पूर्णता और दिव्यता की पावन भूमि का ही नामान्तर है सिद्धाश्रम, जहां पहुंचने की साधना हर तपस्वी, ऋषि, मनीषी अपने मन में संजोये रखता है। यह आध्यात्मिक उत्कर्ष की वह दिव्य तपःस्थली है, जहां साधक अपनी साधनाओं में अमृत सिद्धि प्राप्त करने के बाद सशरीर अथवा देहपात के पश्चात् भी पहुंचने का सौभाग्य प्राप्त करके न केवल स्वयं दिव्याभास से परिपूर्ण बनता है, अपितु विश्व कल्याण के अपूर्व सामर्थ्य को प्राप्त करके अपनी भावी पीढि़यों के जीवन की सर्वतोगामिनी उन्नति का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।
तुम सब मति भ्रष्ट हो-पूज्य गुरूदेव के स्वर में अचानक आवेग सा आ गया था-तुम उस महान विभूति को सामान्य ही समझते रह जाते हो, उनके द्वारा दी दीक्षाओं के सही मूल्य का आकलन नहीं कर पाते और उस अथाह सागर को छोड़कर छोटे-मोटे पोखरों से पानी की आशा लिये भटकते रहते हों। अभी तो चेत जाओ— ये बहुचर्चित चमत्कार दिखाने वाले तथाकथित गुरू तुम्हें कुछ भी नहीं दे सकते, देंगे तो ये तब, जब उनके पास कुछ होगा। उनकी खुद की झोली फ़टी है, वे तुमको क्या देंगे?
पूर्णता तो तब सम्भव होती है, जब शिष्य गुरू के चरणों में सिर रखकर आंसुओं से उनके चरणों को धोये, अपने को पूर्ण विसर्जित करे, उसका हृदय गद्गद् हो जाये, गला भर जाये, और रूंधो हुये गले, से जो कुछ निकले,वो गुरूदेव शब्द ही निकले।
समर्पण हाथ जोड़ने से नहीं हो सकता, और न ही गुरू की आरती उतारने से आ सकता है। समर्पण का तात्पर्य है, कि गुरू जो आज्ञा दें, उसका बिना नानूच किये पालन किया जाये।
शिष्य तो वह है, जिसकी हर समय मन में यही इच्छा हो, कि मैं गुरू के पास दौड़कर पहुंच जाऊं— हो सकता है। कोई मजबूरी हो, नहीं जा सके, यह अलग चीज है, मगर मन में उत्कण्ठा हो, तीव्र इच्छा हो, छटपटाहट बनी रहे कि उसे हार हालत में गुरू के पास पहुंचना है। पूर्णता का चिन्तन स्पष्ट करे, उसे गुरू कहा गया है। ठीक उसी क्षण तुम्हारा नया जन्म होता है, उसी क्षण वह ब्रह्मा बनकर तुम्हारी उत्पत्ति करता है, वही क्षण तुम्हारे जीवन का स्वर्णिम प्रभात होता है, वहीं से तुम्हारा नवजीवन शुरू होता है।
गुरू तुम्हें मात्र दीक्षा नहीं देता है, वह तुम्हारे रक्त को शुद्ध करता है, जिसमें पीढ़ी दर पीढ़ी का छल, कपट, असत्य, व्याभिचार समाया हुआ है। गुरू तुम्हें एक चिन्गारी देता है, एक क्रान्ति देता है, एक विस्फ़ोट देता है, और मृत्यु से अमृत्यु की ओर ले जाने की क्रिया देता है।
मैंने तुम्हें उसी पगडण्डी पर अग्रसर किया है, जहां अमृत्यु है, जहां चेतना है, जहां प्राण है, जहां पूर्णता है। मैं तुम्हें ऐसा ही आशीर्वाद दे रहा हूं कि तुम्हें जीवन में पूर्णता और श्रेष्ठता प्राप्त हो।
मेरा स्वप्न यह भी है कि मेरे शिष्य सिद्धाश्रम की पवित्र भूमि को स्पर्श कर अपने जीवन को धन्य कर उसकी चेतना से ओत-प्रोत होकर, वहां की सिनग्धाता में तरल होकर, वहां की पावनता में पवित्र होकर, वहां की ज्योत्सना से शुभ होकर इस समाज को यह बता सकें कि बिना भौतिकता को छोड़े हुये भी कैसे जीवन के उस उच्चतम लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।
यह संघर्ष जो मन का है, प्रत्येक शिष्य के मन में रहता है और यही उसके जीवन में पाप है और जीवन में आनन्द वह मस्ती इस संघर्ष में विजयी होने की क्रिया को कहते हैं। मन खिंचता है विषय की ओर, छल की ओर, झूठ की ओर, कपट की ओर, दूसरे के बहकावे में आकर अपने आप को निराशा में धकेलने की ओर किसी का अहित पहुंचाने की भावना की ओर तथा चालाकी की ओर ये तो संचारी भाव है।
गुरू तो शिष्य को माया में इसलिये ग्रस्त करता है कि वह सोचता है इसको धक्के देकर देख लूं एक बार, दो बार, चार बार धक्के देकर देख लूं, क्या वह जीवन भर शिष्य बना रह सकता है या केवल श्रोता शिष्य नही बन सकता।
गुरू जीवन का सर्वस्व है, पूर्णत्व का आधार है, श्रेष्ठता का प्रतिरूप है, आकाश से भी अनन्त और पृथ्वी से भी विशाल उनकी महिमा है और जिसके जीवन में गुरू स्थापित हो जाते हैं, जिसके रक्त के कण-कण में गुरू की प्रतिस्थापना हो जाती है, उसका जीवन भीं धन्य हो जाता है, उसे जीवन में पूर्णता और सफ़लता प्राप्त हो जाती है और किसी प्रकार की न्यूनता तुच्छता नहीं रह पाती है।
यदि आपके हृदय में प्रेम का संचार हो और फि़र आप साधना करें, तो आप स्वयं अनुभव कर सकेंगे कि प्रत्येक साधना आपके लिये सहज सुलभ हो गयी है और साधना में सफ़लता आपके आधार स्तम्भ बन गई है।
प्राप्त करना अनिवार्य है गुरु दीक्षा किसी भी साधना को करने या किसी अन्य दीक्षा लेने से पहले पूज्य गुरुदेव से। कृपया संपर्क करें कैलाश सिद्धाश्रम, जोधपुर पूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन से संपन्न कर सकते हैं - ईमेल , Whatsapp, फ़ोन or सन्देश भेजे अभिषेक-ऊर्जावान और मंत्र-पवित्र साधना सामग्री और आगे मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए,