घोर्य जीवन के 25 वर्ष ब्रह्मचर्य पालन करते शिक्षा अर्जन करते हैं तो वह अगले 50 वर्ष उच्चता संदर्भ में भोग-विलास से युक्त जीवन को सर्वश्रेष्ठमय संदर्भ में क्रियान्वित रखता है। शास्त्रों में उल्लेख है कि-
सुख चाहने वाले को विद्या कहाँ और छात्रों को सुख कहाँ? सुखार्थी को विद्या और छात्रों को सुख छोड़ना चाहिए। सुख और विद्या दोनों एक साथ संभव नहीं। जो विद्यार्थी आराम और सुखमय जीवन जीते हुए विद्या ग्रहण करने की इच्छा रखता है, वह अपने उद्देश्य को प्राप्त करने में प्रयुक्त होता है।
काकाचेष्टा- कौआ की तरह प्रयास करना। कौआ अपने खाद्य पदार्थों को प्राप्त करने के लिए लगातार प्रयासरत रहता है और उसकी चेष्टा शानदार होती है। जब तक वह अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाता, तब तक वह प्रयास करता रहता है। शिक्षा के लिए छात्र जब तक अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं कर लेते, तब तक लगातार प्रयासरत रहते हैं।
बको ध्यान- बगुले की तरह ध्यान लगाने। बगुला पूरे मनोयोग से ध्यान लगाकर अपना लक्ष्य प्राप्त करता है। शान्त मन से ध्यान केंद्रित करना विद्यार्थियों के परम लक्षण हैं। ध्यान केन्द्रित कर अध्ययन करना ही पूर्ण रूपेण सार्थकता है। पढ़ाई के कमरे में टी-वी या संगीत सुन रहे हैं और हाथ में किताब है। इस तरह के अध्ययन नहीं हो सकते। मन की एकाग्रता के लिए एकान्त-शान्त युक्त अध्ययन के प्रति ध्यान देने की आवश्यकता है। मन लगा कर ग्रहण की पुरानी विद्या ही श्रेष्ठता से स्मृति में बैठती है और चेतन्य बनी रहती है।
श्वान अनिद्रा- कुत्ता हमेशा सावधान रहता है। थोड़ी सी आहट पाकर वह सक्रिय हो जाता है। छात्र के लिए सीमित अनिद्रा पर्याप्त है, अपने लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए अपने प्रति कर्तव्य एवं दायित्व को भरता है तथा अलस्य एवं प्रमाद को छोड़ देता है, इस पर डटे रहना छात्रों का प्रमुख लक्ष्य है। शरीर में अलस्य रहे, निंद्रा अधिक प्रिय हो तो विद्यार्जन संभव नहीं है।
अल्पाहारी- भोजन और निंद्रा का गहरा संबंध है। अधिक भोजन कर लेने पर निंद्रा व अलस्य अधिक रहते हैं। छात्रों के लिए अल्पाहार ही उचित है। यथा समय गाय दुग्ध का सेवन करना चाहिए। जिससे शरीर सही तरीके से क्रियाशील रहता है। इसलिए भोजन और निंद्रा के समय का पालन करना भी आवश्यक है।
गृहत्यागी- प्लेटलेट यही है कि छात्रों के जीवन के लिए घरेलू सुख और आराम उचित नहीं है। छात्र घरेलू सुख या मोह त्याग कर ही शिक्षा रूपी तप साधना करने से ही श्रेष्ठ ज्ञानार्जन संभव हो पाता है।
छात्रों के एक छोटे से दोषी को बताया गया है-
अलस्य, मद, मद्यपान, मोह, चंचता, तय की बातों में लेना, अभिमान एवं स्वार्थ त्याग का अभाव होना ये छात्रों के आठ दोष हैं। इस श्लोक का आशय यही है कि विद्यार्थी को मिलने वाली स्थिति से दूर रहने लगते हैं, जिससे वह अध्ययन के क्षेत्र में और आगे के जीवन में निरन्तर सफलता प्राप्त कर सकता है।
हालाँकि विद्या प्राप्त करना या ज्ञानार्जन करना जीवन पर्यन्त चलता रहता है, मानव जीवन को चार भागों में विभाजित किया गया है, जिसमें से आयु के प्रथम भाग में विद्या प्रप्त करने के लिए कहा गया है।
छात्र जीवन में विद्या प्राप्त करने में विशेष दृश्य नहीं ली, दूसरा भाग (यौवनावस्था) में धनार्जन नहीं किया, तीसरे भाग में धर्म नहीं किया तो फिर चह चौथा भाग (बुढ़ापा) में क्या करेगा? प्लेटलेट छात्र जीवन ही विद्या(ज्ञान) प्राप्त करने का सर्वोत्तम समय है। इस जीवन में प्राप्त हुआ ज्ञान एवं संस्कार जीवन को सार्थक बनाते हैं। उसी जीवन में कुछ कर याद में सफल हो जाता है, जो छात्र जीवन में समय का सदभाव हो जाता है।
श्रद्धावान बनो- अपने माता-पिता एवं गुरु के प्रति सदैव श्रद्धावान रहना। यह छात्र के लिए पहली बात है। शिष्यवन ही ज्ञान प्राप्त करने में सफ़ल रहते हैं श्रीमान के शाश्वत सत्यनिष्ठा होती है और निष्ठा ही जगत दुनियाती है, दृष्टि के शाश्वत तद्विषयक क्रियाएं होती हैं, अनुराग प्राप्त होता है और फिर ग्रहणशील विषय यथावत रूप में ग्रहण का यही क्रम बताया गया है – 'श्रद्धावान लभते ज्ञानं।' (गीता)। राम चरित मानस में कहा गया है-
माता-पिता और गुरु त्रि ही हमारे प्रत्यक्ष देव हैं। इसलिए सभी प्रकार से उनका सम्मान और श्रद्धा करें
सतत् अध्ययन रहे- यह युग प्रतिस्पर्धा का युग है, क्योंकि आज वे ही छात्र मनोवांछित सफलता प्राप्त कर रहे हैं, जो अपनी परीक्षा में सबसे अधिक अंक प्राप्त कर श्रेष्ठता सूची में स्थान प्राप्त कर सकते हैं। एटएव सतत् अध्ययनशील जीवन की आवश्यकता है। कठोर परिश्रम करने की आवश्यकता है। समय किसी का इंतजार नहीं करता। इसलिए हाथ में जो समय है उसका सदोपयोग कर लेना चाहिए। आगे के लिए कार्य को टालने का अर्थ लक्ष्य से दूर हो जाना है। विद्या अध्ययन में निलान्त आवश्यक है, जहां क्रम टूटा विषय सर्वथा विस्मृत होगा और अपराध हाथ ही आएगा।
समय का सदुपयोग करें- समय निश्चित है। जीवन में समय सबसे महत्वपूर्ण स्थान रखता है। बीता हुआ समय वापस नहीं मिलता। समय देने से धन मिल सकता है, लेकिन धन देने से समय नहीं मिल सकता। बुद्धिमानी यही है कि समय के एक-एक क्षण का सर्वोत्तम तरीके से उपयोग करें। दिन-रात के 24 घंटों का इस प्रकार उपयोग करें कि एक क्षण भी बर्बाद न हो।
वाल्मीकि रामायण में भी कहा गया है- नदी का पानी एक बार एक दिशा में बहा दो मुड़कर दूसरी दिशा की ओर नहीं जाता। यही जीवन का नियम है। यदि आप खाली बिना कार्य के लिए बैठ कर समय बर्बाद करेंगे तो निठल्ले मित्र भी आपके साथ में समय बर्बाद करना चाहेंगे और फिर गलत ही गलत होगा। अध्ययन कभी निष्फल नहीं जाना और छात्रों के जीवन का लक्ष्य तो ज्ञानार्जन करना ही होता है।
अनुशासन का लगातार पालन करें- छात्र जीवन में ही अनुशासन की शिक्षा मिलती है। अनुशासन में ही वह जो सीखता या खारिज करता है, वही जीवन में काम करता है विद्यालय में धारणा का पालन करना गुरूजनों की आज्ञा को शिरोधार्य करना, मनुष्यों का पालन करना, स्वभाव का व्यवहार आदि सभी धारणाओं और नियमों का पालन करना एक मानता है आदर्श नागरिक बनने की शिक्षा को स्कूल के माहौल में ही सीखने को मिलता है। 'विद्या लभते सर्वं विद्या सर्वत्र पूज्यते' विद्वान् बनों, विद्यावान् बनों और संस्कारवान बनों, संस्कार ही सर्वोपरि है।
धन श्रीमाली
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