संसार में दुःख है, हर दुःख का कारण है और हर दुःख का निवारण भी है…….. सद्गुरू की कृपा प्राप्त करने का सरल उपाय ही दीक्षा है….. और शिष्य का धर्म यही है, कि पुनः पुनः गुरू चरणों में उपस्थित होकर दीक्षा द्वारा अपने अभीष्ट की सिद्धि करे। सद्गुरू करूणा करके भले ही शिष्य को कुछ प्रदान कर दे, यह उनकी कृपालुता है, परन्तु शिष्य का धर्म तो यही है, कि वह प्रार्थना कर गुरूदेव से दीक्षा प्राप्त करे। भगवान शिव पार्वती को शिष्य के इस धर्म के बारे में दीक्षा के महत्त्व को इस प्रकार से स्पष्ट किया है-
अब मैं साधकों के कल्याण हेतु दीक्षा की विधि का वर्णन करूँगा।
विधि-विधान से दीक्षा लेकर वह पशु होने से मुक्त हो जाता है।
शास्त्रोक्त विधि द्वारा दीक्षा ग्रहण के बाद साधक पशुत्व भाव से मुक्त होकर विशिष्ट भाव में प्रवेश करता है।
परम पूर्णता मिलती है और कर्म की इच्छा नष्ट हो जाती है।
वह परमधाम को प्राप्त करता है जिससे दीक्षा को शिव के रूप में याद किया जाता है।
हे पार्वति जिस क्रिया के माध्यम से सांसारिक भोग वासना की समाप्ति व परम तत्व की प्राप्ति संभव होती है, उसे दीक्षा कहते है।
हे माहेश्वरी, बह्म जैसे कीड़ों पर्यन्त सम्पूर्ण विश्व।
पशुता देवी को मोहित करती है इसलिए व्यक्ति को काली में दीक्षा लेनी चाहिए।
हे महेश्वरि! ब्रह्मा से लेकर कीट पर्यन्त समस्त प्राणि पशु भाव से आवेष्ठित है, उससे मुक्त होने के लिये दीक्षा ग्रहण करना चाहिये।
दीक्षित व्यक्ति बिना दीक्षा के ही किसी जानवर की शरण लेता है।
लेकिन बुद्धिमान व्यक्ति को पशु स्वभाव से मुक्त होकर शक्ति दी जानी चाहिए।
दीक्षा के बिना पशुभाव की समाप्ति हो ही नहीं सकती, दीक्षा के बाद पशुभाव से मुक्त होकर वह साधक ज्ञान एवं ब्रह्मत्व को प्राप्त कर सिद्धि पुरूष बन जाता है।
क्योंकि जो सभी पापों से मुक्त हो जाता है वह सर्वोच्च लक्ष्य प्राप्त कर लेता है।
जिसकी दीक्षा शिव में है! जन्म लेने वाले के लिए जीवन का कोई अंत नहीं है।
दीक्षित साधक सभी पापों से मुक्त होकर परम स्थिति को प्राप्त करता है। हे पार्वती! जिस व्यक्ति की दीक्षा नही हो पाती, उसका जीवन व्यर्थ होता है।
अंत में पशु मनुष्य बन जाता है और शिव योनि में पशु योनि में चला जाता है।
अतीत में अर्जित पुण्य से प्राप्त होने की इच्छा ही सर्वोच्च लक्ष्य है।
दीक्षा के बना व्यक्ति के अन्दर परमार्थ की ओर जाने की भावनाएं नहीं आती है और अंत में पशुयोनि को वह प्राप्त होता है।
शिक्षक सभी प्रकार से नेक, तकनीकी और आकर्षक थे।
उसे प्राप्त करके उसे भक्तिपूर्वक प्रणाम करना चाहिए और आरंभ में उसे विशेष रूप से संतुष्ट करना चाहिए।
सत्कुल में उत्पन्न, सुन्दर शरीर वाले गुरू की शरण में जाकर, उन्हें प्रणाम करे, सेवा से प्रसन्न करे, गुरू दक्षिणा देकर सुनिर्णीत मुहूर्त में साधक श्रद्धापूर्वक दीक्षा ग्रहण करें।
प्राप्त करना अनिवार्य है गुरु दीक्षा किसी भी साधना को करने या किसी अन्य दीक्षा लेने से पहले पूज्य गुरुदेव से। कृपया संपर्क करें कैलाश सिद्धाश्रम, जोधपुर पूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन से संपन्न कर सकते हैं - ईमेल , Whatsapp, फ़ोन or सन्देश भेजे अभिषेक-ऊर्जावान और मंत्र-पवित्र साधना सामग्री और आगे मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए,