हमारी मातृ शक्ति सिद्धाश्रम साधक परिवार की अनमोल संपत्ति है, हमारा गौरव है, सद्गुरूदेव की ओर से हमारे लिए वैसे ही की करूणा, प्रेम, वात्सल्य का स्वरूप है, उनकी ओर से हमारे लिए प्रेम उपहार है, जो वे माता भगवती के संदर्भ में हम सभी शिष्यों पर लुटाती रहती हैं। माँ शब्द में ही अतुल्य आनन्द समाहित है, वात्सल्य का अनन्त सागर है, माँ का प्रेम, गंगा की धारा से भी शुद्ध, पावन पवित्र है।
सिद्धाश्रम शक्ति संदर्भ में अवस्थित भगवती माता अनन्त करूणा की सचेत आत्सात कर आप सभी शिष्य, साधक जीवन शक्ति से आपलावित हो मासिक। यह जन्मोत्सव माँ भगवती के संदर्भ के प्रति शुक्र व्यक्त करने का भाव है, उनकी स्तुति, ध्यान, भजन कर अनवरत रूप से माँ के वात्सल्य शक्ति से साराबोर होने का महापर्व है।
कितनी शानदार बात है कि शक्ति का नाम खाते ही हमारे मन में माँ का स्वरूप ऊपर आता है। शक्ति जो सर्वज्ञ होती है स्वयं काल की अधिष्ठात्री है और उसे कालक्रम का ज्ञान रहता है। वे काल की गति को मोड़ कर अपनी इच्छा के अनुसार कार्य करने की क्षमता जुनून है। आद्या शक्ति भगवती नित्य लीला विहारिणी योग माया के प्रकाश का बिंदु है वे आद्यशक्ति के रूप और उनका योग माया का चैतन्य संदर्भ है।
माँ वह है जो जन्म देने के साथ ही हमारा लालन, पालन भी करती है। मां के इस रिश्ते को दुनिया में सबसे ज्यादा सम्मान दिया जाता है। यही कारण है कि संसार में अधिकतर जीवनदायिनी और सम्मानीय स्थान माँ को प्राप्त होता है। जैसे कि भारत माँ, पृथ्वी माँ, प्रकृति माँ, गौ माँ आदि। इसके साथ ही माँ को प्रेम और त्याग की प्रतिमूर्ति भी माना जाता है। हमारे जीवन में यदि कोई सबसे अधिक महत्व रखता है तो वह हमारी माँ ही है क्योंकि बिना माँ के तो जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है क्योंकि कि माँ को पृथ्वी पर ईश्वर के रूप में माना जाता है।
अज्ञानता के कारण मानव जन्म, मृत्यु, जरा, व्याधि, दुःख, दोष से ही सदा धुंधले रहते हैं और काल से कांपते बूझते रहते हैं। यह जो सदा से हमारी दीनता है, इसे दूर कर अपने स्वरूप को प्राप्त करना ही शक्ति है। इस शक्ति की जो महानिधि है, वह सभी शक्तियों की माता है, हम उसी को मातृ-शक्ति स्वरूप में आद्या शक्ति कहते हैं। यह परत आत्मा की वह शक्ति है, जिस शक्ति ने यह सृष्टि रची, वही शक्ति इसे धारण करती है, वही समान तत्व भी रखती है। परमात्मा और हमारे बीच एक ही शक्ति है। सारा जगत् यह स्वीकार करता है कि महाशक्ति ही इस संपूर्ण जगत को चला रही है, किसी ऐसी आदि शक्ति का प्रभुत्व इस संपूर्ण सृष्टि पर है, जो सभी फोटो की जननी है, समान अल्पसंख्यक शक्ति है।
आद्या शक्ति माँ संपूर्ण संसार में सबसे अधिक पूज्य है, उनका आराधना श्रेष्ठ दिया गया है। भौतिक रूप में शरीर प्रकृति धारिणी गुरु हमारीमाता भगवती उसी शक्ति माता का स्वरूप हैं। जिनके वात्सल्य में अनंत शिशुवत् शिष्य शिक्षित-दीक्षित हो जा रहे हैं। यह गुरू हमारी माता की रिश्तेदारी का व्यापक स्वरूप है, जिसे बुद्धि द्वारा नहीं अपितु निर्विकार अबोध भाव से ग्रहण किया जाता है। यह विश्वसनीय शिष्य के कल्याण के लिए पर्याप्त है। माता के स्वरूप में जो सरलता है, जो मरी है, शिशु को गोद में लेने की जो धारणा है, जो अपार वात्सल्य है, माँ के चरणो में उनका संकल्प, इच्छा के अनुरूप ही सुसान व्यक्ति से युक्त हो सकता है।
माँ की ममता, उनके वात्सल्य को आत्मसात् करने का महापर्व ही नूतन वर्ष के त्रिक चैत्रीय नवरात्रि के चैतन्य पर्व है। जिनके वात्सल्य स्पर्श से जीवन में व्याप्तता कोलाहल ही समाप्त होता है। जिनका प्रेम, स्नेह से संपूर्ण सिद्धाश्रम दैदीप्यमान है, जो सभी शिष्यों के जीवन का निर्माण दात्री है। जो सद्गुरूदेव नारायण के साधको, शिष्यों का संकल्प शक्ति का आधार स्तम्भ प्रतीत हमेशा उनके साथ अडिग खाते हैं और शास्त्रें में स्पष्ट है कि शिव-शक्ति रूप में संपूर्ण है क्योंकि जो शिव हैं, वहीं शक्ति, जो शक्ति है, वही शिव इनमें कोई भेद है नहीं है। सृष्टी भी निरन्तर शिव शक्ति के भाव से ही क्रियाशील है।
आद्या शक्ति संदर्भ मैं भगवती अपने स्वभाविक मातृ-स्नेह अपने लड़कों पर न्यौछावर करता रहता है, उनके हृदय में अधिकतर ही तड़प रहता है, बहुत व्याकुलता से उनके बच्चे उन्हें कहते हैं। मातृ शक्ति हम सिद्धाश्रम साधक परिवार का आधार स्तम्भ है, यह हमारा गौरव है, सद्गुरुदेव की ओर से हमारे बदले की करूणा, प्रेम वात्सल्य का स्वरूप है, उनकी ओर से हमारे लिए प्रेम का उपहार है, जो वे माता भगवती के स्वरूप में हैं हम सभी शिष्यों पर लुटाती रहती है। माँ शब्द में अतुल्य आनन्द समाहित है, वात्सल्य का अनन्त सागर है, माँ का प्रेम गंगा की धारा से भी शुद्ध, पावन पवित्र है। संतत भी हो परन्तु माँ अपने कर्तव्य से विमुख नहीं होती है।
ये मातृशक्ति के जन्मोत्सव पर जो वात्सल्य की अंकित स्वरूप है। हर दिन करूणा का आनन्द कर जीवन में तृप्ति और सन्तुष्टि का अनुभव होता है। जिनके चरणों की वन्दना कर कोई भी शिष्य सद्गुरू नारायण की कृपा का पात्र बन जाता है। उनकी शाश्वत शक्तियाँ स्वयं में समाहित होने की योग्यता से परिचित हो जाती हैं। वे हम सभी शिष्यों को सतत रूप से साधना उच्चता, सफलता के पथ पर पथप्रदर्शिका के रूप में हमारे साथ गतिमान रहे वे हम सभी को इस योग्य बनाए जिससे निरन्तर चेतन्य व क्रियाशील रहे।
दीक्षा विधायिका
इसलिए आने वाले नूतन वर्ष 2078 की चैत्र नवरात्रि महापर्व जो कि भोमवती मंगलवार दिवस 13 अप्रेल से ठिकाना मर्यादा पुरुर्षोत्तम अवतरण महापर्व रामनवमी 21 अप्रेल निखिल जन्मोत्सव है। ऐसे दिव्यम अवसरों पर नव दुर्गा संदर्भ में दस महाविद्याओं से युक्त शक्तिपात्र साधना दीक्षा शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति, स्कन्ध मातेति, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री संदर्भ में सुप्रीम दस महाविद्याओं को आत्मसात् करने से निशिंचत रूप से दस संदर्भ में महाकाली, तारा , छिन्नमस्ता, शोडशी त्रिपुर सुन्दरी, भुवनेश्वरी, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, कमला युक्त सुस्थितियां निर्मित हो जाती हैं।
मनोकामना व्यक्त कर शांत भाव से भगवती शक्ति का ध्यान करते हुए जीवन में सुभावों की वृद्धि के लिए परिवार के सभी सदस्यों को अलग-अलग स्वरूप में दीक्षा आत्मसात करेंगे तो कई वर्षों बाद निर्मित ऐसा सुयोग वन्दनीय माता भगवती के अभ्युदय पर्व के साथ ही पहचान होना वाला नूतन वर्ष व अपने आपको पूरूषोत्तममय युक्त श्रीरामजी की चैतना को निखिलमय स्वरूप में आत्मसात् कर सके इसके लिए प्रत्येक साधक-साधिका स्वयं के साथ-साथ अपनी पवित्रता को भी इन दिव्यतम दीक्षाओं से अभीभूत करें।
प्राप्त करना अनिवार्य है गुरु दीक्षा किसी भी साधना को करने या किसी अन्य दीक्षा लेने से पहले पूज्य गुरुदेव से। कृपया संपर्क करें कैलाश सिद्धाश्रम, जोधपुर पूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन से संपन्न कर सकते हैं - ईमेल , Whatsapp, फ़ोन or सन्देश भेजे अभिषेक-ऊर्जावान और मंत्र-पवित्र साधना सामग्री और आगे मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए,