भगवन विष्णु के ऐसा कहने पर संपूर्ण देवता और दैत्य बाह्य अमृत निकालने का प्रयास करने लगते हैं। अमृत कुंभ के ही धब्बे से अक्षयपुत्र 'जयंत' कलश को लेकर आकाश में गमन कर पृथ्वी गए। इसके बाद दैत्य गुरु शुक्राचार्य के आदेश के अनुसार दैत्यों ने अमृत को वापस लेने के लिए जयंत का पीछा किया और घोर परिश्रम और क्रिया के बाद वे बीच रास्ते में ही जयंत को पकड़े गए। तत्पश्चात अमृत कलश पर अधिकार सागर के लिए देव-दानवों में बारह दिन का घोर युद्ध हुआ।
इस युद्ध के फलस्वरूप अमृत कलश से पृथ्वी के चार स्थानों पर अमृत गिरी जहां सदीयों से अमृत कुंभ महोत्सव आयोजित होता है। ये प्रमुख चार पवित्र स्थान इलाहबाद, आधार, नासिक और उज्जैन है। कलह शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर अमृत साथ कर पिलाया। इस प्रकार देव-दानवों के युद्ध का अंत हुआ।
उज्जैन- इस नगर को उज्जयिनी या अवन्तिका भी कहते हैं। इस स्थान को पृथ्वी का नाभिदेश भी कहा गया है। द्वादश ज्योतिर्लिंग में महाकाल लिंग यही है और 51 शक्तिपीठों में यहां एक पीठ भी है। यहा सती का कूपर (केहुनी) गिरा था। रूद्र सागर सरोवर के पास हर सिद्धि देवी होती है, चक्र यह शक्तिपीठ है और मूर्ति के बदले कहिनी की ही पूजा है। द्वापर में श्रीकृष्ण ने यही महर्षि सन्धिपन के अपरिचित में अध्ययन किया और योगेश्वर बनने की क्रिया से युक्त दीक्षाएं चाणत की। महाराज विक्रमादित्य के समय उज्जयिनी भारत की बहुत वैभवशाली राजधानी थी।
विक्रमादित्य के बड़े भाई भृतहरि थे जो कि बाद में सन्यासी हो गए। भारतीय ज्योतिषशास्त्र में देशान्तर की शून्य रेखा उज्जयिनी से निर्धारित की गई थी। यह सात पुरीयों में एक पुरी है। यहां बारह साल में कुंभ लगता है। कुंभ से छह साल के बाद आधा कुंभ मेला होता है। महानदी शिप्रा जो कि विष्णु के शरीर से निकली है, जो प्रवाहमान है। इसी तट पर ही महाकाल मंदिर है जो पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। कुंभ के समय में यहां लाखों साधु-सन्यासी आते हैं और महानदी शिप्रा में अलभ्य स्नान संपन्न करते हैं।
नासिक- द्वादश ज्योतिर्लिंग में त्रयम्बकेश्वर की गणना होती है। जो कि नासिक में स्थित है। गुप्त पंचवटी में भगवान श्रीराम ने वनवास का दीर्घकाल व्यतीत किया। गोदावरी नदी का उद्गम भी समूह से है। इसी प्रकार नासिक क्षेत्र को आप में एक महत्वपूर्ण तीर्थ क्षेत्र माना जाता है। यहां पंचवटी, देव मंदिर, नील कण्ठेश्वर, राम मंदिर, सुन्दर नारायण मंदिर, उमा महेश्वर मंदिर, नील कण्ठेश्वर, पंचरत्नेश्वर, भद्रकाली मंदिर आदि चैतन्य और पवित्र तीर्थ स्वरूप है। प्रति वर्ष जब बृहस्पति सिंह राशि में होता है नासिक में कुंभ पर्व का आयोजन होता है। बृहस्पति के सिंह राशि में होने पर पूरे साल यहां गोदावरी स्नान का महापर्व माना जाता है। यह मान्यता शिव क्षेत्र होने के कारण अघोड़ साधु सन्यासियों का आगमन निरंतर बना रहता है और अलभ्य स्नान, साधना संपन्न करते हैं।
इलाहाबाद (प्रयाग)- इसका तीर्थ राज कहते हैं। यह सभी तीर्थों का अधिपति है। सातपुरी उनकी रानी कही गई है। यह चार स्थानों में से एक पवित्र स्थान माना जाता है और शुभ माना जाता है। इलाहाबाद भारत का सबसे पवित्र शहर से एक है। जिसमें शुद्ध, चेतन, श्रद्धा और विश्वास से यह दिव्यतम स्थान पूर्ण आपुरित है। सृष्टि निर्माता ब्रह्मा इस स्थान पर अपने प्रथम बलिदान की घोषणा में निहित हैं। गंगा यमुना की धारा ने पूरे प्रयाग क्षेत्र को तीन भागों में बांटा है। यह तीन भाग अग्नि के रूप में यज्ञवेदी माने जाते हैं।
इन में गंगा यमुना के मध्य का भाग गढ़पत्याग्नि, गंगा पार का भाग अवन अग्निय और यामािका का भाग दक्षिणाग्नि माना जाता है। इन दिनों में पवित्र हो कर एक-एक रात्रि निवास से इन अग्नियों की पूजा का फल प्राप्त होता है। प्रयाग में प्रति माघ में मेला होता है। इसे कल्प वास कहते हैं। यहां प्रति वर्ष जब बृहस्पति वृष राशि में और सूर्य मकर राशि में होते हैं उसी समय प्रयाग में कुभ की उपलब्धि होती है। प्रयाग के माहत्म्य का वर्णन वेद में, पुराण में, देखने को मिलता है। यहां त्रिवेणी स्नान मुख्य होता है। इसी त्रिवेणी स्थान पर गंगा यमुना और सरस्वती का संगम स्थित हैं। उसी स्थान पर कुंभ लाभ के अवसर पर स्नान करना श्रेयस्कर माना जाता है।
पहले- सात पुरी में से मायापुरी एक है। उसे हरि के द्वारा अर्थात् भगवान शिव के कैलाश मानसरोवर से पृथ्वी पर आने का प्रथम स्थान तीसरे स्थान पर ही है। भगवान शिव की जटा से जो पवित्र धारा कलश पर्वत से पृथ्वी पर आती है उन्हें गंगा द्वार भी कहते हैं। मायापुरी, कलखल, आधार, ज्वालापुर और भमगोड़ा यह पांच पुरीयों को सीधी कहा जाता है।
तीसरे में हर की पेड़ी (ब्रह्मकुण्ड) होती हैं जहां सभी देवी-देवता निवास करते हैं, भगवान शिव ने शक्ति स्वरूपा गौरी को प्राप्त करने के लिए तपस्या की थी, उसी पवित्र स्थान पर निर्विघ्न रूप से गंगा आरती हैं।
इसके अलावा गोघाट, कुशावर्त घाट, राम घाट, श्रवणनाथ जी मंदिर, विष्णुघाट, मायादेवी, गणेश घाट, नील नदी, काली मंदिर, चण्डी मंदिर, मनसा देवी मंदिर प्रसिद्ध है। प्रति बारह वर्ष में जब सूर्य और चंद्र मेष राशि में और बृहस्पति कुंभ राशि में स्थित होते हैं तब यहां कुंभ का मेला लगता है। छठा साल कुंभ होता है। कुंभ मेले के समय में देश के सभी प्रान्तों से साधु, सन्त, सन्यासी लाखों की संख्या में यहां आते हैं साधना और तपस्या करते हैं पूजन तथा महा स्नान पूर्ण करने की क्रिया लंबी समय तक चलती है।
धन श्रीमाली
प्राप्त करना अनिवार्य है गुरु दीक्षा किसी भी साधना को करने या किसी अन्य दीक्षा लेने से पहले पूज्य गुरुदेव से। कृपया संपर्क करें कैलाश सिद्धाश्रम, जोधपुर पूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन से संपन्न कर सकते हैं - ईमेल , Whatsapp, फ़ोन or सन्देश भेजे अभिषेक-ऊर्जावान और मंत्र-पवित्र साधना सामग्री और आगे मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए,