शिष्य के जीवन में चरित्र ही सफ़लता और असफ़लता का द्योतक है। चरित्र सफ़ल है तो जीवन सफ़लता की ओर बढेगा किन्तु चरित्र असफ़लता की ओर अग्रसर है तो जीवन अवश्य पतन की ओर उन्मुख होगा।
शिष्य को समाज की अपूर्णता के विजय में नहीं, अपनी अपूर्णता के विजय में विचार करना चाहिए अपनी अपूर्णता दूर करने वाला समाज की अपूर्णता भी दूर कर सकता है।
शिष्य का महत्व इसमें नहीं है कि वह कितने वर्ज तक जीवित रहता है अपितु महत्व तो इसका है कि तुम किस प्रकार से जीवित रहे।
सच्चा शिष्य गुरू के किसी बाहरी काम पर लक्ष्य नहीं करता, वह तो केवल गुरू की आज्ञा को ही शीश नवाकर पालन करता है।
यदि तुम्हारी साधना करने की तीव्र उत्कण्ठा है तो भगवान उसके पास सद्गुरू भेज देते हैं। सद्गुरू के लिए साधकों को चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं पड़ती।
सच्चा और वीर शिष्य तो इस संसार का बोझ उठाकर भी सद्गुरू की ओर प्रसन्न भाव से निहारता है।
मनुष्य तभी तक आध्यात्म के विषय में तर्क-वितर्क करता है जब तक उसे आध्यात्म का स्वाद नहीं मिलता, जिस दिन उसे यह स्वाद प्राप्त हो जाता है उस दिन चुप-चाप साधना करने लगता है।
प्राप्त करना अनिवार्य है गुरु दीक्षा किसी भी साधना को करने या किसी अन्य दीक्षा लेने से पहले पूज्य गुरुदेव से। कृपया संपर्क करें कैलाश सिद्धाश्रम, जोधपुर पूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन से संपन्न कर सकते हैं - ईमेल , Whatsapp, फ़ोन or सन्देश भेजे अभिषेक-ऊर्जावान और मंत्र-पवित्र साधना सामग्री और आगे मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए,