पदम् पुराण में सफला एकादशी की कथा का वर्णन किया गया है। इस कथा के अनुसार एक बार एक राज्य में पहिष्मान नाम का एक राजा रहता था। उसके राज्य में सब कुछ ठीक था, परन्तु राजा के बड़े पुत्र पापी काम में लगे रहते हैं। इन कार्यों से राजा बहुत दुखी हुए थे उन्होंने अपने बेटे से नाराज होकर उसे देश से बाहर निकाल दिया। उनका बेटा जिसका नाम लुम्पक था वह देश से निकाले जाने के बाद वन में रहने लगा। ठंड में दिन-रात रहना लुम्पक को बहुत मुश्किल लगने लगा उसे बहुत दुख हुआ।
एक रात ठंड के कारण वह बेहोश हो गया और सुबह होश में आ गया। होश में आने के बाद खाने के लिए जंगल में फल इत्ठठा करने लगते हैं। लेकिन शाम होते देख उदास होकर भाग्य को कोसने लगा। एकादशी पर्व पर वह भी व्रत, साधना करने लगा एक रात वह सर्दी के कारण सो नहीं सका इसी तरह लुम्पक का एकादशी व्रत, साधना सिद्धि हो गई।
एकादशी धनुरा, व्रत के प्रभाव से लुम्पक के पिता ने उसे अपने राज्य में बुलाकर अपना साम्राज्य सौंप दिया। इस प्रकार एकादशी व्रत, साधना के प्रभाव से लुम्पक की मृत्यु के बाद विष्णुधाम में प्रवेश मिल गया। पदम् पुराण में सफला एकादशी व्रत की महिमा का वर्णन मिलता है।
सफला एकादशी व्रत, साधना की महत्ता के बारे में श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया था। उनके अनुसार जो व्यक्ति सफला एकादशी के दिन व्रत, साधना करता है उसे करोड़ों वर्षों की तपस्या का फल प्राप्त होता है। उसी के साथ जीवन में दुःख को भी व्यक्ति सहज ही सहन कर लेता है और मृत्यु के बाद उसे सदगति प्राप्त हो जाती है।
इस साधना को सफला एकादशी 09 जनवरी प्रातः काल समापन श्रेयस्कर सिद्ध होगा, यदि इस दिन साधना न कर सके तो किसी भी गुरूवार को इस साधना को कर सकते हैं।
साधक उत्तर दिशा की ओर मुंह करके पीले आसन पर बैठ जाएं और गुरु पुजन कर मंत्र की एक माला मंत्र जप संपन्न करें। पिफर अपने सामने लकड़ी के बाजोट पर पीला वस्त्र बिछाकर विष्णु महायंत्र और लक्ष्मी के स्वरूप में 11 कमल बीज को स्थापित करें, यंत्र और बीज का पुजन अबीर, गुलाल, कुंकुम, केशर, मौली आदि से फिर प्रसाद अर्पित करें।
अस्य श्री द्वादशाक्षरमन्त्रस्य, प्रजापति ऋषिः,
गायत्री मंत्र है, वासुदेव, परमात्मा, देवता है,
सर्वोत्तम पूर्णता के लिए जप हेतु विनियोग।
ॐ प्रजापति ऋषियै नमः शिरोयं गायत्रीः
मुख में मंत्रोच्चार से ॐ, वासुदेव, परमात्मा, देवता।
ॐ विष्णु चैतन्य हृदय में सफल एकादशी
पुरुषोत्तम विनियोगाय नमः सर्वांगे।।
शंख के सदृश विष्णु नारद चंद्रकोटि
रथागं विष्णु अंभोजं शक्तिये
भूतात्मा निलयं कान्त्या जगन्मोहन।।
आबद्धां गदहार पुरुषेश्वरः
अमर प्रभु धरता कौस्तुभधरं वन्दे
महर्षियों द्वारा हिरण्यगर्भ की प्रशंसा |
फिर वैजन्यन्ती माला से निम्न मंत्र का 12 माला मंत्र जप
पूर्ण करें-
शास्त्रोक्त कथन है कि 12 अक्षर के इस योग संख्या 12 मंत्रों का जप करने से साधक को पूर्ण सफलता प्राप्त होती है तथा भगवान विष्णु की अभीष्ट कृपा से साधक मनोंवांछित फल प्राप्त होता है। सब प्रकार के पाप दोष दूर कर साधक श्री विष्णु का तेज ग्रहण करने में समर्थ होता है, इसलिए यह साधना निश्चय ही सर्वोतम है। संसाधन समाप्त होने के बाद संपूर्ण सामग्री को उसी कपड़े में बांधकर किसी पवित्र जलमार्ग में विसर्जित करें।
प्राप्त करना अनिवार्य है गुरु दीक्षा किसी भी साधना को करने या किसी अन्य दीक्षा लेने से पहले पूज्य गुरुदेव से। कृपया संपर्क करें कैलाश सिद्धाश्रम, जोधपुर पूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन से संपन्न कर सकते हैं - ईमेल , Whatsapp, फ़ोन or सन्देश भेजे अभिषेक-ऊर्जावान और मंत्र-पवित्र साधना सामग्री और आगे मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए,