शिव की साधना, आराधना से ही संसार के समस्त सकल स्वरूप में पदार्थ प्राप्त होते हैं साथ ही समस्त कामनाएं पूर्ण होती ही हैं। अन्य देवी-देवता तो फिर भी शक्तियाँ बँधी होती हैं और उसकी शक्ति और क्षमता नूसार ही वरदान दे सकती हैं, परन्तु केवल शिव ही ऐसे देव हैं, भगवान है, जो सब कुछ प्रदान करने में समर्थ हैं। संसार के समस्त मंत्र ऊँ के गुंजरण से ही निकले हैं और उन्ही शिव मंत्रों को गुरु द्वारा प्राप्त कर साधना सिद्धि की जाए तो सफलता मिलने में कोई संशय नहीं हैं।
भगवान शिव को योगी कहते हैं। परन्तु वास्तव में वे गृहस्थों के ईश्वर हैं, पति दम्पति के उपास्य देवता हैं। भगवान शिव स्त्री और पुरुष स्वरूप में अर्द्धनारीश्वर की अभिव्यक्ति हैं। इसी कारण गृहस्थी लोग उनकी आराधना करते हैं। किसी भी वस्तु को, उसके गुण-दोष का विचार करते हुए उसका यर्थाथ स्वरूप को देखा जाता है और उसी रूप में उसकी महत्ता को लगती है। परस्पर विरोधी द्वितीयों की विषमता को दूर करने की चेष्टा करने लगे। यही वास्तविक योग है। समत्वं योग उच्यते अर्थात् समता का नाम ही योग है। संसार में विषमताओ से असुरक्षित रहने पर भी अपने जीवन को शान्त एवं स्थिर बनाए रखें ही योग का स्वरूप है।
भगवान शिव अपने पारिवारिक संबंधों से हमें इन सीमित योग नियमों का ज्ञान प्रदान करते हैं और उनकी आराधना कर हमारे जीवन में भी ऐसी योगमय स्थितियाँ निर्मित होती हैं। बाहर की दृष्टि से भगवान शिव का परिवार विषम लेखक सा है, सभी के मार्ग विशेष्य-विशिष्ट हैं, किसी का किसी के साथ मेल नहीं। शिव बैल पर चढ़ते हैं, तो पार्वती सिंह वाहिनी हैं, श्री स्वामी कार्तिकेय को मोर की सवारी पसंद है और लम्बोदर गणेश जी महाराज को चूहे पर चढ़ना ही सुहाता है। सूचना की गृहस्थी भी झंझटों की पिटारी है। कारण निर्धारित की यही मनसा है कि वे शिव-गौरीमय चेतन से आपलावित कह कार्तिकेय-गणेश स्वरूप में रिद्धि-सिद्धि विजय श्री युक्त शिवमय परिवार हो सकते हैं।
भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह के संबंध में एक रोचक कहानी है- देवी पार्वती हिमनरेश हिमवान और उनकी रानी मनावती की पुत्री हैं। पार्वती जी का विवाह भगवान शिव से हुआ है। माता पार्वती प्रकृति स्वरूप कहलाती हैं। नियत के अनुसार पार्वती के जन्म का समाचार सुनकर देवर्षि नारद हिमालय नरेश के घर पर आए थे और उनकी देनदारी पर देवर्षि ने बताया कि ये कन्या सभी सुलक्षणों से संपन्न है और उनका विवाह शंकर जी से होगा।
इस पर माता पार्वती ने महादेव को पति संदर्भ में आत्मसात् करने के लिए घोर तपस्या की तथा शुभ घड़ी और शुभ मुहूर्त फाल्गुन कृष्ण त्रयोदशी प्रदोष पर्व पर शिव-पार्वती का विवाह हुआ। भगवान शिव पार्वती के दो पुत्र कार्तिकेय और गणेशजी। कई पुराणों के अनुसार उनके अशोक सुंदरी नाम का एक पुत्र भी था। जो कि सावित्री शक्ति अखण्ड स्वरवती युक्त बनी।
शिव-गौरी परिणय महापर्वरात्रि शिव इन भावों को आत्मसात करने का दिव्यतम पर्व हैस्थ साधक अपने जीवन को रस, आनन्द, ओज, तेज, शिवशक्तिमय आद्या शक्ति स्वरूपा गौरीमय चेतन से आप पूरित जीवन में योगमय अवतार प्राप्त कर सकते हैं।
भगवान शिव के अर्धनारीश्वर संदर्भ का सिद्धांत है कि शिव-शक्तिसंदर्भ में स्त्री-पुरूष एक-दूसरे में एकात्मक भाव से एकाकार हो सके, एक आत्मिक रूप स्थापित कर गृहस्थ जीवन के उच्चाधिकारियों को प्राप्त कर सके। स्त्री-पुरूष के संबंध में केवल काम की वासनात्मक प्रधानता ना हो, आंतरिक, मानसिक, वैचारिक संबंध बने और वे आपस में सहयोग का निर्माण करें और इन सब के माध्यम से आनन्द की प्राप्ति हो, साथ ही कार्तिकेय-गणपति संदर्भ संतति से आपूरित होकर रिद्धि-सिद्ध शुभ-लाभमय जीवन की प्राप्ति हो। इसी संदर्भ में ही महाशिवरात्रि पर्व प्रत्येक गृहस्थ साधक-साधिका के लिए सुप्रीममय होता है।
'काल' शब्द अपने आप में गहरा अर्थ समझने वाला है। एक ओर जहाँ काल का अर्थ समय होता है, वही दूसरी ओर काल का अर्थ मृत्यु होता है। ये दोनों ही स्थितियां किसी के हाथ में नहीं रहतीं।
न तो वह समय को रोक सकता है और न ही मृत्यु पर विजय प्राप्त कर सकता है। जो व्यक्ति समय को अपने अनुकूल नहीं कर सकता, वह सदा जीवन में पराजित होता है और विशिष्ट के अनुसार जीवन को धारण करता रहता है। इसी प्रकार जो काल अर्थात् मनुष्य मृत्यु के भय से सदा आशंकित रहता है, उसका जीवन भी दुराग्रह, चिन्ता, संशय, रोग से युक्त रहता है और वह हर क्षण काल के जबड़े में ही रहता है।
शिव-गौरी परिणय साधना संपन्न हुई से साधक का जीवन शवमय से निवृत्ति प्राप्त कर मृत्युन्जय युक्त क्रियाशील रहती है, साधिका द्वारा शिव-गौरी की साधना संपन्न करने से पूर्णतया अखण्ड भक्ति, सुहाग, शिव परिवार गृहस्थ सुख की निरन्तर है।
उसी के साथ अपने समय को सही तरीके से उपयोग करने का चेतन का विस्तार होता है जिससे जीवन श्रेष्ठतम और स्वरशक्ति सा निर्मित होता है। इसके परिणामस्वरूप गृहस्थ जीवन में यश, सम्मान के साथ वंश वृद्धि गति बनी रहती है साथ ही जीवन के सभी विरोधात्मक मानदंड में विजयश्री की प्राप्ति है।
दिना विधान
इस सामग्री के लिए आवश्यक सामग्री है- 'शिव-गौरी यंत्र', 'सौभाग्य जीवट' और 'परिणय सामग्री'। शिवरात्रि महापर्व के रात्रि काल में साधक सफेद वस्त्र धारण करें तथा माथे पर त्रिपुण्ड धारण करने से यह साधना संपन्न होती हैं।
लकड़ी के बजोट पर सजेद वस्त्र बिछाना किसी पात्र में चन्दन से स्वास्तिक वस्त्र उस पर शिव-गौरी यंत्र और स्वर जीवट स्थापित कर पुष्प अक्षर धूप व दीप से पूजन कर शिव-गौरी का ध्यान रखें-
देवाधिदेवं करातं प्रसन्नं, कल्पोज्ज्वलांगं
सदाभवम् भगवती गौरी, परिणय
आत्मबल में सदैव महाकाल का चिंतन करें।
परिणय माला के सुमेरू पर कुंकुम क्षेपण पूजन करके फिर उसी ग्रंथ से निम्न मंत्र का 4 मंत्र जप संपन्न करें-
साधना समाप्ति के बाद सभी सामग्री को होलिका पर्व तक पूजा स्थान में ही रखें। होलिका के दहन पर सभी सामग्री अग्नि में अर्पित करें।
गृहस्थ जीवन का आदर्श स्वरूप भगवान सदाशिव और माता पार्वती ही हैं। इसीलिये प्रत्येक गृहस्थ शिव गौरी को अपना आराध्य बनाते हैं। जिस प्रकार भगवान शिव का गृहस्थ जीवन सभी कामनाओं से परिपूर्ण है।
पुत्र के रूप में भगवान गणपति और कार्तिकेय हैं और सदैव साथ में रूप पार्वती हैं। स्थान भी पूर्ण शांति युक्त हिमालय है, जहां पूर्ण आनंद से विराजित होते हैं।
गृहस्थ व्यक्तियों के लिए शिव और गौरी आदर्श संदर्भ है क्योंकि शिव को रसेश्वर कहा गया है और गौरी को रसेश्वरी कहा गया है। यह शिव और शक्ति का संयुक्त अमृत रूप में भाव है। जीवन को सभी रसों से आनंदमय बना सकते हैं गृहस्थ जीवन की विशिष्टताओं का विवरण से परिपूर्ण होना आवश्यक है। इस कथन कुम्भ अमृत शिव-गौरी शक्ति साधना से जीवन को रस-अमृतमय बनाया जा सकता है। जीवन में नित्य प्रति आनंद रस की वर्षा होती रहे, निरन्तर हर सुबह एक नई श्लोक लेकर जीवन में विस्तृत रहे।
यह साधना संपन्न करने के लिए शिवरात्रि की रात्रि बेला में या किसी भी प्रदोष पर्व पर स्नान करके पीले धोती पहनकर, पीले आसन पर उत्तर दिशा की ओर मुंह करके बैठ जाएं। सामने चौकी पर ताम्र कलश स्थापित करके 'ऊॅं गणेशाय नमः' इस मंत्र का उच्चारण करते हुए पीले चावल 108 बार चढ़ें और दोनों हाथ जोड़कर प्रार्थना करें।
गुरू चित्र का भी पंचोपचार पूजन करें एक थाली में कुंकुमं से स्वस्तिक व्यक्ति निवास कुम्भ अमृत शिव-गौरी यंत्र स्थापित करें। नीलकंठेश्वर जीवट के ऊपर क्षमता संकल्प ले। धूप, दीप, पुष्प आदि से जीवट का पूजन करके निम्न शुभ मंत्र गौरी माला से 7 माला मंत्र जप संपन्न करें।
दाना समाप्ति के बाद संपूर्ण सामग्री होलाष्टक पर्व 21 मार्च तक पूजा स्थान में बाद में प्राप्त करें पवित्र जलयात्रा में विसर्जित करें।
कुम्भ शिव अमृत-गौरी कार्तिकेय विजयश्री दीक्षा सामान्य स्वरूप में सुन्दर, उच्च सुज्ञान, सुसंस्कार से युक्त पत्नी के लिए भगवान शिव का पूजन और अभिषेक करते हैं साथ ही युवतियां संस्कारित, सुन्दर, कामदेव बलिष्ठ वर प्राप्ति के लिए माता गौरी की आराधना करती हैं। शिव परिवार की अभ्यर्थना से गृहस्थ जीवन की कामना पूर्ण ही है। विघ्नहर्ता गणपति प्रत्येक शुभ कार्य के समर्पण में पूजन है कार्तिकेय की वन्दना सर्व विजयश्री पूर्ण की जाती है और पत्नी के रूप में संकल्प प्रदान करने वाली देवी पार्वती है।
कार्तिकेय, भगवान शंकर के ज्येष्ठ पुत्र हैं और दुनिया के रक्षक भी हैं। कार्तिकेय का प्रमाण सर्व विजय श्री आपूर्तिकर्ता शत्रु संहारक पराक्रम के देव एवं प्रशस्त होने वाले देव हैं। इन्हें मुख्य देव माना जाता है, भगवान सुब्रमण्यम व मुरूगन देव भी कहा जाता है। मुरूग का तात्विक है, सौन्दर्य, ताजगी, सौरभ, माधुर्य, दिव्यता तथा आनन्द और सुब्रमण्यम का तात्विक ज्ञान, लक्ष्मी, शत्रुहंता, मृत्युंजय, निरोगता युक्त हो
इसलिए शिव परिवार के सभी गणों से हम अपने जीवन को जीवंत कर सकते हैं। लक्ष्य निर्धारण की दृष्टि के लिए आवश्यक है कि महाशिवरात्रि पर्व पर कुम्भ अमृत शिव-गौरी शक्ति साधना दीक्षा आत्मसात् करें। कार्तिकेय ऐश्वर्य, वीर्य, यश, श्री, ज्ञान और पूर्णता के प्रतीक साथ ही जहां कार्तिकेय की पूजा होती है, वहां ज्ञान, वर प्राप्ति, गृह रक्षा, बल वृद्धि से दुष्टों का नाश होता है। स्वर प्राप्ति आकांक्षा माता गौरी पार्वती की पूजा साधना का विशेष महत्व है। क्योंकि गौरी अखण्डभक्ति का स्वरूप है। गणपति विघ्नहर्ता देव हैं, गणपति से ही गृहस्थ जीवन में धन-धान्य, पुत्र-पौत्र का वर प्राप्त होता है। साथ ही शत्रु बाधा से रक्षा, निरोगता और विजयश्री के लिए भगवान कार्तिकेय का वर अत्यंत आवश्यक है।
महाशिवरात्रि पर्व ही ऐसा पर्व है जो भगवान शिव को भक्त अपने जीवन के विष सन्ताप, दुःख, दुःख, अर्पित कर जीवन को अमृतमय प्राप्तियों से युक्त कर सकता है क्योंकि भगवान शिव को पूजन स्वरूप में धतूरा, भांग, बेर, आक, बिल्व पत्र निरुपित है। जबकि इस तरह से विधि विधान से पूजन करने वाले साधक को सुख आनन्द, आरोग्यता, सौभाग्य, सन्तान सुख, धन लक्ष्मी की निरन्तर प्राप्ति होती है। सभी शिव परिवार के गणों की पूजा गणों की पूजा करने का महाशिवरात्रि सर्वश्रेष्ठ दिव्य पर्व है। इसलिए स्वेटर संसाधना पूजा महामृत्युन्जय रुद्राभिषेक बेशक ही संपन्न होने से जिससे जीवन में मृत्युंजय दृष्टि का विस्तार होता है।
जीवन के प्रत्येक क्षण को पूर्ण समय, आनंद युक्त होती, शौर्य, सम्मान, प्रतिष्ठा, ऐश्वर्य युक्त बनाने की क्रिया शिव परिवार की अभ्यर्थना पूजा से ही सम्भव है। जब जीवन शव से शिवमय की ओर रेटिंग होती है तो शिष्य साधक अनुभव करते हैं कि उनके जीवन की पूर्णता की तरेप आगे बढ़ते हुए, आनंद की वृद्धि से क्रियाशील हो रहे हैं। महाशिवरात्रि महापर्व पर कुम्भ होती अमृत शिव-गौरी शक्ति दीक्षा को आत्मसात कर जीवन को शिव-गौरी कार्तिकेय विजयश्रीमय चेतन से युक्त करें, जिससे जीवन में निरन्तर सर्वस्वरूप में पूर्ण प्राप्त हुए।
प्राप्त करना अनिवार्य है गुरु दीक्षा किसी भी साधना को करने या किसी अन्य दीक्षा लेने से पहले पूज्य गुरुदेव से। कृपया संपर्क करें कैलाश सिद्धाश्रम, जोधपुर पूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन से संपन्न कर सकते हैं - ईमेल , Whatsapp, फ़ोन or सन्देश भेजे अभिषेक-ऊर्जावान और मंत्र-पवित्र साधना सामग्री और आगे मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए,