नवग्रहों में सूर्य ही प्रधान ग्रह देवता है, सूर्य के बिना जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती, सूर्य ही जीवन तत्वों को पहचानकर्ता, उसे चैतन्य निर्माता, प्रकाश देने वाला, मूल तत्व है।
मकर संक्रांति का महत्व इस कारण सबसे अधिक बढ़ जाता है, कि उस समय सूर्य उस पर किसी भी रूप में जाता है, जब वह अपने संपूर्ण रश्मियों को मानव से अलग कर देता है। ये ग्रहण किस प्रकार के हो सकते हैं, इसके लिए चैतन्य होना आवश्यक है, तभी ये रश्मियां भीतर के रश्मियों के साथ मिलकर शरीर के काले-कण को जाग्रत करती हैं। सूर्य तो ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों की शक्तियों का स्वरूप है, इस कारण मकर संक्रांति पर तीव्र तंत्रेक्त साधनाएं करने से शीघ्र सफलता प्राप्त होती है।
मनुष्य का शरीर आप में सृष्टि के सभी तत्वों को समेटता है और जब यह खराब होता है तो शरीर दोष होता है, जिसके कारण व्याधि, दर्द, बीमारी का प्रकोप होता है, इसके अतिरिक्त शरीर की आंतरिक व्यवस्था का दोष के कारण मन के भीतर दोष उत्पन्न होते हैं, जो कि मानसिक शक्ति, इच्छा को हानि पहुँचाते हैं, व्यक्ति की सोचने-समझने की शक्ति, बुद्धि क्षीण होती है, इन सब वास्तविकताओं का नाश सूर्य तत्व को जाग्रत कर सकता है। क्या कारण है कि एक मनुष्य विकास के शिखर पर पहुंच जाता है और एक व्यक्ति का पूरा जीवन सामान्य ही बना रहता है, दोनों में भेद शरीर के भीतर जाग्रत सूर्य तत्व का है। नाभिचक्र, सूर्य चक्र का उदगम स्थल है और यह अचेतन मन के संस्कार और चेतन का प्रधान केंद्र है, शक्ति का स्रोत बिंदु है, साधारण स्रोत में यह तत्व सुप्त हो जाता है, न तो उनकी शक्ति का सामान्य व्यक्ति को ज्ञान होता है और न वही इसका लाभ उठाता है। इस तत्व को अर्थात् मणि के भीतर के सूर्य चक्र को जाग्रत करने के लिए बाहरी सूर्य तत्व की साधना की आवश्यकता है, इसकी सूर्य शाश्वत शक्ति का स्रोत है और इसे मनुष्य के भीतर के सूर्य चक्र के साथ जोड़ दिया जाता है, जो साधारण भी शाश्वत है मानसिक शक्ति का अधिकारी बन जाता है और जब यह तत्व जाग्रत हो जाता है तो बीमारी, दर्द, बाधाये मनुष्य के पास आ ही नहीं सकते।
मकर संक्रान्ति का जो पर्व है, वह संक्रान्ति अन्य सभी संक्रान्तियों से अलग है क्योंकि यही वह दिन है, जिस दिन भगवान सूर्य की प्रखरतादायक रश्मियों में विश्वकर्मा द्वारा सन्तुलन स्थापित किया गया और इसी कारण से इस दिन सूर्य एक ऐसे विशेष स्थान पर स्थित होता है , जबकि उसका संपूर्ण प्रखरता पृथ्वी को प्राप्त हो जाता है। सूर्य ही आधार है किसी भी संरक्षण का और इसी कारणवश इस दिन की गई प्रत्येक साधना फलप्रद होती है। लोक प्रॉक्सी में इस दिन पर पुण्य प्रदायक नदियाँ स्नान करने की एंटीरॉक रही हैं और उनके पीछे भी यही रहस्य छिपा है।
साधक अवसरों का उपयोग करता है, आपके मन में पूरे वर्ष भर से संजोकर रखा गया है किसी एक विशेष उपकरण को पूरा करने में, क्योंकि साधक के उत्सवमय होने का ढंग ही निराला होता है, वह आम लोगों की तरह खाने-पीने और शोरगुल मचाने को ही उत्सव नहीं, वरन अपने जीवन में साधना की वह चैतन्यता को स्थान देता है जो उसका संपूर्ण-पूरा वर्ष और संपूर्ण जीवन संवार दे।
बाहर यह सूर्य तो वर्ष के 365 दिन जाग्रत है, लेकिन इसके द्वारा सूर्य तत्व को कुछ विशेष मुहूर्तों में जाग्रत किया जा सकता है और इसके लिए मकर संक्रांति से वृद्धि कर कोई सिद्ध मुहूर्त नहीं है।
मकर संक्रांति के दिन ही भगवती लक्ष्मी का प्रादुर्भाव हुआ। जब लक्ष्मी की उत्पत्ति देवसुर संग्राम के अवसर पर समुद्र मंथन के द्वारा हुई, तब वह कन्या थी और क्योंकि जिस स्थान पर समुद्र मंथन हुआ, जिस स्थान पर समुद्र मंथन के गर्भ से लक्ष्मी की उत्पत्ति हुई, उस स्थान को आज कन्याकुमारी कहते हैं, जो भारतवर्ष के दक्षिणी छोर पर है। यह एक ऐसा स्थान है, जहां तीन समुद्र एक साथ मिलते हैं और समझौते पर कन्याकुमारी का पवित्र और श्रेष्ठ मन्दिर है, हजारों-लाख लोग भारतवर्ष से दक्षिण में कन्याकुमारी स्थान पर जाते हैं और उनकी प्राकृतिक छटा देखते हैं, समुद्र का खुला मिलन और तीन समुद्रों का संगम देखते हैं, जहां पर सूर्योदय विश्व प्रसिद्ध है। जो भी कन्याकुमारी जाती है, वह प्रातः काल उठकर सूर्योदय को देखने की अभिलाषा मन में अनिवार्य है, कन्याकुमारी का सूर्योदय अपने आप में अद्भुत है, ऐसा लगता है कि जैसे समुद्र में धीरे-धीरे धीरे-धीरे र्स्वण कलश बाहर निकल रहा हो, ठीक वही सोने की तरह चमचमाता हुआ कलश, जिसमें अमृत और तेजस्विता भरी हुई है, चारों तरफ आगाध समुद्र है, जहां तक दृष्टि जाती है, समुद्र की लहरें दिखाई देती हैं और उन लहरों के बीच सूर्य की ओर इशारा करती हैं तो आप अपने में एक अदभुत और अपूर्व दृश्य दिखाई देने लगता है।
समुद्र मंथन के बाद जो रत्न निकले, उन सौतेले भाई के रत्न में श्री लक्ष्मी का भी एक रत्न था, मगर वह कन्या थी, अविवाहित थी, कुंवारी थी और इसका प्रतीक स्वरूप उस स्थान पर कन्याकुमारी के मंदिर का निर्माण किया गया, एक पवित्र भूमि का आविर्भाव हुआ और आज भी उन कुंवारी लक्ष्मी के विग्रह को देखने के लिए हजारों-हजारों की संख्या में आ रहे हैं।
इसके कुछ ही समय बाद भगवान विष्णु अवतारित व्याभिचार और उस समुद्र के किनारे ही लक्ष्मी को पत्नी के रूप में स्वीकार किया और यही समय मकर संक्रांति पर्व है, जब कुंवारी कन्या का पाणिग्रहण भगवान विष्णु के साथ होता है, इसीलिये इस दिन का विशेष महत्व है ।
जो साधक मकर संक्रान्ति के विधान को पूरी तरह से संपन्न करता है, इस विशेष मुहुर्त पर लक्ष्मी की गण करता है, सूर्य की गण करता है, विष्णु की गण करता है, तो जहां एक ओर उसके जीवन के दोष दूर होते हैं, दर्द होता है, व्याधि, बीमारी का निवारण होता है, वहीं लक्ष्मी साधना से जीवन की दरिद्रता, दुर्भाग्य से ऋण का नाश होता है और लक्ष्मी का स्थायी निवास बन जाता है।
इस महापर्व के प्रथम दिन माघ कृष्ण पक्ष 14 जनवरी 2023 शनिवार को पूर्ण होने जा रहा है। इस दिन महालक्ष्मी के विशेष स्वरूप को विशेष प्रकार से साधन संपन्न किया जाता है।
इस दिन लक्ष्मी के सिंहवाहिनी रूप और कमलधारिणी संदर्भ की साधना की जाती है और लक्ष्मी उपनिषद् में लिखा है, कि जो साधक मकर संक्रान्ति पर लक्ष्मी के इस स्वरूप का ध्यान करता है, उनके घर में लक्ष्मी मूल रूप से निवास करती है, क्योंकि सिंह सभी दुर्भिक्ष, अभाव और दुर्भाग्य को समाप्त करने वाला है, रोग और पापों का भक्षण करने वाला है, अलस्य और जीवन के न्यूनताओं को दूर करने वाला है, वहीं कमल को आलोकित करने वाला निरंतर चैतन्य तत्व है, इस प्रकार इस विशेष दिन लक्ष्मी के इस विशेष रूप से साहित्य को पूरा करने का सिद्धांत जीवन में पूर्णता प्राप्त करना है।
इस मशीन का निर्माण कुछ विशेष मुहुर्त में किया जाता है और सबसे बड़ी बात यह है कि इसकी स्थापना केवल मकर संक्रांति कल्प में ही की जाती है। ऐसा महायंत्र घर में स्थापित होने पर कर्ज समाप्त हो जाता है, घर में लड़ाई-झगड़े दूर होते हैं, व्यापार-वृद्धि होने लगती है, आर्थिक विकास और राजकीय दृष्टि से सम्मान प्राप्त होता है।
इस महायंत्र में लक्ष्मी से संबंधित प्रत्येक ग्रंथ में विशेष विवरण आया है, प्रत्येक ऋषि ने अपना महत्व स्वीकार किया है, यहां तक कि तंत्र के सर्वोपरि गुरु गोरखनाथ जी ने भी इस यंत्र का तांत्रिक महत्व और मांत्रिक महत्व को विशिष्ट बताया है।
दमन-विधान
इस विधि का विधान अत्यंत सरल है और साधक स्वयं इसे पूर्ण करते हैं, इस आवश्यक सामग्री की व्यवस्था से पहले कर लें। मकर संक्रांति कल्प में 14 जनवरी 2023 की रात को स्नान करने के बाद ज्ञापन शुद्ध वस्त्र धारण कर अपने पूजा स्थान में बैठ जाएं और सामने एक लकड़ी के बाजोट पर अर्थात् पीला रेशमी वस्त्र बिछाएं व पहले अलग पात्र में इस 'सिंह वाहिनी महालक्ष्मी महायंत्र' को जल से तथा दूध, दही, घिसाव, शहद और शक्कर से स्नान करके शुद्ध जल से धो-पोंछ कर इसे रेशमी वस्त्र पर स्थापित कर दें और केसर से इस महायंत्र पर नौ बिन्दियां लगायें, जो नवनिधि का प्रतीक है।
विनियोग- हाथ में जलकर विनियोग करें।
इस श्री महालक्ष्मी हृदयमाला मंत्र के ऋषि भार्गव हैं और देवता श्री महालक्ष्मी हैं,
अनुष्टुपआदि नानाछन्दासि, श्री बीजम् ह्रीं शक्तिः, ऐं कीलकम् श्री महालक्ष्मी प्रसीद
पूर्णता के उद्देश्य से जप का अनुप्रयोग.
इसके बाद साधक हाथ में जल लेकर संकल्प करें, कि 'अमुक गोत्र, अमुक पिता का पुत्र, अमुकनाम का साधक मकर संक्रांति पर्व पर भगवती लक्ष्मी को नवनिधियों के साथ अपने घर में स्थापित करने के लिए साधन संपन्न कर रहा हूं।'
ऐसा कर हाथ में हुआ जल जमीन पर छोड़ दें, और फिर यंत्र के सामने शुद्ध घृत के पांच दीपक लगायें, सुगन्धित अगरबत्ती प्रज्वलित करें और दूध के बने प्रसाद का नैवेद्य समर्पण करें, इसके बाद हाथ जोड़ कर ध्यान दें।
ध्यान
हस्तद्व्येन कमले धारयन्ती स्वलील्या।
मैं देवी लक्ष्मी के बारे में सोचता हूं जो हार और पायल पहनती हैं
इसके बाद साधक कमल माला से निम्न मंत्र की 11 माला मंत्र जप करें, इसमें कमल माला का ही प्रयोग होता है।
इसके बाद साधक लक्ष्मी की आरती प्राप्त करें और यंत्र को अपनी तिजोरी में रखें या पूजा-स्थान में रहने दें, तथा प्रसाद को घर के सदस्यों में वितरित कर दें इस प्रकार मकर संक्रांति कल्पवास के प्रथम दिन यह साधन महत्वपूर्णा उपलब्धि की जाती है ।
प्राप्त करना अनिवार्य है गुरु दीक्षा किसी भी साधना को करने या किसी अन्य दीक्षा लेने से पहले पूज्य गुरुदेव से। कृपया संपर्क करें कैलाश सिद्धाश्रम, जोधपुर पूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन से संपन्न कर सकते हैं - ईमेल , Whatsapp, फ़ोन or सन्देश भेजे अभिषेक-ऊर्जावान और मंत्र-पवित्र साधना सामग्री और आगे मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए,