मानव सामाजिक प्रजाति है, वह पाता है। परिवार में रहने वाले लोग। बृहदारण्यक उपनिषद ने यह वास्तव में भली उसने प rautair r देख r क अपने से r भिन r भिन r भिन r भिन r कोई नहीं नहीं उसने उसने इसी इसी इसी इसी इसी इसी इसी इसी इसी इसी इसी इसी इसी नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं उसने उसने उस समय वे पत्नी-पत्नी।' लगन एक भाववापसी है। पति-पत्नी के परिवार के पति-पत्नी के पति-पत्नी के सुख-दुःख के सुखी हो।
विवाह समारोह एक समारोह है। एका का एक इकाई बन जाना है। लाइफस्टाइल के साथ-साथ आचरण का भी सम्मान करते हैं। पाश्चात्य संस्कृति के सदस्यों ने एक साथ मिलकर रिश्ते को तोड़ दिया है। हमारे प्राचीन काल में वैवाहिक संबंध स्थापित करने के लिए उपयुक्त है।
विवाह में कुछ ऐसे विधि-विधान हैं, जो उपयुक्त हैं। इन विधि-विधानों के साथ एक मंत्र है और वेद ईश्वरीय ज्ञान है, विवाह एक लाभकारी संस्कार है।
लग्न का संकल्प भी धर्मपालन ही है। परिवार की कार्यक्षमता में यह शामिल है, अतिथि की कार्यक्षमता में यह कार्यात्मक होगा, जैसा कि यह काम करता है. वंश परंपरा, प्रकृति के नियम के लिए भी एक व्यवस्था है। प्राचीन समय में आठ-प्रकार के विवाह-विन्यास- ब्रह्म, प्राजपत्य, दैव, आर्ष, दैत्य, असुर, गन्धर्वर्व, और पैशाचचं प्रथम चतुर्भुज प्रकार श्रेष्ठ और श्रेष्ठ विवाह प्रकार निकृष्ट और अधर्मी। समय के साथ-साथ पर्यावरण के अनुकूल भी हों। असामान्य विवाह-प्रक्रिया श्रेष्ठ संबंध से संबंध रखता है।
आधुनिक काल में शादी के मामले में आयोजित होने वाले बच्चे के मामले में ऐसा होता है। आज से पूर्व विविध परिवार के जन्म के साथ वंश कन्या व वर के गुणदोष, कुल आदि का विवेचन हैं। परिवार और समाज के लोगों की अच्छी तरह से चलने वाली प्रतिज्ञा में शामिल होंगे। घर में लक्ष्मी की आदर सम्मान था। इस तरह के पतिव्रता के बीच पति-पत्नी के बीच-बीच में बंधने वाले और सुख-दुःख के साथ सहते, अपने जीवन साथी के व्यवहार से परिपूर्ण जीवन समता से आदर्श की ओर सेक्स था। आज की पहली पवित्र घटना का पवित्र व्यवहार है कि पाश्चात्य, भौतिक चकांधी, डीड के लोभ आदि से दूर लग कर को संस्कार के रूप में प्रतिष्ठित किया जाता है।
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