केवल भाग्य के भरोसे बैठें रहने से भी जीवन गतिशील होना सम्भव नहीं है, भाग्य भी उसी का साथ देता है जो जीवन में क्रियाशील होता है, जब तक मनुष्य जीवित है, वह कर्म और क्रिया से बच नहीं सकता, उसे निरन्तर कार्य करते ही रहना पड़ता है लेकिन कार्य सफलता प्राप्त हो और कार्य से जीवन की इच्छाएं पूर्ण हों, प्रसन्नता प्राप्त हो। परमात्मा ने मनुष्य को जीवन में मन, बुद्धि और मस्तिष्क के साथ देह इसलिये प्रदान की है कि वह इन चारों के सहयोग से निरन्तर क्रियाशील होकर कार्य करता ही रहें, कर्मशील व्यक्ति ही जीवन की अस्थिरता को स्थिरता में परिवर्तित कर अपने भाग्य को संवार सकता है, भाग्यलेखन को बदल सकता है और जो उसके भाग्य में है उसका पूरी तरह से उपभोग भी कर सकता है, कर्म करने के पश्चात् जो फल प्राप्त होता है उससे उपभोग का आनन्द सौ गुणा बढ़ जाता है।
जब कर्म और भाग्य का संयोग होता है तो मनुष्य को अपने जीवन में इच्छित कामनाओं की पूर्ति होती है। कर्म के साथ आशा और निराशा निरन्तर चलते रहते है हर मनुष्य आशावादी होता है, लेकिन बार-बार असफलता उसे निराशावादी बना देती है। आशावान व्यक्ति का सबसे बड़ा संबल उसका गुरू होता है, जो उसे हाथ पकड़कर निराशा के अंधेरे से बाहर निकालकर आशा के प्रकाश की ओर ले जाता है। बार बार उचित ज्ञान देता है।
अक्षय तृतीया त्रिशक्ति भाव प्राप्ति दीक्षा तो जीवन का पूर्णत्व अक्षय तत्व है। वह सौभाग्यशाली ही साधक होते है जिन्हें यह तत्व आत्मसात करने का श्रेष्ठ अवसर प्राप्त होता है। साधक के भाग्य में निरन्तर गति से वृद्धि होने से ही आर्थिक, सामाजिक, आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर होता है।
प्राप्त करना अनिवार्य है गुरु दीक्षा किसी भी साधना को करने या किसी अन्य दीक्षा लेने से पहले पूज्य गुरुदेव से। कृपया संपर्क करें कैलाश सिद्धाश्रम, जोधपुर पूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन से संपन्न कर सकते हैं - ईमेल , Whatsapp, फ़ोन or सन्देश भेजे अभिषेक-ऊर्जावान और मंत्र-पवित्र साधना सामग्री और आगे मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए,