चेहरे के लकवा रोग में लाभ होता है, इसके अलावा अमलतास के पत्ते के रस को पिलाने से भी चेहरे के लकवे की बीमारी ठीक हो जाती है।
अमलतास के पत्ते अथवा जड़ को पीसकर लेप करने से कुष्ठ रोग में लाभ होता है। इससे खुजली जैसे चर्म रोगों में भी लाभ होता है। अमलतास की पत्तियों तथा कुटज की छाल का काढ़ा बना लें। इसे स्नान, सेवन, लेप आदि करने से कुष्ठ रोग में लाभ होता है।
अमलतास के पत्तो तथा श्लेष्मातक की छाल का लेप बना लें। इसे लगाने से विसर्प रोग ठीक हो जाते हैं। अमलतास के 8-10 पत्तो को पीसकर घी में मिला लें। इसका लेप करने से भी विसर्प रोग में लाभ होता है।
शरीर के अंगों जैसे नाक, कान आदि से खून के बहने पर अमलतास का प्रयोग करना लाभ दायक होता है। 25-50 ग्राम अमलतास फल के गूदा में 20 ग्राम मधु और शर्करा मिला लें। इसे सुबह और शाम देने से नाक-कान से खून का बहना रुक जाता है।
रक्तवाहिकाओं की परेशानी में अमलतास के पत्ते को पानी और तेल में पकाएं। इसका सेवन करें। इससे रक्तवाहिकाओं से जुड़ी परेशानियों में लाभ होता है।
अमलतास के फल के गूदा का काढ़ा बना लें। इसमें 5-10 ग्राम इमली का गूदा मिलाकर सुबह और शाम पिएं। इससे पित्त विकार ठीक होता है। यदि रोगी में कफ की अधिकता हो तो इसमें थोड़ा निशोथ का चूर्ण मिलाकर पिलाने से विशेष लाभ होता है। इसके फल के गूदा का काढ़ा बनाकर पीने से पित्त विकारों में लाभ होता है।
अमलतास फल के गुदा और एलोवेरा के गूदे को जल के साथ घोट लें। इसका मादक बना लें। इसे रात में सेवन करने से पित्त के विकारों में फायदा होता है।
अमलतास फल के गूदा को पिप्पली की जड़, हरीतकी, कुटकी एवं मोथा के साथ बराबर मात्रा में मिलाएं। इसका काढ़ा बनाकर पीने से वात संबंधित विकारों में भी लाभ होता है।
कई लोगों के पैर के एड़ियों के फटने की समस्या रहती है। ऐसे में अमलतास के पत्ते का पेस्ट बनाकर एड़ियों पर लगाने से एड़ी के फटने में लाभ होता है।
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