आजकल दमा (ब्रांकियल रिकॉर्ड) की शिकायत हर उम्र के लोगों में बढ़ रही है, इसका एक कारण दिन बढ़ता हुआ योग है, अक्सर ऐसा देखने में आता है कि बड़े शहरों के धूल, पेट्रोल और औद्योगिक प्रदूषण से युक्त वातावरण से निकलकर जब कोई दमा का शिकार व्यक्ति स्वच्छ और खुले वातावरण में कुछ दिन रहता है तो उसकी सांस संबंधी तकलीफें स्वतः ठीक हो जाती हैं, इससे जाहिर है कि दमा प्रतिक्रिया कारकों में प्रदूषण प्रमुख है, यही कारण है कि प्रदूषण बढ़ने के साथ ही दमा जैसी सांसें संबंधी बीमारियां भी बढ़ रही हैं।
दमा रोग में श्वासस्पर्शियों में पकड़न आ जाती है या वे अवरुद्ध हो जाते हैं, इस कारण रोगी को श्वास और विश्राम में कुछ रूकावट या कष्ट का अनुभव होता है, रोगी की तकलीफदेह श्वासों के जामों की सीमा पर लग जाता है, यदि सभी लंजाएं बहुत अधिक प्राप्तकर्ता हैं तो रोगी को सांस लेने और रहने में अधिक परेशानी होगी और यदि लंखे थोड़ी मात्रा में चिपकी होती हैं तो जलन कम होती है, इस स्थिति में शरीर को ऑक्सीजन कम मिलने के कारण रोगी जोर-जोर से सांस लेता है इसे लेकर कमी को पूरा करने का प्रयास करता है, श्वास लथपथों के संयोजन को ही दमा या संकुचित रोग कहते हैं।
दमा होने के कई कारण होते हैं, कुछ दोहरी वाली दमे की शिकायत हमेशा बनी रहती है जबकि कई पतियों की शिकायतें कभी-कभी होती हैं, यह सब बीमारी के कारण लगातार होता है, दमा निर्माता कारण कुछ प्रकार के होते हैं-
चिंता- दमा का प्रमुख कारण है, एलर्जी उत्पन्न करने वाले पदार्थ (एलर्जेन्स) कई तरह के हो सकते हैं, किसी रोगी को कोई विशेष खाद्य पदार्थ से एलर्जी होती है तो किसी के वातावरण में धूल के कारण दमा उभरता है, कुछ अतिरिक्त कुत्ते, बिल्ली , बकरी आदि जानवरों के संपर्क से भी एलर्जी हो सकती है।
संक्रमण एवं कृमि रोग- जीवाणु या विषाणुओं के संक्रमण से श्वास प्रेषणों में सूजन आ जाती है जिससे वे प्रमाण हो जाते हैं, इस कारण दमा की शिकायत बन सकती है, उदाहरण-पुराना श्वास प्रेषण (क्रोनिक ब्रांकाइटिस) में दम की भी शिकायत हो सकती है, इसी तरह की फ़ाइलें कृमि होने के कारण भी दमा के लक्षण पैदा हो जाते हैं, लेकिन जब दवा दी जाती है तो दम ठीक हो जाता है।
गुण गुण- दमा से ग्रसित मां-बाप वाले के बच्चों में सामान्य लोगों की प्रतिबद्धता रोग से पीडित होने की संभावना ज्यादा होती है, पिता की बजाय मां यदि दमा से पीडि़त है तो बच्चों में दम होने की अनुमान अधिक होती है।
कठिन परिश्रम- किसी जगह का कठिन कार्य या परिश्रम भी दबदबे का दौरा शुरू करने में सहायक बन सकता है, नज़रों से जुड़ना या जोर से हंसने के ज्ञापन भी दमा के दौरे शुरू होते हुए देखते हैं।
मनोवैज्ञानिक कारण- विभिन्न शोधों से यह भी पता चला है कि मानसिक रूप से परेशान लोगों को अधिक होता है, वास्तव में प्रतिक्रिया स्वरूप ऐसा होता है। यह सही नहीं लगता है कि दमा केवल वृद्ध या अधिक उम्र के लोगों का रोग है बल्कि परंपरागत है तो बच्चों और अधेड़ व्यक्तियों में यह रोग वृद्धों की तीक्ष्णता अधिक होती है।
डेम के लक्षण
इसके प्रमुख लक्षण हैं हांफना या जोर की श्वास लेना है, लेकिन श्वासनली वापसी पर एक विशेष प्रकार की सीटी जैसी आवाज होती है, यह आवाज श्वास लंठों के रास्ते से किसी एक से हवा में जाने का कारण बनती है। सांस लेने में तकलीफ होने पर रोगी को खांसी भी हो सकती है, साथ में जुकाम या नजला का धुआं, जैसे-छींकें आना, सिर में भारी होने की आवाज आदि भी हो सकता है, यदि रोगी को हो तो उसे बुखार भी हो सकता है।
रोग का निदान- वैसे तो चिकित्सक लक्षण देखकर एवं परीक्षण रोग करके का पता लगाते हैं। लेकिन कुछ विद्वान करवाना भी जरूरी होता है, इससे कारणों के कारण का पता चलता है, कृमि रोग का उपचार करने से दमा के दौरों में कमी आ जाती है, इसी तरह रक्त की जांच, छाती का एक्स-रे भी चिकित्सक करवाते हैं , रोग के सटीक निदान के लिए कुशल चिकित्सक से जांच करवानी चाहिए।
कई दवाई दमे के मरीज को वर्जित रहता है इसलिए वह नए चिकित्सक को अपनी बीमारी के बारे में बतला दे तकि वह ऐसी दवाई न लिखी।
दमे की धूल, धुंआ और दूषित वातावरण से बचे तो ज्यादा अच्छा है, साथ ही उसे तेज गंध से भी बचने लगते हैं।
यदि एलर्जी उत्पन्न करने वाले पदार्थों या भोजन का पता चले तो हमेशा उससे दूर रहें, रोगी को यदि पशु से एलर्जी हो तो उनके पास न जाएं।
डैमेंस के मरीज धूम्रपान, विचित्र आदि से बचें।
ऐसे रोगी अधिक ठंडे पेय पदार्थों से भी परहेज करें, अधिक खट्टी या असलेदार चीजें भी न खाये कठिन परिश्रम और व्यायाम से भी बचें।
दमे के रोगी श्वसन संस्थान के संक्रमण से भी बचें, संक्रमण शुरू होते ही तुरंत दवा लें, बहुत पुराने और नाम वाले स्थानों में जाने से भी बचें।
बच्चों में मनोवैज्ञानिक कारणों से दम हो सकता है क्योंकि उन्हें दबाव के माहौल में न रखें, इसके अलावा बच्चों के चिकित्सक की सलाह लें।
दमा के मरिजों के लिए सबसे पहली और जरूरी बात यह है कि स्पष्टीकरण को हटाकर उन्हें तुरंत दिए गए विशिष्य का विशेष ध्यान रखा जाए।
दूध और उससे बने पदार्थों का सेवन करने वाले मरीज को नहीं चाहते हैं जिससे उनका आधा तो तुंरत ही आप ठीक हो जाते हैं।
शहद से शरीर को जरूरी गर्मी मिलती है। वीडियो रिकॉर्डिंग में माइक को खत्म कर देता है। मान लीजिए आपके सीने में जकड़न हो रही है और आपको लगता है कि दमा का दौरा पड़ जाता है। ऐसे में गर्म पानी में शहद डाल कर गर्म कर पी लें इससे आपको कुछ आराम मिलेगा।
दमें के बिमारी में अगर सिर्फ 200 गांव भी हुए मूंगफली खाते हैं तो आपको काफी फायदा होगा।
तुलसी के कुछ पत्ते, शहद और काली मिर्च में टोकरा रखें। तीन से चार घंटे ये दर्शाए रहें और फाइल को चबा लें। इससे दमा का दौरा होने की आशंका बहुत कम होती है।
नीम को शहद में मिलाकर रोजाना सुबह पेट लेने से भी शिकायत दूर हो जाती है।
दम के रोगी को सूर्य नमस्कार करने से शरीर के भीतर ऐसा होता है कि ऊर्जा पैदा होती है कि इसका निरंतर अभ्यास करने से दम प्रभावित नहीं होता।
प्राप्त करना अनिवार्य है गुरु दीक्षा किसी भी साधना को करने या किसी अन्य दीक्षा लेने से पहले पूज्य गुरुदेव से। कृपया संपर्क करें कैलाश सिद्धाश्रम, जोधपुर पूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन से संपन्न कर सकते हैं - ईमेल , Whatsapp, फ़ोन or सन्देश भेजे अभिषेक-ऊर्जावान और मंत्र-पवित्र साधना सामग्री और आगे मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए,