समाज में विवाह जीवन का एक आवश्यक अंग माना गया है, जिसमें कुछ हंसी ठिठोली है, तो कहीं गम्भीरता है, कहीं मान मनुहार है और इस सबके साथ है समर्पण, एक दूसरे के प्रति अगाध विश्वास। व्यक्ति के जीवन में यह सब आरम्भ होता है विवाह के सात फेरों के बाद, जो न सिर्फ सात फेरे होते हैं अपितु सात वचन होते हैं, जिन्हें पूरी उम्र भर निभाने की बात होती है।
प्रत्येक वचन का अपना अलग महत्व होता है, उसका अपना अलग दायित्व होता है। प्रत्येक वचन जीवन के विविध आयामों को लिए होता है, प्रत्येक वचन में भविष्य के प्रति कर्तव्य तथा पति-पत्नी के दायित्वों के विषय में बताया गया है। विवाह अत्यन्त पवित्र बंधन है, जिसका यदि पूर्णता के साथ निर्वाह पति पत्नी करते हैं, तो उन्हें जीवन का आनन्द ढूढ़ने के लिए अन्यत्र कहीं और नहीं जाना पड़ता है। विवाह के पश्चात् वे अलग-अलग व्यक्तित्व न रहकर एक ही बन जाते हैं, क्योंकि वे एक दूसरे से मानसिक रूप से, भावनाओं से जुड़े हुए, एक दूसरे के सुख-दुख में भागीदार होते हैं, वैवाहिक जीवन का मूल सूत्र भी यही है।
प्रायः देखा जाता है, कि विवाह के कुछ महीनों बाद तक तो स्थिति ठीक रहती है, खूब प्रेम प्रदर्शन होता है, लेकिन यह आपसी आकर्षण उस वत्तफ़ समाप्त होने लग जाता है, जब उनकी कमियां सामने आने लगती हैं, तब आपस में सामंजस्य की कमी होने लगती है, आपसी विश्वास डगमगाने लगता है। फलतः वे अपनी कमियों को स्वीकार नहीं करके सामने वाले को नीचा दिखाने के लिए प्रयत्नशील होने लगते हैं।
परन्तु उनकी समस्या का समाधान नहीं होता, क्योंकि वे अपने-अपने विचारों से जीवन को गतिशील करना चाहते हैं जो संभव नहीं होता। उनकी यही भूल उनके जीवन की प्रमुख पारिवारिक समस्याओं के रूप में उभरने लगती है। फिर उनमें झगड़े बढ़ जाते हैं, एक दूसरे पर हावी होने की भावना विकसित होने लगती है, एक दूसरे की बातें सुनना तक नागवार होने लगता है, और भी न जाने कितनी ऐसी परिस्थितियां आ जाती हैं, जिनमें व्यक्ति आपस में इतने अधिक उलझ जाते हैं, कि मर्यादाओं की सीमा का उल्लंघन करने लगते हैं।
वर्तमान समय में असफल वैवाहिक जीवन के विषय में लोगों की उदासीनता ही प्रमुख कारण बन रही है परिवार के बिखराव की। जिन लोगों ने विवाह के पवित्र बंधन को मजाक बना लिया है, यदि वे थोड़े धैर्य व संयम से काम लें, तो उनका पल पल क्षीण होता हुआ सम्बन्ध स्थिर हो सकता है। यदि पति पत्नी उम्र भर एक दूसरे के विचारों में सामंजस्य बनायें। वे एक-दूसरे की मर्यादा का ध्यान रखें, एक दूसरे के प्रति अगाध विश्वास जीवन में प्रगति की अग्रसर करता है। अपने अपने कर्तव्यों का निर्वाह भली प्रकार से करने पर कोई भी समस्या आ ही नही सकती।
पति-पत्नी का सम्बन्ध भावनात्मक होता है, उनमें लड़ाई-झगड़ा होते ही रहते हैं, पर आप अपने मन से गांठ मत बांधिये। बातचीत अगर आप ही प्रारम्भ कर देंगे, तो ज्यादा उचित रहेगा। प्रेम ही वह प्रथम वचन है, जिसका पालन आपको पूर्ण रूप से करना पड़ेगा और यदि आप ईमानदारी के साथ इसे अपने जीवन में शामिल कर लेंगे, तो अवश्य ही अपने आपसी तनावों और गलत-फहमियों को समाप्त करने में सफल हो सकेंगे।
साधारणतः आपसी लड़ाई-झगड़ों के बाद पति पत्नी आपस में मौन धारण कर लेते हैं। पहले मौन कुछ समय का होता है, लेकिन धीरे-धीरे जब मौन लम्बे समय तक रहने लगे, तो पति-पत्नी के मध्य वैचारिक सम्बन्धों में इतनी बड़ी खाई बनने लगती है, कि समय भी उसे समाप्त नहीं कर पाता। इससे आपस की उदासीनता से पति-पत्नी के मध्य तृतीय व्यक्ति को प्रवेश का अवसर मिलेगा। और फिर पूरा का पूरा पारिवारिक जीवन ही विच्छिन्न होने की स्थिति बन जायेगी।
जीवन में पति-पत्नी का आत्मिक व मानसिक रूप से सामंजस्य बना रहना आवश्यक है तभी वैवाहिक जीवन सुदृढ़ एवं सफल हो सकता है। वैवाहिक जीवन में व्यक्ति इन तथ्यों का अनुसरण करें, तो गृहस्थ जीवन में तनाव नहीं उत्पन्न होगा और इसके फलस्वरूप जीवन में आनन्द, हर्ष-उल्लास, प्रेम, सौन्दर्य, भौतिक व गृहस्थ सुखों की वृद्धि, संतान सुख, यश-सम्मान, वैभव, आमोद-प्रमोद और साथ ही धर्म के अनुसार आचरण, साधु सेवा, दान पुण्यादि सुकृत्तियों से जीवन को ओत-प्रोत करने की क्रियायें निर्मित हो सकें।
इसी हेतु शिव स्वरूप गुरू और शोभायमान वन्दनीय माता जी के दिव्य सान्न्धि्य में जानकी गौरी सौभाग्य शक्ति दीक्षा और शिव वैभव प्राप्ति दीक्षा से पति-पत्नी के मध्य का तनाव, कड़वाहट, खिंचाव, वैचारिक मतभेद का वातावरण समाप्त होकर मधुरता एवं उल्लास, प्रेममय की स्थितियां निर्मित हो सकेंगी। गृहस्थ जीवन को आनन्दमय बनाने तथा आर्थिक सम्पन्न्ता, ऐश्वर्य, प्रतिष्ठा और वैवाहिक जीवन में निरन्तर सुखों की वृद्धि हो सके। वैवाहिक सुख महोत्सव 06-07 जुलाई नारायण धाम दिल्ली आपके इतंजार में—
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