आप साधना करें, नहीं करें, आप सिद्धियां प्राप्त करें या नहीं करें। इस बात की कोई मेरी इच्छा नहीं है। मुझ में ज्ञान तेजस्विता का अंश होगा, तो आप जैसे भी हो, जिस स्थिति में भी हो आपको ले करके कंधे पर बिठाकर सिद्धाश्रम लेकर चलें, इस बात की सदस्यता हैं, क्योंकि मेरे भीतर ब्रह्मत्व हैं और जाग्रत राज्य में हैं।
साधक की यात्रा शून्य से नीचे जाती हुई पूर्णत्व तक पहुंचती है और गुरु के माध्यम से ही पूर्ण ब्रह्म तक की यात्रा संभव है। वह ब्रह्म को जान लिया उसने गुरू को जान लिया। जो गुरू से एकाकार हो गया, वह ब्रह्म से एकाकार हो गया।
नदी कभी रुकती नहीं बहती रहती है, जब तक समुद्र में विलीन नहीं हो जाती दौड़ती है और समुंद्र में पूर्ण से विलीन होती है। उसे नदी कहती है, उसके शिष्यता कहते हैं।
जब तुम अपने आप को शक्तिहीन अनुभव करो, जब तुम अपने को मृत समान अनुभव करो तब तुम मेरे साथ प्रकृति की तरह एकाकार हो जाओ।
बिना गुरु स्पंदन का सूक्ष्म शरीर एक खोखला, प्राण अनुपयोगी मोजा का पिंड है। ऐसा शरीर जीवित तो है परन्तु इसमें शामिल होना आनन्ददायक नहीं है। जहाँ कहीं तुम आनन्द की धारा नहीं है, वहाँ तुम आनन्द में डूब जाओगे।
जो मेरे साथ है वे बहुत काम कर रहे हैं। जिस प्रकार समुंद्र ऊपर से भले ही उसी प्रकार शांत दिखाई दे, पर बड़ी हलचल होती है। ठीक ऐसे ही मेरे शिष्य हैं, ऊपर से शांत दिखते हुए भी एक नई रचना के कार्य में वे सलंग्न हैं।
गुरु सदैव कठोर करूणा से शिष्य के हित के लिए होते हैं। शिष्य अनेक जन्मों से भटकता हुए असंतृप्तमय हैं। गुरु ही उसे अध्यात्म की ओर प्रेरित करते हैं।
गुरु को तुम भले ही भौतिक रूप में देखो, लेकिन वह होता है प्राणों का घनीभूत स्वरूप जहां से होता है जीवन की नई रचना, क्योंकि गुरु को माता और पिता दोनों कहा गया है।
जब भी तुममें से किसी के भीतर अग्नि हो, जब कभी तुम्हारा दिल छटपटाता है, तो तुम पर नज़र डालते हैं। जब आंखों के कोरे भी लगें, तब चुनें कि थोड़ा सा - थोड़ा गुरू को पहचानना शुरू कर दिया।
प्राप्त करना अनिवार्य है गुरु दीक्षा किसी भी साधना को करने या किसी अन्य दीक्षा लेने से पहले पूज्य गुरुदेव से। कृपया संपर्क करें कैलाश सिद्धाश्रम, जोधपुर पूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन से संपन्न कर सकते हैं - ईमेल , Whatsapp, फ़ोन or सन्देश भेजे अभिषेक-ऊर्जावान और मंत्र-पवित्र साधना सामग्री और आगे मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए,