जिस प्रकार शरीर की शुद्धि के लिए उसे नित्य स्वच्छ होना चाहिए, उसी प्रकार मन और मस्तिष्क को नित्य स्वच्छ करना आवश्यक है। जब तक मन नकारात्मक विचार से भरा होता है, तब तक वह एक लक्ष्य की ओर ध्यान नहीं दे सकता है।
हर शिष्य का रक्त लाल है और हर शिष्य के आंसू खारे हैं। हर शिष्य को ऐसा मार्ग निश्चित ही कहते हैं, जिससे उसका सम्मान की रक्षा और शाश्वत सम्भावनाओं की पूर्ण प्राप्ति हो सके।
वास्तविकता को केवल शब्दों के माध्यम से व्यक्त नहीं किया जा सकता। आम का स्वाद, उसे चखकर ही जाना जा सकता है। संसाधन द्वारा विकसित ज्ञान से ही परम सत्य का साक्षात्कार संभव है।
अतीत का पीछा न करो और भविष्य के भ्रम जाल में फंसो। अभी बीता हुआ समय है और भविष्य अनागत है। यहां अभी इस क्षण जीवन जैसा है, उसी के धारणा करो। साधनाभ्यासी शिष्य स्थिरता और मुक्त भाव से जीता है।
जीवन में चार सत्य हैं- दुःख की स्थिति दुःख का कारण, दुःख का नाश और दुःख नाश करने का मार्ग। इन पर निरन्तर विचार करते ही रहने लगते हैं।
शिष्य धर्म का अर्थ है वृक्ष की जड़ के समान कार्य करना अर्थात वृक्ष को स्थिरता देना, विकास करना और उसे स्थिर रखना।
शिष्य ही आधार शक्ति है।
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