सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति और पूर्ण ब्रह्मा, विष्णु और महेश द्वारा सम्पादित की जाती है, लेकिन सृष्टि की उत्पत्ति के साथ ही यह व्यवस्था विशिष्टता के रूप में चलती और विघ्न न आयें, इसका अधिकार भी विघ्नहर्ता को ही दिया गया है। विघ्नहर्ता गणेश जी की पूजा-उपासना करने वाले भक्तों के लिए वह विघ्नहर्ता और ऋद्धि-सिद्धि के प्रदाता हैं, इसीलिये श्री-गणेश को 'सर्व-विघ्नौघहरण, सर्वकामफलप्रद, अनन्तन्तसुखद और सुमंगलकारक' कहा गया है।
सभी प्रकार के देवता विभिन्न शक्तियाँ प्रदान करते हैं, लेकिन विशिष्ट कार्य के लिए विशिष्ट शक्ति प्राप्त करने के लिए ऋतिक का स्मरण, पूजन, विधिपूर्वक पालन करते हैं, इसीलिये सभी पूजनों में किसी भी कार्य को निर्विघ्न, पूर्ण फलयुक्त, मंगलमय रूप से करने के लिए श्री गणपति जी का पूजन किया जाता है।
भगवान सभी गणेश दुनिया में प्रथम पूज्य देव हैं। इनके बिना कोई भी कार्य, कोई भी पूजा अधूरी ही मानी जाती है। समस्त विघ्नों का नाश करने वाले विघ्नहर्ता गणेश की यदि साधक पर कृपा बनी रहे तो उनके घर में ऋद्धि-सिद्धि जो कि गणेश जी की पत्नियां हैं और शुभ-लाभ जो कि उनके पुत्र हैं उनका भी अस्थायित्व है। ऐसा होने से साधक के घर में सुख, स्वर, समृद्धि, मंगल, विकास, प्रगति एवं समस्त कार्य होते ही रहते हैं।
यह यंत्र आप में भगवान गणपति का प्रतीक है, प्रत्येक साधक को ऐसा यंत्र अपनी देह पर धारण करना ही चाहिए। इसके प्रभाव से ही व्यक्ति के घर-परिवार में सुख, शांति का वातावरण निर्मित होता है। साधक के जीवन में आ रही प्रत्येक कार्य में बाधा का समाधान मनोकामना पूर्ण और कार्य सिद्ध होते हैं।
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