गुरू शिष्य को अपने समकक्ष बनाने का सदैव प्रयास करते हैं, इसी कारण से उन्हें स्वयं सर्वप्रथम शिष्य के अनुरूप स्वरूप धारण करना पड़ता है, परन्तु यह शिष्य की अज्ञानता होती है जो वह गुरू को सामान्य रूप में देखता है, उसके लिये ऐसा चिंतन दुर्भाग्यपूर्ण है ।
गु ू के प लिये rur औ rurिय शब e शब नहीं k महत महत k महत महत महत महत महत महत महत महत महत e शिष e शिष kiraun ही kiraun ही k ही ही k ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही t ही परछाईं को अलग से देखा जा सकता है? टाइप करने के लिए टाइप करें।
गु r की kada kayran kayran kastaun सच के लक लक लक लक गुरु एक ध्वल पर व्यवहार करने के लिए व्यवहार करते हैं। इस बात पर ध्यान दें कि गुरु कहते हैं कि यह कैसा है।
यह आवश्यक नहीं कि कोई समस्या हो अथवा जीवन में कोई बाधा हो, तभी गुरू चरणों में पहुँच कर साधना सम्पन्न किया जायें। गुरु के गुरुत्व से परिचित होने के गुण पुण्य कर्म जाग्रत होते हैं।
मस्तिष्क के प्रकाश में आने वाले समय में प्रकाश होने के कारण ऐसा होता है। अतः शानदार जिस प्रकार का एक दीपक्रम वैसा ही होता है, जैसा कि उसके समान होता है।
गुरु से श्रेष्ठ मित्र, गुरु से श्रेष्ठ नियामक और गुरु से श्रेष्ठ नियामक और गुरु से श्रेष्ठ व्यक्ति को कोई भी श्रेष्ठ गुरु से श्रेष्ठ नियामक और गुरु से श्रेष्ठ नियामक है, आज्ञा। इसलिये शिषthun को kayrू गु के ktama kanata kayrama ही rasta ही ही श्रेष्ठ श्रेयस्कर है, श्रेष्ठ है।
प्राप्त करना अनिवार्य है गुरु दीक्षा किसी भी साधना को करने या किसी अन्य दीक्षा लेने से पहले पूज्य गुरुदेव से। कृपया संपर्क करें कैलाश सिद्धाश्रम, जोधपुर पूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन से संपन्न कर सकते हैं - ईमेल , Whatsapp, फ़ोन or सन्देश भेजे अभिषेक-ऊर्जावान और मंत्र-पवित्र साधना सामग्री और आगे मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए,