भौतिक जगत का पथ फूलों की बगिया नहीं होता, यह तो कांटों की पगडण्डी है। हर समय मनुष्य अपने जीवन में मानसिक, शारीरिक और आर्थिक परेशानियों को रोकने के लिए तैयार रहता है। लेकिन न तो उसे पूर्ण सफलता मिलती है और न ही कोई सकारात्मक परिणाम। वह हर क्षणेन रहता है, जिसे पाने के लिए वह व्याकुल और अतृप्त रहता है।
जबकि वही सुख, वही आनंद, घर में धन का विकास उसे कर्म के साथ-साथ आस्था भक्ति रूपी साधना प्राप्त होता है। आवश्यकता है इसे सही मुहूर्त पर श्रद्धापूर्वक पूर्ण करने की। तभी वह पूर्ण सुखी जीवन वन का अधिकारी बन सकता है, जीवन में श्रेष्ठता प्राप्त कर सकता है और ऐसा ही साधनायें पूज्यपाद गुरुदेव पूरे साधकों के लिए पत्रिका के माध्यम से प्रकाशित करते हैं।
जो कि सभी के लिए फल और पुण्यदायी है। चूंकि साल नई है, क्योंकि नई उम्मीदें, नए सपने, नए लक्ष्य, नई सोच के साथ इसका स्वागत किया जाता है। नया साल मनाने के पीछे मान्यता है कि साल का पहला दिन अगर उत्साह और खुशी के साथ मनाया जाए तो साल भर इसी उत्साह और खुशियों के साथ ही गुजरेंगे।
पूरी दुनिया में नया साल अलग-अलग दिन मनाया जाता है, और भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में भी नए साल की शुरुआत अलग-अलग समय में होती है। लेकिन अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 1 जनवरी से नए साल की शुरुआत की जाती है। चूंकि 31 दिसंबर को एक साल का अंत होने के बाद 1 जनवरी से नए अंग्रेजी कैलेंडर वर्ष की शुरुआत होती है। इसलिए इस दिन को पूरी दुनिया में नया साल शुरू होने के उपलक्ष्य में पर्व की तरह मनाया जाता है।
हालांकि हिन्दु पंचांग के अनुसार नया साल 1 जनवरी से शुरू नहीं होता। हिन्दु नववर्ष का आगाज चैत्र नवरात्रि से होता है। लेकिन 1 जनवरी को नए साल को मनाना सभी धर्मों में एकता बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण योगदान देता है, क्योंकि यह सभी एक साथ मनाया जाता है। 31 दिसंबर की रात से ही कई जगहों पर अलग-अलग क्षेत्रों में इठ्ठाला लोग नए साल का जश्न मनाते हैं।
सभी का यही भाव रहता है कि नूतन वर्ष के वादे होते ही वह पुरे वर्ष हर रूप में आनंदमय बना रहे और यह हमेशा आगे बढ़ने की सीख देता है। पुराने वर्षों में हमने जो भी, खुश, सफ़ल या असफ़ल लिया उससे सीखने लेकर नई उम्मीदों के साथ आगे बढ़े। जिस तरह हम पुराने साल के खत्म होने पर दुःख नहीं होते बल्कि नए साल का स्वागत बड़े जोश और खुशी के साथ करते हैं, उसी तरह जीवन में भी अतीत को महसूस करते हुए लेकर हमें दुःख नहीं होता। जो उनके बारे में सोचते हुए देखने वाले अवसरों का स्वागत करते हैं और जीवन को बेहतर बनाते हैं।
यदि किसी व्यक्ति के शिशु की तरह नव वर्ष में अच्छे कर्मों को प्रविष्ट करता है, तो वह वर्ष उसके जीवन में सुख-सम्पन्नता, वैभव, आनंद और विकास प्रदान करने वाला होता है, जिसके आधार पर ही वह अपने उस वर्ष में श्रेष्ठता और श्रेष्ठता और दिव्यता प्राप्त कर लेता है और यदि व्यक्ति उस वर्ष का व्यवहार ही गलत तरीके से करता है।
तो वैसा ही दुःखी, पीडित, चिन्ताग्रस्त, पूर्वाग्रह उसे जीवन का अनुभव देता है, जो उसके जीवन के न्यूनरेटरों के लिए झुका हुआ और नीरस तरीके से पुराना होता है। क्योंकि जैसा कि बीज किसी मिट्टी में बोता है, वह वैसा ही फल प्राप्त करता है, इसलिए हमें लगना चाहिए, कि हम नववर्ष की शुरुआत सुन्दर, नए और शुभ तरीके से करें और शुभमय छाप को पूरे वर्ष भर निरन्तर क्रियाशील रहें।
अपने अच्छे-बुरे कर्मों को एक नया दृष्टिकोण, नए विचार को अपने मानस में सजाते हुए नववर्ष का स्वागत करता है, जिससे वह अपने नए विचार को नए ढंग से बनाने का विस्तार एक नया जीवन की पुष्टि कर सकता है, जिससे कि उसका आगमन वाला समय खुशियों से भरा हो, मंगलमय हो, उत्सवमय हो। यह उमंग, जोश, बल, उत्साह, आनन्द, श्रेष्ठता हमें मिल सकती है, इस नए साल में साधना दीक्षा के माध्यम से (नूतन वर्ष में सुकर्म करते जीवन की सभी इच्छाओं और श्रेष्ठतम को श्रेष्ठता प्रदान कर सकते हैं। आप भी कमी-नवीन लेखकों से। आदर्श जीवन को आदर्श,विकासवादी और संपूर्ण जीवन प्राप्त कर सकते हैं।)
माता पार्वती लक्ष्मी का ही स्वरूप हैं, इसलिए उनके द्वारा अनुशासित इस साधना को पूर्ण करने से साधक का जीवन आर्थिक रूप से समृद्ध होता है। यदि रोजगार नहीं हो तो शीघ्र ही रोजगार की संभावना होती है, व्यापार ठीक से नहीं चल रहा है तो व्यापार में विकास होता है, आय के नए स्रोत प्राप्त होते हैं। इसलिए शिव वैभव साधना कोई भी स्त्री अन्य पुरूष सम्पदा कर सकते हैं। इसे यदि स्त्री करती है तो सौन्दर्य, लावण्य, रूप में आश्चर्य उत्पन्न करने वाला आता है और पुरुष करता है तो शरीर बलिष्ठ, पूर्ण स्वर, शिव वैभव, व्यक्तित्व में आकर्षक होता है।
इस साधना से साधक का स्वर जाग्रत होता है घर में क्लेश, जमा, पति-पत्नी में कलह, मनमुताव आदि समाप्त होते हैं। यदि पति-पत्नी के संबंधों में दरार पड़ गई हो, अलग-अलग रहने की नौबत आ गई हो, तो इस साधना को एक दिलचस्प मानकर भी पूरा करना चाहिए। ऐसा करने से पति-पत्नी स्वतः ही एक दूसरे से मिलकर प्रेमपूर्ण गृहस्थ जीवन में संलग्न हो जाते हैं।
नूतन वर्ष के प्रथम सोमवार 04 जनवरी पर उत्तर दिशा की ओर मुख कर गुरु चित्र एवं शिव चित्र का संक्षिप्तीकरण पूजन कर गुरु मंत्र की एक माला जप करें। सामने एक थाली में कुंकुम से एक बड़ा ऊँ बनाये। ऊँ के मध्य में 'गौरीश्वर-नर्मेदेश्वर शिवलिंग' को धारण करें तथा ऊँ के चन्द्र बिंदु पर गौरी सौन्दर्य रुद्राक्ष स्थापित करें। शिवलिंग और रूद्राक्ष का कुंकुम, अक्षर व सिंदूर से पाठ कर धूप, दीप प्रज्वलित करें। 'शिवगौरी वैभव माला' से निम्न की 7 माला मंत्र जप नित्य 5 दिनों तक संपन्न करें।
साधना समाप्ति के बाद सभी सामग्री को किसी पवित्र जल में विसर्जित कर दें।
किसी भी कार्य को पूरी तरह से पूरा करने के लिए उपवास करना पड़ता है, लेकिन कई बार सभी प्रकार के प्रयासों की पराकाष्ठा होने पर भी इन मौको पर कोई न कोई बाधा आ जाती है और जीवन के कई कार्य अधूरे ही रहते हैं।
उसी रूप में कार्य पूरा हो, इसके लिए ही गणपति पूजन विधान निर्धारित किया गया है। श्री गणेश आदि स्वरूप, पूर्ण कल्याणकारी, दुनिया के भी देव माने गए हैं। सभी प्रकार के पूजनों में प्रथम पूजन गणपति का माना जाता है। इसके पीछे ठोस शास्त्रीय आधार है।
प्रतिभा और ज्ञान की भी सीमा बेशक होती है। अपने प्रयासों से किसी भी कार्य को श्रेष्ठतम रूप से पूर्ण करते हुए जिम्मेवार पक्ष की ओर विचार करता है, लेकिन उसकी बुद्धि एक सीमा से आगे नहीं दौड़ती है, व्यक्तिये उसकी बुद्धि एवं कार्य के विकास को रोक देते हैं और यही मूल कारण है कि हमारे शास्त्रों में पूजा, साधना उपासना को विशेष महत्व दिया गया है।
अपने पूजा स्थल पर शुद्ध पवित्र चिह्नों के सामने एक बाजोट पर विनायक गणपति यंत्र स्थापित करें। अपने दायें हाथ में जल लेकर पूजन का संकल्प करें और जल को भूमि पर छोड़ दें। इसका दीपक दीपक प्रज्जवलित कर यंत्र का पूजन पुष्प अबीर, गुलाल, अक्षरत और मौली परिधान स्वरूप में चढ़ाए। विनायक पूजन में तुलसी का प्रयोग सर्वथा वर्जित है। दुर्वा (दूब) विशेष रूप से हानिकारक है। इसका ज्ञाता वक्रतुण्ड देव को प्रसाद स्वरूप में लड्डू करें। फिर विघ्नहर्ता माला से निम्न मंत्र का 5 माला मंत्र जप नित्य 5 दिन तक संपन्न करें।
साधन समाप्त होने के बाद सभी सामग्री को किसी पवित्र जलमार्ग में विसर्जित करें।
मानव जीवन योजनाओं की समझ नहीं है, योजनाओं की गति मनुष्य के जीवन की गति से जुड़ी हुयी है। जब मनुष्य का ग्रह अनुकूल होता है, तो वह निरंतर प्रगति के पथ पर पहचान करता है। ग्रह दोष के कारण बाधा से जीवन हर प्रकार से दुःख कारक हो जाता है, ग्रह की गणना होने पर मनुष्य को अनेक पीड़ाएँ, बाधाएँ और दुःख पूर्ण नोटिस को भोगना पड़ता है। प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी कारण से योजनाओं की दृष्टि शिकार होता है। लेकिन इस तरह की बाधाओं में भी यदि किसी ग्रह की मजबूत स्थिति आपको मजबूत बनाती है, तो उस दुष्ट ग्रह का प्रभाव क्षीण हो जाता है।
दुष्ट योजनाओं को बलपूर्वक या उपासना के माध्यम से अपने अनुकूल बनाया जाता है। परन्तु बल पूरी तरह से बनाया जा सकता है, जब सभी नवग्रहों के स्वामी सूर्य वचन हो। योजनाओं के अनुकूल होने पर व्यक्ति को अतिरिक्त बाधाओं के दबाव से मिलता है, साथ ही अंतर्निहित रूप से विशेष रूप से शनि व मंगल कुदशा से सुरक्षित रहता है।
मानव जीवन पर सूर्य का प्रभाव सर्वाधिक होता है, ऐसी साधनाएं जीवन को प्रकाश युक्त बनाता है, ऐसे चेतन मकर संक्राति पर्व का उपयोग निश्चित ही साधनात्मक दृष्टि से सर्व लाभकारी होगा। 14 जनवरी को प्रातः बिला में स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें, पीला आसन युक्त चौकी पर नवग्रह सूर्य स्थिर गति यंत्र स्थापित करें, साथ ही सूर्य संक्रान्ति तेजस और स्वच्छत्व शक्ति धातु सभी का पंचोपचार पूजन कर एक मंत्र का 3 मंत्र जप करें।
जप समाप्ति पर सूर्य को अर्घ्य देकर सभी सामग्री को जल में विसर्जित करें। नित्य भी नवग्रह की एक ग्रह जप करने से सभी क्षतिग्रस्त योजनाओं का प्रभाव मंत्र हो जाता है।
प्राप्त करना अनिवार्य है गुरु दीक्षा किसी भी साधना को करने या किसी अन्य दीक्षा लेने से पहले पूज्य गुरुदेव से। कृपया संपर्क करें कैलाश सिद्धाश्रम, जोधपुर पूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन से संपन्न कर सकते हैं - ईमेल , Whatsapp, फ़ोन or सन्देश भेजे अभिषेक-ऊर्जावान और मंत्र-पवित्र साधना सामग्री और आगे मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए,