भारत असंख्य आस्थाओं, क्रिया पद्धतियों एवं धार्मिक प्रतीकों का पवित्र देश है। यहां इन आस्थाओं एवं प्रतीकों के प्रति अत्यंत सम्मान व्यक्त किया जाता है।
अनेक अक्षरों का समुदाय एक ही सांस में उच्चरित होने वाला शब्द ओऽम् का उद्भव अतीत के रहस्य में खो गया है। यह किसी देश और सम्भ्यता विशेष का ही प्रतीक न होकर वैश्विक मानवीय ध्वनि बन चुका है। विश्वस्तर पर इसके मान्य एवं अनुप्राणित होने का आधार सम्भवतः मानव कण्ठ से निकलने वाली ध्वनि का प्राकृतिक सत्य अथवा सहज होना है। यह ध्यान देने योग्य है कि जब कोई व्यक्ति मर्मान्तक पीड़ा, क्रोध अथवा भय के क्षण में आह रूपी चीख ही करता है, जब भावनाओं का चरमोत्कर्ष होता है तब भी सहज प्रतिक्रिया शब्द रूप में न होकर आ…. ह रूपी ध्वनि के रूप में ही होती है।
आस्थावादी एवं परम्परावादी होने के कारण हम हमारी परम्पराओं एवं मान्यताओं का मूल एवं विश्लेषण जानने के इच्छुक नहीं होते। हमारे पूर्वजों की मूल्यवान धरोहर एक पीढ़ी द्वारा दूसरी पीढ़ी को प्राप्त हो जाती है उन्हें रिवाज के अनुरूप तर्क रहित, शंकामुक्त और आस्थाप्रधान भावना से अंगीकार करना ही एक मात्र कर्त्तव्य समझा जाता है। परन्तु क्या जिज्ञासा विहीन अनुसरण अथवा अन्धानुकरण हमें जानकारी रहित फल के रूप में उत्कृष्ट पैतृक अर्न्तदृष्टि से वंचित नहीं कर रहा है? संस्कृति के विभिन्न भागों का अर्थ जन मानस में सुस्पष्ट हो तो वह प्रशंसनीय तथा सदैव स्वीकार्य होता है। इस अवधारणा को विकसित करने के लिए मानव समुदाय के क्रिया-कलापों का सूक्ष्म अध्ययन आवश्यक है। जब तक सारी शंकाओं का समाधान प्राप्त नहीं हो जाता तब तक स्वर्णिम अतीत की परिस्थितियों के अध्ययन का खुला द्वार सुखद है।
धार्मिक मान्यताओं एवं प्रतीकों के विश्लेषण का प्रयास चुनौती पूर्ण है। इनमें से अनेक न्यायोचित समन्वय, सामाजिक पर्यावरण, शब्द उत्पत्ति, सौन्दर्य, कला, प्रेम आदि को तुच्छ मान कर उपेक्षा करते हैं। दर्शन एवं कला प्रेम के क्षेत्र में यह सिद्धान्त, कि ज्ञान केवल आत्मा चेतना सम्बन्धी ही है, स्पष्ट परिलक्षित होता है। जब शब्द उच्चारण एवं सामाजिक पर्यावरण की बात करते हैं तब इस तुलनात्मक रूप से अधिक मजबूत धरातल पर होते हैं। इस अध्याय के अन्तर्गत हमने कतिपय प्रतीकों, विश्वास एवं क्रिया-पद्धतियों का चयन किया है। जिनके सम्भावित, अन्तर्निहित अर्थ तथा उनकी उत्पत्ति में कारण रहे तथ्यों को खोजने का प्रयत्न किया है। प्रथम धार्मिक प्रतीक है ओम् अथवा ओऽमकार।
ओऽम अथवा ओऽमकारः अनेक प्राचीन एवं आधुनिक सभ्यताओं में इसका उल्लेख आया है। यह हिन्दू, ईसाई तथा इस्लाम में समान रूप से पाया जाता है।
अरबी में प्रथम अक्षर के रूप में ‘अलिफ’ उच्चारित होता है। ग्रीक में ‘अल्फा’ तथा रोमन वर्णमाला के अन्तर्गत प्रथम अक्षर ‘ए’ (।) है। इस प्रकार अनेक भाषाओं का प्रथम वर्ण एक अथवा अनेक अक्षरों का समुच्चय जिसे एक ही सांस में उच्चारित किया जा सके वह ‘ए’ है जिससे ओऽम् अथवा ओम् प्रारम्भ होता है। ग्रीक का अन्तिम वर्ण ‘ओमेगा’ ओम के अत्यन्त निकट है। इस प्रकार ओऽम् की पहचान अनेक प्राचीन भाषाओं की वर्णमालाओं के प्रारम्भ एवं अन्त के रूप में ज्ञान होता है।
ओऽमकार का वर्णन अनेक भाषाओं में शब्द चित्र के रूप में उपलब्ध है। ओऽम् का उच्चारण (गूंज) मात्र भारतीय संस्कृति विशेष से ही सम्बन्ध नहीं है। इसकी अन्य धर्मों में भी धार्मिक पहचान है। ईसाइयों में प्रचलित शब्द आमीन का प्रार्थना के अन्त में प्रयुक्त होता है जिसके बारे में मान्यता है कि यह ओम का ही परिवर्तित रूप है। यद्यपि ओम की कोई विशिष्ट परिभाषा नहीं की गई हैं तथापि इसे वैश्विक ध्वनि, आदिकालीन बीज ध्वनि अथवा समस्त ध्वनियों की पुंजीभूत एकात्म ध्वनि के रूप में स्वीकार करते है। आमीन का तात्पर्य ‘ऐसा ही हो’ के रूप में प्रचलित है।
सामानान्तर रूप से अरबी भाषा में ‘आमीन’ का अर्थ धार्मिक परिप्रेक्ष्य में लिया जाता है। ये तथ्य अनेक प्रतीकों के मध्य सम्बन्ध तथा संभावित समान उद्गम की ओर संकेत करते हैं। अंग्रेजी भाषा में उच्चारित ओम से भी इसी प्रकार के तथ्य एवं तात्पर्य उद्घारित होते हैं जैसे सर्व-ज्ञानी अर्थात अनंत ज्ञान, सर्वशक्तिमान अर्थात् अतुल बलशाली, सर्वाहारी अर्थात कुछ भी खाने वाला। उदाहरणार्थ ‘ओमन’ में प्रयुक्त यह उच्चारण जो अर्थ अभिव्यक्त करता है उसका तात्पर्य है भविष्य में घटित होने वाला। लोकपाल का तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से है जो अन्तिम न्यायिक फैसला घोषित करने हेतु अधिकृत हो। इस प्रकार ओऽम् अधिकार एवं दिव्यता प्रदर्शन हेतु भी प्रयुक्त होता है।
अरबी भाषा में भी समानन्तर रूप से आमीन का अर्थ धार्मिक परिप्रेक्ष्य में ही प्रचलित है। एक श्वास में उच्चारित समुच्चय ओऽम् के मूल-शब्द रूप के रूप में इसी तर्क को स्वीकार किया जाता है। हम इसकी समानान्तर अंग्रेजी (लैटिन) वर्ण ‘M’ तथा ग्रीक वर्ण ‘OMEGA’ के रूप में भी पाते हैं।
इस प्रकार शब्दपुंज ओऽम् का आदि कालीन उद्गम अतीत में रहस्यपूर्ण रूप से विलुप्त हो गया। यह किसी देश विशेष अथवा संस्कृति विशेष से सम्बन्ध न होकर वैश्विक ज्ञान व मानव मात्र की आध्यात्मिक ध्वनि के रूप में सुविदित है। इसके वैश्विक ज्ञान स्रोत एवं उद्गम रूपी तथ्य के साथ यह सत्य आधार है कि आ…ह रूपी सर्वाधिक सहज एवं प्राकृतिक ध्वनि ही मानव कुण्ड से निकलती है। यह ध्यातव्य है कि जब कोई व्यक्ति अत्यधिक पीड़ा, क्रोध अथवा भयातुर होता है तब यही सहज ध्वनि विश्व मानव की अभिव्यक्ति होती है। भावनाओं के उच्चतम शिखर के क्षण में भी सहभागिता अथवा सम्बन्द्धता शब्द रूप में न होकर आ…ह रूपी ध्वनि स्वरूप ही होती है।
यह ध्वनि मनुष्य से सुव्यवस्थित भाषा विकास से पूर्व भी सम्बन्ध रही होगी जैसा कि हम अन्य प्राणियों यथा भौंकने, मिमियाने, गरजने के रूप में ऐसी ध्वनियां पाते हैं। सम्भवतः ‘ए’ (अ) के रूप में वर्णमाला के प्रारम्भ होने का भी यही सम्भावित कारण अथवा आधार रहा हो। ‘ओऽम्’ अथवा ओम को देवत्व प्रदान करने के पीछे भाव यही है।
सृष्टि का प्रथम शब्द ध्वनि ओऽम् ही थी और उसे प्रवण अक्षर कहा जाता है ओऽम् शब्द शिव का स्वरूप है। क्योंकि शिव ही सृष्टि के अनादि देव हैं जो प्रलय से पहले विद्यमान थे और उन्होंने ही संसार को ध्वनि शब्द, गान और नृत्य प्रदान किया। ओऽम् शब्द का उच्चारण मात्र ही सब मंत्रों का आधार है। यह शब्द ही सर्वपूज्य, शुभकारी एवं कल्याणकारी है। ओऽम् केवल हिन्दुओं में नहीं, अपितु बौद्ध धर्म, जैन धर्म में भी प्रमुख है।
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