गर्भाशय संबंधी विकार अनुपयोगी हैं, तो कई व्याधियां तथा रजोधर्म की विशिष्टता, श्वेत लक्षण, बन्धयत्व, गर्भाशय भ्रम, विकृति होना आदि कभी भी उत्पन्न नहीं हो सकते हैं। गर्भ से कई तरह की बीमारियों का भी प्रादुर्भाव होता है। इसलिए गर्भाशय को स्वस्थ व बलवान बनाने के लिए पैरों को निश्चित आसन को नियमित रूप से करना पड़ता है। यह अज्ञानता में भ्रम है।
धनुरासन- दोनों पैरों को मिलाकर पेट के बल लेट जाएं अब पैरों को घुटने से पीछे की ओर मोड़कर जाघों पर लायें और दहिना टखना दाएं हाथ से और बायां टखना बायेंये हाथ से पकड़ लें। खड़े होने और चलने के लिए ऊपर की ओर तानने का भरसक प्रयास करें। फिर कुछ देर के उपरान्त पैर धीरे-धीरे नीचे लाकर पूर्व स्थिति में आ जायें।
चक्रासन- भूमि पर चित्त लेट जायें दोनों पैरों को मोड़कर नितम्ब के पास लें। अब दोनों हाथों को गर्दन के पास रखने वाली हथेलियाँ ज़मीन पर रखने वाली टाँगें और हाथों के बल ऊपर उठती हैं। कुछ सैकण्ड रूक कर धीरे-धीरे वापस जमीन पर आ जाते हैं।
मानसिक तनाव से ग्रस्त कई महिलाएं अनिद्रा की शिकार हो जाती हैं। शारीरिक श्रम नहीं करने वाली कई स्त्रियां भी रात-रात भर जागकर अनिद्रा का इन्तजार करती हैं। ऐसे योगासनों का अभ्यास करना अतिसंवेदनशील होगा।
भुजंगासन-पेट के बल लेट जायें। दोनों हाथों को बन्धन के नीचे इस प्रकार लें कि अंगुलियों और अंगूठे से आप मिले हुए हो जाएं। हथेलिया जमीन पर रहें। अब झटके-धीमे श्वास लें, झुकते हुए माथे को ऊपर की ओर झुकें, छाती एवं पेट को उठायें। जब तक श्वास को रोक सकें, उसी स्थिति में रहें। फिर सांस लेते हुए वापस आएं।
शीर्षासन-फ़र्श पर एक फ़्रिज रखें। घुटनों के बल जमीन पर बैठ कर सिर को तकिये पर टिकायें और सिर के पास दोनों पंछियों को पकड़ कर पूरे शरीर को ऊपर उठाने का प्रयास करें। ऐसा करने से सारे शरीर का बोझ सिर पर आ जाएगा। आसन के समय आंखे बन्द रखो। मोटोरोला अभ्यास न होने पर पीछे की ओर गिरने का खतरा बना रहता है, इसलिए दीवार का सहारा लेकर ऐसा करें। लेकिन प्रयोग हो जाने पर बिना किसी अनुमान के इसे भी माना जा सकता है।
जोड़ों में दर्द की बीमारी आज तंत्रिकाओं में अत्यधिक परिमाण में व्याप्त हो जाती है, जिसका प्रभाव उनके शारीरिक श्रम और धक्कों पर भी पड़ता है। मूल रूप से यह दुर्दम्य संगतता के कारण ही होता है। इसलिए सर्वप्रथम स्त्री को पेट के सभी संबंध दूर करने के कारण योगासन करते हैं, परिणामस्वरूप इस व्याधि का समूल नाश संभव है।
जानुशिरासन- टैग्स को सीधे मिलाकर भूमि पर बैठें। अब सही पैर की ऐड़ी को सीवनी प्रदेश में लगायें और दहिना तलवा द्वारा जांघ से पकड़ें। अब नाभि प्रदेश को लेकर अंदर लेकर दोनों हाथों को सीधा रखें और सिर को झुकाकर हाथों से बांये पैर को स्पर्श करें। इस अवस्था में श्वास न लें और न विकल्प। पैर बदल कर फिर दूसरे पैर पर भी इसी क्रिया को 15-20 बार दुहरायें।
शारीरिक श्रम न करने के कारण कुछ जीव, मन और स्वभाव भी दुर्बल हो जाते हैं और उनके शरीर में वायु और कफ की प्रधानता हो जाती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि हिस्टोरिया रोग हो जाता है। जिससे अनिद्रा, दुर्बलता, घबराहट बना रहता है। काम वासना में अतृप्ति भी इस रोग का एक कारण होता है। इसके उपचार के कारण निम्नलिखित आसनों का नियमित अभ्यास करना चाहिए।
योगासन- सर्वप्रथम पापरासन सरलता से बैठ जायें। अब दोनों हाथों की लकीरों को दोनों पांवों के तलवों पर मोड़ लें, दोनों हाथों को कस लें। सामान्य गति से श्वास लेते हुए नासिका के अग्र भाग पर या सामने किसी बिंदु पर अपनी दृष्टि स्थिर करें।
शरीर में वायु की अधिकता हो जाने पर विभिन्न प्रकार के व्याधियां जन्म ले लेती हैं, शरीर फूलने लगता है, जी मिचलाने लगता है, मन-मस्तिष्क पर दबाव का अनुभव होता है तथा भोजन के प्रति अरूचि लक्ष्य हो जाता है। ऐसे लक्षणों का होते ही आसनों का पालन करना अत्यधिक हितकर माना जाता है।
वज्रासन- दोनों पैरों को घुटने से मोड़कर इस प्रकार बैठ जाएं, कि घुटने और पैर के पंजे सीधे ही जमीन को स्पर्श करें। नितम्ब पैर के तलवों पर जागे पिण्डलियों पर रहनी चाहिए। दोनों हाथों से अटक को पकड़ लें। सीधे सीधे स्थिर करें।
सर्वांगासन- पीठ के बल सीधे लेट जायें। पांवों के पंजो को मिलाकर सामने की ओर तन कर धीरे-धीरे पैरों को ऊपर उठायें। इसके बाद कमर को उठाना शुरू करें, यहां तक कि पांवों के चढ़ाई भी आकाश की ओर हो जाएं तथा सारा शरीर का आधार सीधा खड़ा हो जाएं। ठोढ़ी को गर्दन के निचले हिस्से पर लगे। इन सभी आसनों को अपनाकर और इनके नियमित अभ्यास से नारी व्याधि द्वारा अनुपयोगी जीवन प्राप्त कर सकते हैं। जिसके प्रत्येक कार्य में वे नए विद्युत, चेतन से युक्त प्रत्येक कार्य में आश्चर्यजनक सफलता और श्रेष्ठता से युक्त होते हैं। साथ ही अकुण्ण सौन्दर्य, कान्तिवन चेहरा, स्फूर्ति, उमंग, उत्साह बना रहता है। आप सभी अपने जीवन में आरोग्यमय चेतन से आपूरित एक परिवार, समाज, अपने कार्य में समानता रहने निरन्तर श्रेष्ठ सफलता की ओर अधिक योग्य, हृदय से यही आशीर्वाद है!
मय के लिए तो योगासन वरदान स्वरूप ही है। इसके प्रयोग से जहां वे एक ओर शक्ति काया की स्वामिनी बन गृहस्थी के कर्त्तव्यों की अनिवार्यता के रूप में कर सकते हैं, वहीं दूसरी ओर स्वस्थ और सुन्दर पवित्रता को जन्म देने में भी सक्षम हो जाते हैं।
शोभा श्रीमाली जी
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