एक के लिए प्रेम और शांति दी और दूसरे के लिए एलेक्स और व्याकुलता दी। जब हम सत्य से युक्त होते हैं तो प्रेम और गति से संभावना होते हैं लेकिन जैसे ही हमारे भीतर दुनिया की सूरत दिखने लगती है, झूठ आने लगता है तो दुनिया के मालिक परमात्मा ने उस स्थान पर हमारे भीतर दी और व्याकुलता दे दी। जब तक इन्सान बच्चे भोलापन अपने भीतर रखता है, उसके भीतर समन्वय नहीं रहता है। जैसे-जैसे माया की परत किसी व्यक्ति के ऊपर चढ़ती विचार वैसे-वैसे अशांत होगा। इसलिए कहा गया है कि मनुष्य का व्यवहार उतना ही कृत्रिम है, दिखता है, दिखावे वाला है, उतना ही अशांत है और जितना सहज, सरल, प्रेमपूर्ण, उतना ही समान वह जहाज और आनन्दित है।
कोई दुनिया में अशांति नहीं चाहता चाहता हूं कि कार्य समन्वय के लिए होगा। कोई दुःख नहीं चाहता चाहता लेकिन फिर भी दुःख के बीज बोयगा कोई भी आदमी नहीं चाहेगा कि मेरे मन की चैन छिन जाए लेकिन खुद ही वह जालें बुनाई लग जाता है जिसके कारण उसका चैन छिन जाता है।
आज की दुनिया में सबसे ज्यादा लोग अट्रेक्स के कारण, मानसिक उद्वेग के कारण, व्याकुलता के कारण परेशान हैं। इसलिए आज दुनिया में नींद न आने की बीमारी व्यक्ति में तेजी से बढ़ रही है। व्यक्ति नींद और अवसाद के कारण भी परेशान होता है। आत्मा रहना, दृष्टिकोण रहना, दिल का कमजोर होना, रोने को मन करना क्रोध या ज्यादा आना, अकेले रहना अच्छा लगता है और किसी की कोई अच्छी न पहचान हो तो समझ लेना चाहे के कहीं-न-कहीं हम अवसाद के शिकार होने लगें गया और उसी के परिणाम स्वरूप जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है, जिससे किसी व्यक्ति का जीवन तनावग्रस्त हो जाता है। ये सबसे पता चलता है कि हम सब उस तनाव के रोग से ग्रस्त हैं जो आज के समय की महामारी है। प्रश्न है कि ये सब चीजें क्या होती हैं, यह तनाव क्या है? यह मन क्या है? मनोविज्ञान का सहारा लेकर अगर सोचे तो हमारे मस्तिष्क में चार चीजें महत्वपूर्ण हैं- मन, बुद्धि, चित्त, अहंकारी (अहं तत्त्व)। इन्हें कहा जाता है कि यह चार उपकरण हैं।
मन है, मन के पीछे बुद्धि है। मन का काम है संकल्प-विकल्प करना। अच्छा डाकिया या बुरा लगता है। मन एक वकील की तरह है, लेकिन इसके पीछे बुद्धि है, जो जज का कार्य करती है, निर्णय लेती है। 'धरणावती बुद्धि निश्चयात्मिका बुद्धि, बुद्धि धारणाये और निश्चय करने के कार्य करती है। डिजन लेगी, फरमान जारी। यही बुद्धि का कार्य है। बुद्धि के पीछे चित्त का सरोवर है, जिसमें हमारी सब कुछ केंद्रित होते हैं, जिसके भीतर हर्ष और शोक की लहर हर समय उठती रहती है और इन सब के पीछे अहं तत्व है। अहं तत्व अपनी ''मैं'' को बनाए रखता है।
ब्रेन ऐसा है कि वह कुछ ज्यादा नहीं दे सकता। आप कितना सह सकते हैं? मनुष्य के भीतर महत्वाकांक्षा बहुत अधिक हो, बहुत कुछ बनना चाहता है नहीं पाया, सपने पूरे नहीं हो पाते तो तनाव आयेगा भीतर। बहुत ज्यादा महत्वाकांक्षा को पैदा करोगे तो तनाव आएगा। इसलिए जो है, जितना है, जिस तरह का है उसमें सन्तुष्ट रहना शुरू करें। खुशी मनाएं और आगे बढ़ने का जो अवसर है उसे छोड़ो नहीं, उस पर आगे बढ़ें जाओ तो आप खुश रहेंगे और बहुत से एमिशन इलेक्शन, तो एम्बिशन टूटेगी और मन पर चोट लगेगी। इसलिए भी चोट लगेगी की जब आदमी सोचता है कि मुझे इतना लाभ होता ही लगेगा, वह हुआ तो भी दुःखी नहीं होगा। कम समय में सबसे आगे जाने की जो लालसा है वह भी तनाव पैदा करती है।
जीवन में जो निरंतर चल रहे हैं, नियमित चल रहे हैं, ठीक-ठीक काम करते चल रहे हैं, वे लोग अपनी मंजिल तक जुड़ेंगे और सुखी होंगे। इसलिए नियमित रूप से अपने काम में लें। नियमित का मतलब है पूरी व्यवस्था अपनी आपके कार्य क्षेत्र में नहीं चलती तो समस्याये अपना कार्य कर विचार, तनाव बढ़ता चला जाएगा। एक आदमी सीधे-साधे ढंग से चला जाए, अपना कार्य जारी रखता है, अपना कार्य पूरा रखता है, किसी के साथ फालतू बात न करें। जिससे ऐसा होगा की आप बहुत सारे तनाव से बच सकते हैं। एकदम उसी तरह शुरू होता है जब किसी की निंदा-चुगली में शामिल होंगे, किसी की आलोचना करेंगे, किसी के साथ रुककर किसी के पक्ष में चलेंगे।
जो लोग आवश्यकताएँ रखते हैं उन्हें बहुत बढ़ा दिया जाता है और विशिष्ट से ताल-मेल नहीं रखते हैं, वे निश्चित रूप से तनाव में रहेंगे और दुःखी रहेंगे। आवश्यकताएँ बढ़ेंगी तो दुःख ही बढ़ेगा। आवश्यकताये कम कर लोगे तो इससे सुख मिलेगा।
का मन ऐसा है कि यदि आप किसी चीज को बहुत ज्यादा महसूस करेंगे तो वह इतना बढ़ सकता है कि उसके कारण आप दुनिया के बड़े-से-बड़े सामंल ले सकते हैं और अगर हंसकर टालना पसंद करते हैं तो बात कुछ भी नहीं है, एक पापियों में आप झटपट उड़ सकते हैं। मनुष्य को परमात्मा ने स्वर्ग दिया था लेकिन स्वर्ग को नरक बनाने का काम किसने किया, हम लोगों ने ही तो किया। हम लोग ही अपने स्वर्ग को नरक बनाने लगे हैं।
मनुष्य का जो चेतन है उसका विकास बहुत बड़ा है। समझ का विकास-जितना होगा, वह बड़ा-से-बड़ा संघर्ष पूर्ण कार्य कर सकता है और घबराहट भी नहीं करेगा। लेकिन उसे अपना चेतन का विकास करना चाहिए। चेतन का विकास जितनी तेजी से होता है, जीवन में उतनी ही घटतियां घटेंगी। फिर आप बड़े संकट लेते हैं, आपको संकट, संकट नहीं दिखते हैं दुनिया के बड़े आदमी बड़े-बड़े काम करते हैं लेकिन तनावग्रस्त तो नहीं सोचते। तो उस विद्या को गोद लेने से व्यक्ति बड़ा-से-बड़ा संघर्ष कर सकता है और हंसते-हंसते कर सकता है। उस विद्या को जानना बहुत जरूरी है।
इसलिए आने वाले नववर्ष में अपने जीवन में निरन्तर विकास, सफलता व पूर्णता को पूर्णरूपेण आत्मसात करने के लिए नित्य क्रियाशील रहने की आवश्यकता है। जिससे आपके जीवन में उच्चता, विकास, धन-धान्य, सुख-सौभाग्य, समृद्धि आदि सुस्थितियों का विस्तार होता है और जीवन में आने वाले रोग, पीड़ा, पीड़ा बाधा, शत्रु आदि विषम आशंका का विनाश हो सकता है। कर्म प्रधान व्यक्ति ही अपने जीवन में सफलता को ग्रहण करते हुए सभी क्षेत्रों में पूर्ण प्राप्त कर पाता है। इस कारण यह हमारा कर्तव्य है कि हम जीवन में सद्कर्मों को प्राथमिकता दें।
धन श्रीमाली
प्राप्त करना अनिवार्य है गुरु दीक्षा किसी भी साधना को करने या किसी अन्य दीक्षा लेने से पहले पूज्य गुरुदेव से। कृपया संपर्क करें कैलाश सिद्धाश्रम, जोधपुर पूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन से संपन्न कर सकते हैं - ईमेल , Whatsapp, फ़ोन or सन्देश भेजे अभिषेक-ऊर्जावान और मंत्र-पवित्र साधना सामग्री और आगे मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए,