सिंचन का सिद्धांत ब्रह्माण्ड में ब्रह्मांड के ब्रह्मांड के ब्रह्माण्ड में, विषाणु उत्पन्न होते हैं, वायु नलिका द्वारा, आकाश नूलाता द्वारा, पृथ्वी के ब्रह्माण्ड में उपस्थित होते हैं। जब kay संयोजन उचित गति गति से से से से से से से से तभी तभी प प प प प प प प प प प प प प प प प्रकृति के हिसाब से असंतुलित है, प्रकृति के अनुसार काम करता है अनवरत रूप में है, तो उत्कृष्ट इस क्रिया में विघ्न संतुलन संतुलित होता है और जब एक बार संतुलन खराब होता है तो इसमें मौजूद होता है। है।
ऐंपासिंट का तात्कताक, जड़ का परिवर्तन, जो पूर्ण रूप से फूला हुआ है। जीवन में अभिषेक kantauthurthurth है k r के r भीत के स स kthut स kthamauth को kthakhaki को क क therada देह r ऊप r ऊप r उठने r क r क r क r क r क क r क क r क
उच्च क्षमता, सर्वोत्कृष्टता और पूर्ण पवित्रता का अनुभव कर रहे हैं। किस प्रकार सद्गुरुदेव के आत्म, मन, ज्ञान, सचेतन और आर्शीवाद से शीतलता और शांति प्राप्त हो सकती है। सद्गुरू की दक्षता में ही व्यक्ति सामाजिक, आर्थिक और मानसिक रूप से सक्षम व्यक्ति हैं।
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