क्रोध के कारण व्यक्ति की निर्णय क्षमता पर ग्रहण प्रभाव पड़ता है। मैं किसी भी गंभीर विषय पर सही निर्णय नहीं ले पाता हूँ। क्रोध निर्णय हमारी लेने की क्षमता को प्रभावित करता है। हमेशा क्रोध में रहने वाले लोगों के दिमाग की नसे उभरती रहती है, जिसकी वजह से उनका दिमाग भी ज्यादा जोर लगाता है। ऐसे लोग ब्लड प्रेशर से पीडि़त होते हैं।
क्रोध स्वास्थ की दृष्टि से भी खतरा होता है। गाँव में एक कहावत है कि-क्रोध में ग्रहण किए गए भोजन भी शरीर के नहीं लगते। क्रोध से मन खिन्न और तनाव में रहता है। ऐसे लोगों के भीतर प्रसन्नता का भाव ही नहीं होता है। परिवार में भी कलह की स्थिति निर्मित होती है। क्रोध से व्यक्ति में हीनता प्रकट होती है और वह समाज से अलग हो जाता है। व्यक्ति क्रोध में आकर कई प्रकार से अपने और परिवार को हानि पहुँचाते हैं। उनसे कई परिचितों का सामना करना पड़ता है।
क्रोध करने से हानि- क्रोध में व्यक्ति विवेक शून्य हो जाता है, सही निर्णय लेने में समर्थ नहीं रहता है। जिसके कारण उसका भविष्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है, परिवार और मित्रों से अनबन बना रहता है, जीवन पराश्रय हो जाता है। क्रोध के प्रभाव दीर्घ समय तक सहनशील होते हैं। ऐसे लोग अक्सर ब्लड प्रेशर और धूम्रपान जैसी घातक बीमारी से पीडि़त होते हैं। यदि व्यक्ति मन को शांत रखें तो शीघ्र ही क्रोध पर नियंत्रण प्राप्त किया जा सकता है।
नकारात्मक विचार आने दें- बहुत से लोग किसी कार्य को घोषित करने से पूर्व नकारात्मक विचार से ग्रसित होते हैं। उनके मन में यह विचार आता है कि यह कार्य मैं नहीं कर पाऊंगा, मैं इस कार्य के योग्य नहीं हूं, और मूल नकारात्मक विचार ऊर्जा का हनन करते हैं, जिसके कारण हम शीघ्र ही अपना पराजय स्वीकार करते हैं परिणाम स्वरूप हमें असपफलता ही है। जिसके कारण हम निराश और निराश हो जाते हैं। जिससे क्रोध का प्रादुर्भाव होता है।
क्योंकि नकारात्मक विचार का त्याग कर सकारात्मक दृष्टि से अपने कार्य को करें, जिससे सफ़लता का प्रतिशत कई गुना अधिक हो जाता है, और विश्वास से असंभव व्यक्ति कार्य को भी सफ़ल कर देता है। सही रूप से कार्य का ध्यान कर कार्य को पूर्ण करने की ओर छोटी होना सफलता निश्चित करती है। अपने आप में यह भरें कि यह कार्य हमसे नहीं होगा। हमारे दिमाग को नकारात्मकता से जकड़ लेता है। फिर हमारा दृश्य नकारात्मक हो जाता है। जिससे मन एवं मस्तिष्क अशांत रहता है और जब मन अशांत रहता है तो मनचाहा कार्य सिद्ध नहीं कर पाते व क्रोध की प्रवृत्ति के होते हैं।
स्वयं की सामर्थ्य (क्षमता) को पहचानें- यदि हम अपने मन, मस्तिष्क को शांत रखना चाहते हैं तो इसके लिए हमें अपनी सामर्थ्य और प्रतिभा को जाग्रत करना होगा, स्वयं के लिए कुछ समय निकाल कर आत्मचिंतन करना होगा, अपनी प्रतिभा को पहचान कर परखना होगा कि ऐसा कौन सा गुण है, जिसका क्षमता पर आप सफल हो सकते हैं और अपने मन की सुनकर उस कार्य को शुरू कर देते हैं तो आप पूर्ण, सकारात्मक और हमेशा शांत महसूस करेंगे।
हमेशा वही काम करें जो हमें पसंद है- ऐसा कोई भी काम न करें, जिसमें आपकी नजर ना हो, क्योंकि ऐसे कार्य करने से आपको मूढ़ता नहीं होगी। जितना ही काम करते हैं उतना ही आपकी क्षमता है। अगर कोई काम शुरू किया है तो उसे शांतिपूर्वक पूरा करें, ऐसा कोई कार्य न करें जिससे हमें पछताना पड़े। साथ ही भरोसेमंद द्वेष की भावना से दूर रहें। जो चीजें आपको परेशान कर रही हैं और उन्हें आप चाहकर भी कुछ नहीं कर सकते हैं तो उन्हें भूल जायें।
स्वयं से प्रेम करें- हम स्वयं से प्रेम करना सीखना चाहते हैं, क्योंकि क्रोध से हम दूसरों से ज्यादा अपने- आप को ही हानि पहुंचाते हैं। यदि हम अपने आप से ही प्यार करना सीखें तो हम स्वयं को नुकसान नहीं पहुंचाएंगे और इस प्रकार क्रोध पर कुछ नियंत्रण कर सकते हैं।
अपने परिवार व प्रियजनों के साथ समय बिताएं- जब हम अपने परिवार वालों व मित्रगण के साथ समय बोलते हैं तो हमारी सोचने की क्षमता और निर्णय लेने की क्षमता अच्छी रहती है, क्योंकि अगर हम अपने चाहने वालों के साथ समय व्यतीत करते हैं तो हम खुश रहते हैं जिससे हमारा मन-मस्तिष्क शांत रहते हैं है। इससे महसूस होता है कि हमारी क्षमताएं बढ़ रही हैं, साथ ही स्वयं पर विश्वास बढ़ रहा है। इसका परिणामतः हम अपने कार्य पर अपना लक्ष्य केंद्रित कर सकते हैं और यदि कोई कार्य हो जाए तो शांत महसूस करते हैं। मन शांत रहने से हमें अपनी विचार धारा को नियंत्रित करने की भी शक्ति मिलती है।
योग से मन शांत- योग मन को शांत रखते हुए तन को अधिक प्रभावी बनाता है और मन को स्वस्थ रखते हुए अलग-अलग योग को धीरे-धीरे अभ्यास करते रहने लगते हैं। योग के साथ ही ध्यान (मेडिटेशन) का प्रयोग भी हमारे लिए अत्यधिक लाभदायक है। ध्यान का मुख्य उद्देश्य है आपके मन को शांत करना और धीरे-धीरे अपने सामान्य मन की शक्ति को उच्च स्थान पर ले जाना। हमारे क्रोध को नियंत्रित करने के लिए ध्यान व योग एक उत्तम मार्ग है। क्रोध या नकारात्मकता की स्थिति को ध्यान द्वारा दूर किया जा सकता है। जब भी ऐसी स्थिति आपको शिकायत होती है तो आप अपने को शांत करने के लिए (मेडिटेशन) को अपना सकते हैं। इसके लिए सबसे पहले कोई शांत स्थान देखें जहां आपको कोई भी परेशान न कर सके, कोशिश करें कि आप कम से कम 20 मिनट तक ध्यान लगाएं, आंख बंद करें और गहरा श्वास लें, अपने श्वास के लिए अपना ध्यान केंद्रित करें, यही करते रहे जब तक आप ध्यान दे रहे हों।
इन उपायों को अपना कर आप शीघ्र ही अपने क्रोध पर नियंत्रण करने में सफल हो सकते हैं और आपकी कार्य क्षमता भी विकसित होगी। गांभीर्यवान व्यक्ति श्रेष्ठ सफलता प्राप्त करने में हमेशा सक्षम होता है। इसलिये आप कार्य को शांति और धैर्य के साथ संपन्न करें। जब कभी क्रोध आये तो एक टम्बलर पानी पिये और शान्ति पूर्वक मनन चिन्तन करें। यकीनन ऐसा कर आप महसूस करेंगे कि आप का क्रोध कुछ ही समय बाद खत्म हो गया और फिर शांत मन से उचित निर्णय लेकर आगे की रणनीति बना कर पैनापन।
अपने व्यक्तित्व में आने वाले परिवर्तनों को स्वयं महसूस कर सकते हैं और आप की ख्याति भी समाज मित्रों और परिवार में वृद्धि कर रहे हैं ऐसा ही प्रभावी व्यक्तित्व जिसे आपने बनाया है। क्रोध पर विजय पाने के अनेक उपाय प्रचलित हैं।
परन्तु यदि हमें अपनी या दूसरों की क्रोध का शमन करना है तो हम अपनी वाणी को मिठास से भरें तथा गुरु मंत्र, गायत्री मंत्र का जप मन ही मन बातचीत के मध्य में रहें जिससे क्रोध के कारण का शमन होता है और कार्य सिद्ध होते हैं।
आपकी वंदनीय माता
शोभा श्रीमाली जी
प्राप्त करना अनिवार्य है गुरु दीक्षा किसी भी साधना को करने या किसी अन्य दीक्षा लेने से पहले पूज्य गुरुदेव से। कृपया संपर्क करें कैलाश सिद्धाश्रम, जोधपुर पूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन से संपन्न कर सकते हैं - ईमेल , Whatsapp, फ़ोन or सन्देश भेजे अभिषेक-ऊर्जावान और मंत्र-पवित्र साधना सामग्री और आगे मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए,