उन भगवान नारायण का, जिनके सो जाने पर समस्त प्रकृति एवं ब्रह्माण्ड में प्रलय की स्थिति बन जाती है, और जब वे पुनः जाग जाते हैं, तो उनके आदेश से ब्रह्मा नवीन सृष्टि का निर्माण करते हैं।
जिस प्रकार से सृष्टि का विनाश एवं निर्माण होता ही रहता है, उसी प्रकार मानव जीवन में भी यह क्रिया निरन्तर गतिशील रहती है। विभिन्न इच्छाएं, गुण, दोष उभरते हैं, तो साथ ही साथ नष्ट भी होते रहते हैं। पर विचारवान एवं ज्ञानवान व्यक्ति वही है, जो अपने जीवन के सभी कुसंस्कारों, अवगुणों एवं कमियों को नष्ट करता हुआ, जीवन में शुभ लक्षणों एवं सुस्थितियों का निर्माण कर सकें और अद्वितीयता को प्राप्त कर सकें। जहां पर फिर वह सभी प्रकार के पाशों से मुक्त हो, एक दिव्य पथ का पथिक बन कर मानव जीवन को सार्थक बना सकें।
पर आज का वातावरण इतना विषैला है, कि व्यक्ति अगर पवित्र, निर्मल जीवन जीना भी चाहे, तो यह प्रायः असम्भव है, क्योंकि आज भोग और विलास का आकर्षण अति प्रबल है, खान-पान में पवित्रता नहीं, यहां तक कि वायु जो श्वास क्रिया के लिए उपयोगी है, वह भी दूषित है, ऐसी परिस्थितियों में व्यक्ति चाहता तो बहुत कुछ है, अंततः हार मान लेता है और झुंझला उठता है, जीवन से निराश होकर थक हार के बैठ जाता है।
निश्चित ही इसमें उसका कोई दोष नहीं, क्योंकि ऐसी स्थिति में कोई कर ही क्या सकता है? पर फिर भी हमारा साहित्य, इतिहास इस बात का गवाह है कि, जिस व्यक्ति के अंदर अटूट विश्वास, जीवन शक्ति और दृढ़ निश्चय हो, उसके साथ ही साथ वह साधनात्मक शक्ति प्राप्त कर ले, तो फिर कोई भी इस संसार में उसकी उन्नति को रोक नहीं सकता।
पुरूषोत्तम मास के अद्वितीय अवसर पर साधक सहज अपनी सभी कमियों को मूल से ही नष्ट कर, सभी प्रकार से श्रेष्ठता प्राप्त कर सकता है, कमियां तो व्यक्ति के जीवन में अनेक हैं- दरिद्रता, रोग, शत्रु भय, मुकदमें आदि, अवगुण भी जीवन में अनेक हैं- काम, क्रोध, मोह, लोभ, प्रमाद आदि, इनको इस मन से पूर्ण रूप से समाप्त कर व्यक्ति अपना पुनः निर्माण कर सकता है, और धन, ऐश्वर्य, शत्रु-दमन, रोगमुक्ति, नव चेतना, प्रभावी व्यक्तित्व की स्थिति प्राप्त कर, एक निर्मल एवं पवित्र जीवन की ओर अग्रसर हो सकता है।
ये साधनायें सम्पन्न करने पर साधक किसी भी परेशानी, बाधाओं से अछूता रहता हुआ निरन्तर अपने मार्ग पर गतिशील रहता है, जीवन में तेज, कर्मशीलता का उद्भव, शक्ति का विकास कर विशालता की ओर अग्रसर होता है जिससे साधक के जीवन में पुरूषोत्तम बनने की स्थितियां निर्मित होती हैं।
विश्वकर्मा की दो पुत्रियां ऋद्धि-सिद्धि जिनका विवाह स्वयं बुद्धि के सागर और उच्चकोटि के ज्ञानी भगवान गणपति से होना निश्चित हुआ। विवाह उपरांत जहां पर भी ये दोनों कन्याएं होती हैं वहीं पर भगवान गणपति का वास होता है। ऋद्धि-सिद्धि साधना करने से भूमि-लाभ, शीघ्र भवन निर्माण तथा परिवार में पूर्ण सुख-शान्ति प्राप्त होने की क्रिया उसी दिन से शुरू हो जाती है। जिस परिवार में भी गणपति के साथ ऋद्धि-सिद्धि की पूजा होती है, वह घर ही मंगलमय आनन्दप्रद बन जाता है। लक्ष्मी की निरन्तर कृपा बनी रहती है, कर्ज के बोझ से मुक्ति मिलती है।
वहीं साधनाओं में भी सफलता प्राप्त होती है, साथ ही भगवान गणपति और ऋद्धि-सिद्धि का स्थायी निवास हो जाता है। अखण्ड सौभाग्य के साथ उत्तमकोटि के संतान प्राप्ति, कुंआरी कन्याओं को योग्य वर की प्राप्ति होती है। उस घर में निर्विघ्न रूप से सम्पन्नता आती है।
पुरूषोत्तम मास के किसी भी बुधवार को सामने बाजोट पर पीला आसन बिछाकर थाली रखें, थाली के मध्य स्वास्तिक बनावें और उसके चारों तरफ एक-एक स्वास्तिक केसर से अंकित करें। इसके बाद गणपति ऋद्धि सिद्धि स्वरूप ललिताम्बा यंत्र को स्थापित करें। तीन घी का दीपक और तीन अगरबत्ती जलाकर संक्षिप्त पूजन सम्पन्न करें। फिर निम्न मंत्र का ‘निर्विघ्न कार्य सिद्धि माला’ से 16 माला जप करें।
जप पत्र के दस्तावेज ललिताम्बा यंत्र को पूजा स्थान में स्थापित करें और अन्य सामग्री को किसी पवित्र जल में विसर्जित कर दें।
पूर्ण पुरूषत्व का तात्पर्य है- पौरूष सम्बन्धी किसी अक्षमता से पीडि़त ना हो, चाहे वह सम्भोग में पूर्ण सुख का अनुभव ना कर पाता हो अथवा अद्वितीय पराक्रम एवं प्रखरता में कमी, इस कला से पूर्ण व्यक्तित्व कहीं भी, किसी भी क्षेत्र में अपने प्रतिद्वन्द्वियों से भयभीत नहीं होता, वह सदैव निडर एवं बलशाली बना रहता है। जितने भी संसार में उदात्त गुण होते है, सभी कुछ उस व्यक्ति में समाहित होते हैं, जैसे-दया, दृढ़ता, प्रगाढ़ता, ओज, बल, तेजस्विता इत्यादि। इन्हीं गुणों के कारण वह सारे समाज में श्रेष्ठतम व अद्वितीय माना जाता है।
मनुष्य जीवन के दो पहलू हैं- भौतिक और आध्यात्मिक, और जब व्यक्ति इन दोनों क्षेत्रों में इस पूर्ण पौरूष साधना को सिद्ध कर पूर्णता प्राप्त कर लेता है, तब वह जीवन की जो उच्चता है, श्रेष्ठता है, सर्वोच्चता है, उसकी प्राप्ति के साथ जीवन के सभी आयामों को स्पर्श कर उसे पूर्ण पौरूष बना देती है। वह जो चाहे, जब चाहे, जहां चाहे अपने मनोनुकूल कार्य कर सकता है या करवा सकता है, फिर वह असम्भव कार्यों को करने में भी सक्षम एवं सामर्थ्यवान हो जाता है।
03 जुलाई या किसी भी शुक्रवार को रात्रि 9 बजे के पश्चात् शुद्ध पीले वस्त्र धारण कर पीले चावल की ढे़री पर ‘हिडिम्बा यंत्र’ व सद्गुरूदेव का संक्षिप्त पूजन सम्पन्न कर निम्न मंत्र का 5 माला पुरूषोत्तम माला से 4 दिन तक जाप करें।
साधना समाप्ति के उपरांत सभी सामग्री को किसी पवित्र जलाशय या नदी में 11 बार गुरू मंत्र का जप कर विसर्जित कर दें।
यह शरीर योग का भी साधन है और भोग का भी। अस्वस्थ व्यक्ति न जीवन का भोग कर पाता है, और न ही योग, उसके भाग्य में केवल कुण्ठा ही शेष रह जाती है। वास्तव में धन-सम्पति, ऐश्वर्य का भी तभी कोई महत्व है। जब शरीर स्वस्थ हो, पुष्ट हो और सारे व्यक्तित्व में एक चुम्बकीय गुण हो। कायाकल्प अर्थात एक अल्प काल में ही काया का नवनिर्माण हो सके, उसमें रोग मुक्ति आ सके, पुष्टता आ सके, यह अर्थ नहीं है कि रातों-रात लम्बाई बढ़ जायेगी या काला रंग गोरे रंग में बदल जायेगा। शरीर आंतरिक एंव बाह्य रूप दोनों से एक संतुलन में आ सके। इसके लिए किसी भी शुक्रवार को योगिनी यंत्र व वैजयन्ती माला का संक्षिप्त पूजन कर सभी सामग्री को दोनों हाथों में लेकर अपनी इच्छा बोलें फिर निम्न मंत्र का 11 माला जप आवश्यक है।
मंत्र जप के पश्चात् सभी सामग्री को लाल कपड़े में बांध कर किसी सरोवर में विसर्जित कर दें।
सम्मोहन तो अपने आप में एक विशिष्ट शैली और कला है, जो जीवन में ताजगी, उमंग भरने में सक्षम है। इसके द्वारा आकर्षण, चुम्बकत्व, लपक जैसे गुण तो आते ही हैं, साथ ही यह आन्तरिक ऊर्जा की वृद्धि, उत्साह और शीतलता देने का एक सफल प्रयास है, फिर साधक की आन्तरिक शक्तियां व चेतना गुणात्मक रूप से बढ़ने लगती हैं।
सम्मोहन साधना मनः शक्ति को नियन्त्रित करने की प्राचीन तथा शास्त्र सम्मत विधि है। सृजनात्मक विचारों के द्वारा ही इस धरा को वसन्तमय बनाया जा सकता है, और प्रत्यके प्राणी मात्र का उपकार व कल्याण किया जा सकता है, एक नवीन चेतना, उमंग, जोश तथा नए आयाम इस समाज को दिए जा सकते हैं। जिसका इस समाज सर्वथा अभाव दिखाई देता है।
सर्वप्रथम 10 मिनट ध्यान में बैठें फिर किसी ताम्रपात्र में ‘कृष्ण यंत्र’ स्थापित कर, उसके मध्य में ‘सम्मोहन गुटिका’ को स्थापित करें तथा धूप, दीप, अक्षत, पुष्पादि से यंत्र एवं गुटिका का पूजन करें। साधक के लिए प्रतिदिन गुरू चित्र पर 10 मिनट त्राटक का अभ्यास करना आवश्यक है। इसके पश्चात् ‘सम्मोहन माला’ से 5 दिन तक नित्य 3 माला निम्न मंत्र का जप करें।
डेटाना विलुप्त होने के सम्मोहन गुटिका को गले में धारण कर लें और अन्य सामग्री को किसी नदी या तालाब में प्रवाहित कर दें।
जीवन में यदि पूर्ण आयु ही नहीं होगी, पूरा विस्तार ही नहीं होगा तो कब व्यक्ति अपनी इच्छाओं की, कामनाओं की पूर्ति कर सकेगा, कब अपनी इच्छा का संसार रच सकेगा, अपने जीवन को खुलकर जी सकेगा और वह सब कुछ प्राप्त करने में सफल होगा जो उसके मन की चिरसंचित अभिलाषा हो। जीवन में केवल वर्षों की संख्या से आयु का निर्धारण नहीं किया जा सकता। जीवन का कितना क्षण आनन्द के साथ सुखी और परिपूर्ण बीता, कितने क्षण आनन्द के साथ बीते, जितने दिन आरोग्यता के साथ प्रेममय, दान, पुण्यादि क्रियाओं में व्यतीत हो, वही जीवन की वास्तविक आयु है।
किसी भी गुरूवार को अपने सामने ताबीज रूप में ‘आयुष्य लक्ष्मी यंत्र’ स्थापित कर लें। प्रथम दिन साधना के बाद इस ताबीज को गले में धारण कर पांच दिन तक ‘आयु वृद्धि माला’ से 7 माला जप करें।
कड़ा
प्रथम दिन जिस समय साधना प्रारम्भ की थी अगले बार पुनः ठीक उसी समय पर साधना प्रारम्भ करें। पांच दिन बाद पांच छोटी कन्याओं को सम्मान पूर्वक भोजन आदि कराकर उन्हें भगवती महालक्ष्मी का ही स्वरूप मानते हुए दक्षिणा आदि से सन्तुष्ट करें। यदि किसी की आयु कम हो या हाथ में जीवन रेखा कटी हो, तो इस प्रयोग के कुछ दिन के भीतर ही वह रेखा पुनः स्पष्ट और सीधी दिखाई देती है।
किसी आशंका से ग्रसित जीवन नरक तुल्य होता है। क्योंकि चलते-फिरते, उठते-बैठते, सोते-खाते केवल वह आघात की ही प्रतीक्षा करता रहता है। आघात करने वाला तो आगे की सोचता है, लेकिन आघात से आशंकित व्यक्ति तो सिर्फ सुरक्षा के उपाय ही सोचता है और प्रत्येक दिवस की प्रातः से ही वह भयभीत रहता है।
आंशका ऐसी स्थिति होती है। जहां सब कुछ स्पष्ट नहीं होता है। व्यक्ति न हंस पाता है, न ही रूदन कर सकता है, वह न तो जीवन ही जी पाता है, न ही मृत्यु का वरण कर पाता है, न वह गतिशील हो पाता है, न ही सिमट कर रह सकता है।
कई स्थितियां तो ऐसी होती हैं जहां शत्रु भी स्पष्ट नहीं होता और गुप्त शत्रु भय की दशा में स्थिति कितनी भयावह हो जाती है, इसकी तो कोई कल्पना ही नहीं कर सकता। आर्थिक घोटालों के द्वारा प्रतिद्वन्द्वी व्यापारी का व्यवसाय चौपट कर देना, मिथ्या रूप से अदालती कार्यवाहियो में फंसा देना, बल्कि कब्जा कर लेना एवं सम्बन्धित अधिकारियों से मिलकर अभिलेखों को बदलवा देना। हम भले ही प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित न होते हों, लेकिन इस जटिल अर्थव्यवस्था में प्रत्येक को इन दुष्कृत्यों के द्वारा प्रभावित होना ही पड़ता है।
यह साधना इन्हीं सब स्थितियों का प्रचंड मुंह तोड़ जबाब है, न केवल व्यक्तिगत स्तर पर बल्कि सामूहिक स्तर पर भी अपनी सम्पूर्ण शक्ति के साथ शत्रु पर टूट पड़ा जाय और उसका विध्वंस कर दिया जाय। जब युद्ध की स्थिति निर्धारित हो जाती है, तो मरने या मारने की भावना से सर्वस्व को झोंक देना पड़ता है। बिना इस भय से कि हमारे शत्रु की स्थिति क्या है? उसका बल क्या है? जबकि संकल्प कर उसके ऊपर टूट पड़े और विजय प्राप्त हो। यह किसी भी प्रकार के विघ्न-बाधाओं को दूर करने में समर्थ और शत्रुनाशक साधना है। विपरीत परिस्थितियां अनुकूल हो जाती हैं।
28 जून 2015 अथवा किसी भी रविवार को रात्रि में स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण कर आसन पर बैठ जाए और अपने सामने गुरू चित्र के साथ कर्ण पिशाचिनी यंत्र को स्थापित कर गुरू व भैरव का संक्षिप्त पूजन सम्पन्न करें। फिर शत्रु दमन गुटिका को बाएं हाथ की मुठ्ठी में दबाकर भयहारिणी माला से 7 माला निम्न मंत्र का जाप करें। गुरू चित्र के सामने तेल का ही दीपक जलाएं।
साधना समापन के बाद गुटिका को धारण कर लें और सभी सामग्री को दूसरे दिन निर्जन स्थान पर आधा फिट गहरा खोदकर उसमें दबा दें।
प्राप्त करना अनिवार्य है गुरु दीक्षा किसी भी साधना को करने या किसी अन्य दीक्षा लेने से पहले पूज्य गुरुदेव से। कृपया संपर्क करें कैलाश सिद्धाश्रम, जोधपुर पूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन से संपन्न कर सकते हैं - ईमेल , Whatsapp, फ़ोन or सन्देश भेजे अभिषेक-ऊर्जावान और मंत्र-पवित्र साधना सामग्री और आगे मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए,