और सूर्य को शिव के रूप में जाना जाता है, सूर्य के रूप में शिव।
सूर्य और शिव में कोई अंतर नहीं है
एष ब्रह्मा च विष्णुश्च रुद्र एव हि भास्करः।
सूर्य तीनों रूपों की आत्मा और तीनों वेदों की आत्मा है और इसमें सभी देवता समाहित हैं।
सूर्य एवं शिव में कोई भेद नहीं है क्योंकि ब्रह्मा, विष्णु व रूद्र तीनों देव स्थित हैं। सूर्य हमारे प्रत्यक्ष देवता हैं।
ज्योतिष और सूर्य-
सूर्य के बिना जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती, सूर्य ही वह परम तत्व है, जो कि संसार के सभी तेज, दीप्ति और कान्ति के निर्माता और इस जगत की आत्मा गए हैं, सूर्य ही वह विराट पुरुष आदि देव हैं, दिन साधना-उपासना से समस्त रोग, आंख-दोष और ग्रह-बाधा दूर होती है, क्योंकि सूर्य अपनी शक्ति न केवल पृथ्वी को अपितु चंद्र, मंगल, बुध, गुरू, शुक्र, शनि आदि को भी उचित रूप से प्रदान कर इस सृष्टि का संचालन करते हैं।
सूर्य को आत्मकारक ग्रह माना जाता है। सूर्य ग्रहराज हैं और कभी वक्री नहीं होते, सदैव मार्गी ही रहते हैं, सिंह राशि स्वामी के हैं और स्थिर स्वभाव के, क्षत्रिय वर्ण, विद्या व्यक्ति, तेज, प्रभाव, स्वाभिमान के कारक ग्रह हैं, सूर्य के चंद्र, मंगल, बृहस्पति मित्र ग्रह और शुक्र, शनि शत्रु ग्रह हैं, सूर्य सभी योजनाओं के दोष-प्रभाव शमन कर सकते हैं।
सूर्य उपासना-सूर्य के संबंध में शास्त्रों में इतना अधिक महत्व और साहित्य लिखा है, कि इस लेख में वह सब वर्णन करना असंभव नहीं है, क्योंकि सूर्य के संबंध में प्रत्येक व्यक्ति के जीवन को प्रभावशाली और रोगी अनुपयोगी शरीर के साथ-साथ की इंद्रियों को तीव्र प्रभाव देने वाला है बनाने में सक्षम है, व्यक्ति की वाणी में ज्ञान और आकर्षण देने के लिए सूर्य की साधना की आवश्यकता है।
सूर्य ही समस्त जगत का प्रकाशक एवं आत्मा है, उसके सभी किरणें ज्ञात-अज्ञात पदार्थों में जीवन प्रदान करती हैं और सभी वनस्पतियाँ सूर्य के कारण ही मनुष्य के लिए योग्य हैं, इसीलिये सूर्य की उपासना का महत्व है, सूर्य साकार स्वरूप है, जिसे सभी पूजन में सर्व-प्रथम अर्घ्य अर्पित किया जाता है, इसका तुल्यांकी अन्य देवी-देवताओं का पूजन किया जाता है।
जिस व्यक्ति में सूर्य तत्व की उत्पत्ति होती है, वह व्यक्ति के जीवन में एक व्यक्तिरूपी कीट के समान होता है, जिसके जीवन का कोई महत्व नहीं है और न ही वह किसी व्यक्ति के जीवन में कुछ कर सकता है। सूर्य में उतनी ही हानिकारक रोग शक्ति है, वह संसार के किसी अन्य पदार्थ में नहीं है।
युवा पुत्र दानवीर कर्ण का जन्म कुन्ती को मिला एक वरदान से हुआ था। एक बार दुर्वासा ऋषि अपने पति के महल में पधारे। तब कुन्ती ने पूरे एक वर्ष तक ऋषि की श्रद्धा भाव से सेवा की कुन्ती के सेवा भाव से प्रसन्न होकर अपनी दिव्य दृष्टि से ज्ञात किया कि पाण्डु से कुन्ती को सन्तान नहीं हो सकता और उसे ये वरदान दिया कि वह किसी भी देवता का स्मरण कर उन्हें सन्तान आय कर सकता है। एक दिन रहनेवाले कुँआरेपन में ही कुन्ती ने सूर्य देव का ध्यान किया। इससे सूर्य देव प्रकट होता है और उसे एक पुत्र दिखाई देता है जो सूर्य के समान था और वह कवच और कुण्डल लेकर आया था जो जन्म से ही उसके शरीर में आया था। क्योंकि वह अभी भी अविवाहित थी क्योंकि समाज के डर से उसने पुत्रों को एक शिकार में रख कर गंगाजी में बहा दिया। जो सूत पुत्र कर्ण के नाम से विख्यात हुआ।
तड़पते बेटे दीना
पुत्रदा एकादशी पर्व का सबसे अधिक महत्वपूर्ण संदर्भ सूर्य साधना है, सूर्य के बिना किसी वस्तु के दृश्य-दृश्य की कल्पना ही नहीं की जा सकती। इस दिन साधक प्रातः सूर्योदय से पहले उठकर स्नान कर सफेद वस्त्र धारण करें, सूर्य की ओर मुंह कर सूर्य नमस्कार करें, एक ताम्र पात्र में पुष्पों के साथ तीन अर्घ्य चिह्न लगाएं।
अपने सामने सूर्य शक्ति युक्त पुत्र प्राप्त यंत्र को स्थापित कर उस पर चन्दन, केसर, सुपारी तथा लाल पुष्प अंकित कर इसके साथ ही गुलाल तथा कुंकुम के साथ-साथ सिंदूर भी अर्पित करें और अपने सामने सिंदूर को शुद्ध जल में घोल कर दोनों ओर सूर्य चित्र बनाएं और पुष्पांजलि अर्पित करते हुए प्रार्थना करें- 'हे आदित्य! आप सिंदूर वर्णीय, तेज मुख मंडल, कमल नेत्र स्वरूप वाले ब्रह्मा, विष्णु तथा रूद्र सहित सृष्टि के मूल कारक हैं, आपको इस साधक का नमस्कार! आप मेरे द्वारा अंकित कुंकुम, पुष्प, सिंदूर एवं चन्दनयुक्त जल का अर्घ्य ग्रहण करें।'
सूर्य शक्ति युक्त पुत्र देखने पर कुंकुम से बारह स्वरूपों का स्मरण करते हुए 12 बिन्दियां लगाएं। जो सूर्य के 12 संदर्भ हैं, तत्पश्चात् पूर्व की ओर मुंह कर 'सूर्य शक्ति युक्त पुत्र प्राप्त यंत्र पर केसर, कुंकुम से अपने ललाट दिशा पर तिलक कर पुत्राप्राप्ति मंत्र की 11 मातृभूमि, सूर्य शक्ति युक्त पुत्र धारण मंत्र जप करें।
मंत्र जप पूर्ण होने पर गुरु आरती संपन्न कर गुरुदेव से साधना में सफलता का आशीर्वाद प्राप्त करें। दैनादिमाग की भेंट की प्लेट और यंत्र को किसी दिन गुरु चरणों में अर्पित कर दें।
प्राप्त करना अनिवार्य है गुरु दीक्षा किसी भी साधना को करने या किसी अन्य दीक्षा लेने से पहले पूज्य गुरुदेव से। कृपया संपर्क करें कैलाश सिद्धाश्रम, जोधपुर पूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन से संपन्न कर सकते हैं - ईमेल , Whatsapp, फ़ोन or सन्देश भेजे अभिषेक-ऊर्जावान और मंत्र-पवित्र साधना सामग्री और आगे मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए,