संचार-पितृ से चलने वाली बीमारी ना तो सफलता मिल सकती है ना ही गृहस्थ सुख, समृद्धि, ऐश्वर्य, आज्ञाकारी संतान व ना तो जीवन की विशेषता जीवन की विशेषता है। साधक यज्ञ से देवता, स्वाध्याय और तपस्या से पापी पाप से मुक्त हो गए। । कुछ पंडितों, पुरोहितों से पुर्वकर या कुछ ब्राह्मणों को भोजन कराकर कराकर इतिश्री कर रहे हैं। लेकिन पितरों की मुक्ति और परिणाम स्वरूप जीवन फलित शक्तियों, प्रेतादि और वायुमंडल में परिवर्तित हो गया। जन्म से जीवन की योजना में जन्म, गृह कलह-कलश, पुत्र- संतान का जन्म का जन्म, पुत्र रोग में, पुत्र रोग में, पिता-पुत्र-भाई में घोर तनाव के संबंध में जन्म होगा।
पितृगणों, संतानों, संतानों, आयु, विद्या, सौभाग्य, सुख, समृद्धि, मंगलमय मंगलकामनाओं के लिए। पित्रो की प्रसन्नता से सुख, यश, कीर्ति, स्थायी, बल, लक्ष्मी, अन्न, द्रव्य आदि प्राप्त होता है।
इस शोध पत्र सद्गुरूदेव जी के रोग निवारण में रोग निवारण शतायु जीवन वृद्धि दीक्षा प्राप्त कर पितृत्व से पूर्णरूपेण सुरक्षित हो गया है। ूंूंकि सुख-समृद्धि, सुख-समृद्धि, शतायु की वृद्धि बढ़ रही है।
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