मन की अवस्थाएं अनन्त है, जो मनुष्य को अन्य विषय लोकों में ले जाती है, लाती है, इसकी तेज रफ्तार एक सैकण्ड में 32 लाख विचारों को जन्म देती है, जिससे विस्तारित होती है- ‘भावना शक्ति’, जो अनेकों आकांक्षाओं का मूर्तरूप ही है।
चलन-फिरना,उठना-बैठना, हंसना-रोना सब कुछ मन से संचालित होता है। जैसे इच्छा मन में जागती है, मनुष्य वैसे ही कदम भरता है जीवन में, अतः मनुष्य को संचालित करने की शक्ति मन के पास है, जिसने मनुष्य को अपना गुलाम बना रखा है।
मन ही जीवन को रेगिस्तान बना देता है और वही उसे हरा-भरा भी कर देता है, यही सुख-दुःख है, जो पूरे जीवन पर व्याप्त है। यदि मनुष्य है तो मन भी होगा, मन है, तो विचार भी उठेंगे और विचार है, तो उनको क्रियान्वित करने की भावना भी जागेगी ही। भावना अच्छी भी हो सकती है और बुरी भी।
एक अदना-सा व्यक्ति मन की तीव्रगामी धारा को रोक भी कैसे सकता है और यह न रोक पाने की क्षमता उसके जीवन की न्यूनताओं को परिलक्षित कर देती है, फिर जीवन का तात्पर्य, जीवन का प्रयोजन सब कुछ धरा का धरा ही रह जाता है। ज्यादा चिन्तनशील होने की आवश्यकता नहीं है, अपितु कुछ ऐसा क्रियान्वित हो, जो मन के अनुकूल हो, तभी जीवन का प्रयोजन सफल हो सकेगा, मनुष्य अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकेगा।
‘होलिका पर्व पर की जाने वाली साधना होली के विविध रंगो की भांति जीवन को साधनात्मक रंगो में रंग कर भौतिक और आध्यात्मिक दोनों ही लक्ष्यों को प्राप्त कराने का एक विशेष साधनात्मक पर्व भी है। जब साधक अपने समस्त पापों को होलिकाग्नि में तिरोहित कर सर्वस्व प्राप्त करने में सफल हो सकता है।’
प्रत्येक मनुष्य की प्रकृति भिन्न होती है, किसी अन्य से उसका कोई तालमेल नहीं होता। किन्तु सभी अपनी-अपनी डगर पर कुछ पाने की भावना से गतिशील है और अपने लक्ष्य तक शीघ्र पहुंच जाना चाहते है, परन्तु अत्यधिक परिश्रम, सूझ-बूझ के साथ कार्य करने पर भी वे अपने उदेश्यों की पूर्ति नहीं कर पाते। ऐसी स्थिति में सहयोगी है यह साधना
कालखण्ड जीवन का महत्त्वपूर्ण भाग है, यदि समय के अनुकूल किसी कार्य को किया जाये, तो उसका प्रभाव भी अनुकूल ही मिलता है, सर्वविदित है।
होलिका दहन का पर्व अपने समस्त विकारों को तिलांजलि देने का महत्त्वपूर्ण अवसर है। जिसकी प्रतीक्षा में बड़े -बड़े संन्यासी, योगी भी खड़े रहते है, कि कब वह दिन आयेगा, जब हम इस होलिका तंत्र को सम्पन्न कर अपने मनोवांछित कार्यो को पूर्ण कर सकेंगे और अपने प्रयोजन को सार्थक कर सकेंगे।
यह होलिका साधना अपनी कामना को पूरा करने का महत्त्वपूर्ण अवसर है, जो पूरे वर्ष में एक बार ही आता है और इस क्षण को चूकना अपने भाग्य को गंवाना ही कहा जा सकता है।
यह क्षण प्रत्येक गृहस्थ व्यक्ति के जीवन को श्रेष्ठता प्रदान करने का अनमोल क्षण है, यदि इसे सही अर्थो में समझा जाये और इसका लाभ उठाया जाये।
इसके बाद दिशा बन्धन करें। बाये हाथ में थोड़ा अक्षत लेकर निम्न मंत्र का उच्चारण करें-
ऊँ पृथ्वी पर रहने वाले सभी प्राणी वापस चले जाएँ।
ये भूता विघ्नकररस्ते नशंतु शिवाज्ञ्य।।
फिर अपने चारों ओर उस अक्षत को छिड़क दें।
फिर गुरू पूजन करें।
फिर संक्षिप्त भैरव पूजा करें।
इसके बाद यंत्र पर सिन्दुर का तिलक करें, अक्षत चढ़ायें तथा लाल पुष्प से पूजन कर, निम्न मंत्र का उच्चारण करें-
इस मंत्र का 21 बार उच्चारण करते हुये धूप, दीप दिखायें और नैवेद्य चढ़ायें।
इसके बाद निम्न मंत्र का 11 माला मंत्र-जप करें-
आकश में खींची सप्तरंगी इन्द्रधनुषी रेखा, आकाश की शून्यता की पूर्णता में परिवर्तित कर देती है, वैसे ही मनुष्य-मन पर भी यदि सप्तरंगी इन्द्रधनुषी रेखा खींच दी जाय, तो उसका जीवन भी रंगीला, रसीला, आनन्दयुक्त हो जाता है। सप्तरंग अर्थात् जीवन के सभी आयामों का सम्मिलित स्वरूप, जब मनुष्य जीवन के सब रंगो से युक्त हो जाता है, तो वह आकाश की तरह ही पूर्ण हो जाता है।
प्राप्त करना अनिवार्य है गुरु दीक्षा किसी भी साधना को करने या किसी अन्य दीक्षा लेने से पहले पूज्य गुरुदेव से। कृपया संपर्क करें कैलाश सिद्धाश्रम, जोधपुर पूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन से संपन्न कर सकते हैं - ईमेल , Whatsapp, फ़ोन or सन्देश भेजे अभिषेक-ऊर्जावान और मंत्र-पवित्र साधना सामग्री और आगे मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए,