यदि इसी जीवन में भौतिक और आध्यात्मिक रूप से पूर्णत्व प्राप्त करना है, हर कार्य में सफल होना हैं, अपने जीवन को ऊर्ध्वगामी बनाना है तथा समस्त पाप-दोष, बाधाओं को समाप्त कर, मानवीय जीवन के लिये अपेक्षित समस्त सुख और भोगों को प्राप्त करना है, अपने आप को पूर्ण पुरूषोत्तम और शक्ति युक्त बनाना है तो जन्म जन्म के पाप दोषों का शमन करना अति आवश्यक है और ये हो सकता है दुर्लभ पाप मोचनी शक्तिपात दीक्षा के माध्यम से। क्योंकि कई जन्मों की तृष्णायें, वासनायें, कर्म, पाप राशि, पुण्य कार्यों को मिलाकर ही एक नये जन्म का सृजन होता है। व्यक्ति केवल अपने वर्तमान जीवन के कर्म ही नहीं होते, साथ में जन्म-जन्मान्तरों और पूर्वजों का कर्म भी उसको भोगना पड़ता है। इसी के कारण जीवन और साधनाओं में बाधायें, असफलातयें प्राप्त होती है।
क्योंकि जीवन का ताना-बाना जिस प्रकार से गुथा-बुना होता है उसको समझना सहज कार्य नहीं है और न व्यक्ति अपनी समस्त प्रवृत्तियों, इच्छाओं, आकांक्षाओं का मूल समझ सकता है। उसकी दृष्टि के समक्ष जो कुछ होता है और जहां तक उसकी स्मृति उसका साथ देती हैं, वह एक छोटा-सा पल होता है साथ ही इस जन्म से लगा कर पीछे कई जन्मों के पाप, दोष हमारे जीवन में होते ही है। उसको हम नकार नहीं सकते। इसका सीधा सा उदाहरण है, कि व्यक्ति को अपने जीवन के प्रारम्भ के चार-पांच वर्ष की स्मृति नहीं होती है और अपने बचपन की यादे धुंधली सी लगती हैं, तो क्या इससे यह सिद्ध होता है कि हमारा बचपन ही नहीं था? उसी प्रकार जीवन के कई-कई जन्म-जन्मान्तरों के पाप, दोष होते ही है जो हमारे हर कार्य में बाधा और परेशानियां बनकर आते है।
मृत्यु जीवन का अंत नहीं है, अपितु नये जीवन का निर्माण है, फलस्वरूप मनुष्य को मृत्यु के बाद भी छुटकारा नहीं मिलता, उसे अधूरे जीवन को पूर्ण करने के लिये हर बार जन्म लेना ही पड़ता है और इस प्रकार मनुष्य जन्म-मरण के इस चक्रव्यूह से कभी निकल ही नहीं पाता, अपितु और ज्यादा उसमें उलझता ही चला जाता है इसीलिये जीवन में सद्गुरूदेव का होना अत्यन्त आवश्यक है क्योंकि गुरू ही अपने शिष्य को समस्त बन्धनों और बाधाओं से बाहर निकाल कर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को प्रदान करते है।
सद्गुरूदेव अपने शिष्य की भावभूमि को जान जाते है, कि वह केवल भौतिक उन्नति के लिये ही गुरू से जुड़ा है और वह अपनी आध्यात्मिक उन्नति के लिये भी तत्पर है। गुरू जान जाते हैं कि शिष्य का उद्देश्य क्या है। इसीलिये गुरू शिष्य को श्रवण नक्षत्र युक्त चैत्रीय एकादशी सिद्ध योग शिव सोमावार पर्व पर ‘पापमोचनी जगदम्बा अक्षय शक्ति दीक्षा’ प्रदान करते है। जिससे शिष्य अपने जीवन में सभी दृष्टि से पूर्णता प्राप्त करता है और मंत्र साधना के माध्यम से शिष्य साधक के कई-कई जन्मों के पापो का शमन होता है और नूतन नव जीवन का निर्माण होता है।
प्राप्त करना अनिवार्य है गुरु दीक्षा किसी भी साधना को करने या किसी अन्य दीक्षा लेने से पहले पूज्य गुरुदेव से। कृपया संपर्क करें कैलाश सिद्धाश्रम, जोधपुर पूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन से संपन्न कर सकते हैं - ईमेल , Whatsapp, फ़ोन or सन्देश भेजे अभिषेक-ऊर्जावान और मंत्र-पवित्र साधना सामग्री और आगे मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए,