भारतीय अध्यात्म में शक्ति को विशेष स्थान दिया गया है, यहां तक कि उनकी अनुपस्थिति में शिव को भी शव के समान ही माना गया है। भगवत्पाद शंकराचार्य-ने सौन्दर्य लहरी में भगवती की स्तुति करते हुए कहते हैं, कि यदि शिव शक्ति से युक्त न हो तो उनमें सामान्य रूप से हलचल भी संभव नहीं है। शक्ति ही शिव की आत्मा है। बिना आत्मा के शरीर जिस प्रकार निर्जीव पड़ा है, उसी प्रकार से शिव भी शक्ति के बिना निर्जीव रहते हैं। अर्थात्- जब भगवान भी शक्ति के बिना शव रूप में है तो सामान्य मनुष्य की बिना शक्ति के किस तरह की स्थिति होगी!
यदि सही अर्थों में देखा जाय, तो सृष्टि का प्रत्येक कण पूर्ण शक्ति तत्त्व से आप पूरित है। शक्ति तत्त्व की नाग-उपासना करने का यों तो कोई विशेष काल या क्षण नहीं है, जब भी बच्चा किसी आपदा में फँसता है, तो वह काल तथा क्षणों का निर्णय ही उछालता है माँ का अहरण कर लेता है और माँ को उसकी विचित्र प्रस्तुति होती है ही अनुरक्त हैं। फिर भी कुछ क्षण विशेष, प्रकृति की माँ ने बनाया है, उनमें से कितने भगवती के कृपा के अमृत वर्षा को साधक निरन्तर अनुभव कर सकते हैं। ऐसा ही क्षण होता है शारदीय नवरात्रि के किस रिश्ते में स्वयं भगवती ने कहा है-
अर्थात्- शारदीय नवरात्रि में जो साधक मेरी साधना, पूजा संपन्न होती हैं, उसे मैं धन, धान्य, पुत्र, यश, सम्मान आदि प्रदान कर उसे सभी बाधाओं से मुक्ति प्रदान करता हूं।
इसी प्रकार जब समस्त विश्व के शरीर से तेज पुंज निकल कर, जो मूर्ति बनी, जो अवतरण हुआ उसे जगदंबा, दुर्गा कहा गया। जो आठ बंधे हुए हैं, जिनके हाथों में सर्व विजय प्राप्त करने के शस्त्र हैं, जिनके चेहरे पर अद्भुत तेज है, जो युद्ध में भीषण हुंकार भरने वाले हैं और जो सिंह पर आरूढ़, शत्रुओं का दमन करने में तत्परता से निरन्तर चिपकते जा रहे हैं और सभी प्रकार के रक्षा करने वाले हैं।
भगवती के इस स्वरूप का विश्व ने भी अनुभव किया है। उनकी तेजस्विता से तो आपका सारा संसार प्रकाशित हो रहा है, उनकी आवाज से सारा विश्व चलायमान है, रविवार हुंकार से दैत्यों के हृदय कांपने लगे हैं, जो झटका देने में वज्र की तरह समर्थ है, मगर साथ ही साथ मातृस्वरा भी हैं, जो अपने भक्तों और साधकों की रक्षा करने में सदैव तत्पर रहते हैं एवं भगवती दुर्गा तो महाकाली बनकर शत्रुओं का संहार करने में समर्थ हैं, महालक्ष्मी प्राप्त शिष्यों और साधकों को पूर्णता प्रदान करने में समर्थ हैं, महासरस्वती बनकर जो एक को बुद्धि और समझ देने में समर्थ हैं हैं।
भगवती जगदंबा केवल कोई देवी ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व की अधिष्ठात्री हैं, जो अनिद्रा के रूप में अभिज्ञात हैं, अभिशाप में भी ग्रहण करती हैं, तथा पालन-अपहरण करने वाली हैं, जिनके सैकड़ों नाम हैं, अनेक रूप हैं, जिनके हाथ में चक्र, परशु गदा, धनेश्वर, वज्र और विविध आयुध हैं।
मार्कण्डेय पुराण में बताया गया है कि जो साधक पूर्ण स्वरूप के साथ नवार्ण मंत्र द्वारा जगदम्बा को आत्मसात कर गण साधना करता है, वह निश्चय ही शिव के प्रिय बन जाते हैं। ऐसे व्यक्ति को ही जीवन में विजय प्राप्त होती है। अभाव, काम या चिन्ता या कष्ट नहीं हो सकता।
प्रत्येक व्यक्ति, संत, योगी इस प्रकार की साधना को सिद्ध करने में गौरव अनुभव करते हैं और जहां कलियुग में 'कलौ चण्डी विनायकौ' कलियुग में तो गणपति और जगदम्बा ही शीघ्र सिद्धि देने वाले देवता माने गए हैं। प्रारंभिक सिद्धिकारक है। जगदम्बा साधना तो कठिन सरल और सामान्य है, जिसे कोई भी बालक या वृद्ध साधक या साधिका सिद्ध कर सकता है। साधना करने से हाथ-हाथ फल मिलता है, जैसे व्यापार, धन, स्वास्थ्य, परिवार की सुरक्षा विकास सभी प्रकार की इच्छा परिरक्षण व इच्छाएं इस जगदम्बा साधना के माध्यम से पूरी होती हैं।
इसलिए शास्त्रों में जगदम्बा की साधना को जीवन की श्रेष्ठ व पूर्ण साधना माना जाता है, मैंने अपने जीवन में स्वयं अनुभव किया है, कि जो कार्य अन्य प्रकार से या अन्य दुनिया के साधना से सिद्ध नहीं होते हैं, वह भगवती जगदम्बा की कृपा से प्रांरभ सहज और सामान्य तरीके से पूरा हो जाता है। शरीर के चक्रों को जाग्रत कर कुण्डलिनी जागरण व ब्रह्माण्डभेदन क्रिया आदि सिद्ध होती है।
नवरात्रि स्थापना दिवस पर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजन स्थान को स्वच्छ कर एक बजोट पर लाल वस्त्र बिछाएं उस पर भगवती दुर्गा का चित्र स्थापित करें। चित्र के एक खास ताम्रपत्र में जगदम्बा सिद्धि यंत्र को स्थापित करें। यंत्र के बायीं ओर चावलों की ढेरी बना कर उस पर सर्व सिद्धिप्रद गुटिका स्थापित करें। पूजन से पूर्व सभी पूजन सामग्री को अपने पास रख लें।
पूजन सामग्रीः चौकी, लाल वस्त्र, अगरबत्ती, दीपक, पुष्प, फल, कलश, मिठाई, पंचामृत, नारियल, वस्त्र जगदम्बा यंत्र, नवदुर्गा सिद्धि ग्रंथि, सर्व सिद्धि गुटिका इसके बाद पूजन करें।
ॐ चाहे अशुद्ध हो या स्वच्छ, या सभी अवस्थाओं में।
हे कमलनयन, जो स्मरण करता है, वह ब्रह्म में शुद्ध हो जाता है।
आचमन मंत्र के साथ तीन बार जल पियें-
ॐ अमृतोपस्तरनमसि स्वाहा।
ॐ अमृतपिधानमसि स्वाहा।
ॐ सत्य, यश, समृद्धि और खुशहाली मुझमें निवास करें।
दिशा बन्धन बायें हाथ में चावल लेकर दाहिने हाथ
चारों ओर दिशाओं में छिड़कें-
ॐ जो प्राणी पृथ्वी पर निवास करते हैं, वे हट जाएं।
ये भूता विघ्नकररस्ते नशंतु शिवाज्ञ्य।।
अपक्रिमन्तु भूता नि पिशाः सर्वतो दिशम्।
सर्वेषामविरोध पूजाकर्म समारभे।।
संकल्प हाथ में जल लेकर कुंकुम, अक्षर मिलाकर मंत्र बोलें-
ॐ विष्णु, विष्णु, विष्णु, धन्य प्रभु, महापुरुष
ब्रह्मणोऽहरि द्वितीय पाराद्ध श्वेतवाराह कल्पे जम्बूद्वीपे भरत
खण्डे अश्विनी नवरात्रि स्थापना दिवस अमुक वासरे
अमुक गोत्रोत्पन्नः अमुक (नाम) सकल सिद्धि मनोकामना प्राप्ति, सुख सौभाग्य, धन, धान्य प्राप्तये दुर्गा पूजनम् च अहं करिष्ये। जल भुमि में छोड़ दे-
गणपति का ध्यान करें हाथ में पुष्प लेकर-
ॐ गजाननं भूत गुणाधिसेवितं,
कपित्थ जम्बू फल चारु भक्षण।
उमासुतम् शोक विनाशकारकम्,
मैं भगवान विघ्नेश्वर के चरण कमलों को प्रणाम करता हूँ।
श्री गुरु ध्यान दें
दो पंखुड़ियों वाले कमल के मध्य में बंधा हुआ चेतना का सागर।
उन्होंने साधकों की भलाई के लिए शिव का बना शरीर धारण किया।
श्रुतशिरसिविभान्तं बोधमार्तण्डरतं।
शमितिमिरशोकं श्री गुरुं भावयामि।।
श्री गुरु चरणकमलेभ्यो नमः ध्यान समर्पयामि।
कलश स्थापना- कलश के अंदर एक रूप में डालें और कलश के ऊपर लाल वस्त्र में लपेटकर आम के पत्ते नारियल लें। कलश पर मौली लपेट प्रार्थना करें-
कलश के मुख पर विष्णु और गले में रुद्र विराजमान हैं।
मूले तस्य स्थितो ब्रह्मा में मातृगणः स्मृता।।
गायत्री, सावित्री, शांति और पोषण आये
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वधा
मेरी पूजा स्वीकार करें, हे सुंदर मुख वाली, मैं आपको प्रणाम करता हूं।
यंत्र पूजन- दूध, दही, शहद, शक्कर, घिस मिलाकर पंचामृत बनाएं और पंचामृत से जगदम्बा सिद्धि यंत्र को स्नान कराएं। दोबारा शुद्ध जल से धोकर किसी पात्र में कुंकुम से स्वस्तिक आवास शामिल करें यंत्र को स्थापित करें। भगवती का ध्यान करें-
दुर्गेः स्मृता हरषि भीतिमशेष जनतोः।
स्वस्थैः स्मृता-मतिमतीव शुभां ददासि।।
दारिद्रय दुःख भय हरिणी का त्वदन्या।
सर्वोपकारकरण सदा सदाद्रचित्त।।
हाथ में पुष्प लेकर निमंत्रण दें-
ॐ आगच्छेह महादेवी! सर्व सम्पत्प्रदायिनी!।
यवद्व्रतं समाप्येत तावत्त्वं सन्निधौ भव।।
पुष्पांजलि लेकर दें-
अनेन रत्न संयुक्तं नानामणि गणनवित्म्।
कर्तस्वरामायम् देवि! इसका आधा भाग लीजिए, मैं प्रणाम करता हूँ।
एक आचमनी में जल लेकर इसमें अक्षर का पुष्प मिला लें अर्घ्य दें-
निधीनां सर्व रत्नानां त्वमर्घ्य गुणान्विता।
सिंहोपरिस्थिते देवी! त्वं प्रतिगृह्मताम्।।
जल स्नान
मन्दाकिन्याः समानै र्हेमांभोरूहवासितैः।
स्नान करो, हे देवी! और सुगन्धित जल से।
पंचमृत बाथ
पयो दधि घृतं मधुर चैव शर्करान्वितम्।
पंचामृतं मयनातं स्नानार्थ प्रतिगृह्मताम्।।
इसके बाद शुद्ध जल से स्नान करके वस्त्र रखने दें। चंदन, कुंकुम, अक्षर अक्षत करें-
श्री खंड चंदन दिव्य, सुगंध से भरपूर और अत्यंत सुखद होता है।
अक्षरान्निर्मलां शुद्धान् मुक्तामणिसमन्वितान्।।
पुष्पा लिपिक करें-
मंदारपारिजातादि पाटली केतकानी च।
जाती चंपक पुष्पाणि गृहण मयि शोभने।
धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें:
अन्नं चतुर्विदं चर्वू रसैः षड्भिः मां।
नैवेद्यं गृह्मतां देवि! भकिंत मे ह्मचलां कुरू।।
दक्षिणा-पूजा की पूर्णता के लिए द्रव्य भगवती को अर्पित करें। इसके बाद निम्न मंत्र की नवदुर्गा माला से एक-एक माला नौ दिन तक मंत्र जप करें-
संपूर्ण नवरात्रि में प्रतिदिन जप के दर्शन मां दुर्गा की आरती एवं गुरु आरती मंत्र संपन्न करें। नवरात्रि का प्रत्येक दिन साधक के जीवन में स्वयं का स्वरूप है। आद्यशक्ति इस चराचर जगत् में अपने भक्तों व साधकों को मुक्त हस्त से अभय, पराक्रम, धन, धान्य, वंश वृद्धि, स्वरत्व, आरोग्य, दीर्घायु जीवन, वाक्शक्ति में तेज ओज सौन्दर्य प्रदान करता है। साथ ही जीवन में शत्रु बाधा, अनेक रोग कष्ट, दर्द, धन हीनता, दरिद्रता, दुःख संताप, संतति हीनता से मुक्ति प्रदान करता है।
नवरात्रि पर्व तक सामग्री संपन्न होने के उपरान्त समस्त सामग्री को नदी में विसर्जित कर दें।
हर व्यक्ति के मन में अनेक-अनेक कामनाएं होती हैं। हर कोई सौन्दर्यवान, आकर्षण एवं चिरयौवन होना चाहता है। हर कोई जीवन में पूर्ण गृहस्थ सुख चाहता है और सभी की इच्छा होती है, कि इच्छित स्त्री-पुरुषों से ही उसका विवाह हो पर बहुत ही कम होते हैं रविवार ये कामनाये पूर्ण होती हैं, फिर उसका जीवन एक निराशा में बदल जाता है। ऐसी स्थिति में श्रेष्ठ उपाय है 'मातंगी दाम्पत्य होती सुख प्राप्ति साधना' क्योंकि इसका नाम से ही ज्ञात होता है, कि इसके द्वारा व्यक्ति की सभी सुखों में मनोकामनायें पूर्ण होते हैं।
वह अत्यधिक आकर्षित और सम्मोहक व्यक्ति का स्वामी हो जाता है, उससे प्रत्येक व्यक्ति संपर्क बढ़ाने के लिए जुड़ते हैं। उसका विवाह उसके प्रेमी-प्रेमिका से होने का मार्ग अनुकूल लग रहा है और उसका गृहस्थ जीवन परम सुखमय होता है।
प्रातः साधक स्वच्छती धोती धारण कर पीला आसन पर पूर्वाभिमुख होकर अपने सामने श्वेत वस्त्र पर दाम्पत्य सुख प्राप्त करें का पंचोपचार पूजन कर मातंगी का ध्यान करें-
मातंगी माला से 5 माला मंत्र जप संपन्न करें
भोगा की कुल मिलाकर मला को किसी जल में अर्पित करें और घर पर किसी बालिका को भोजन एवं उपहार प्राप्तकर्ता दें। ऐसा करने से साधना सिद्ध होती है और साधक की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
इस साधना का वर्णन कई ग्रन्थों में बड़े आदर के साथ किया गया है, क्योंकि यह साधना जहाँ व्यक्ति को जीवन में धन, व्यापार, बुद्धि, आर्थिक विकास एवं भौतिक सुख प्रदान करती है, साथ ही आध्यात्मिक उत्कृष्टता भी प्रदान करती है। ऐसे व्यक्ति के साथ एक हाथ में भोग एवं दूसरे हाथ में मोक्ष होता है। इसके द्वारा किसी भौतिक क्षेत्र में सर्वोच्च शिखर पर पहुंचकर समर्थ होता है और हर प्रकार की सफलता की ओर रचनाएं रहती हैं।
साधक स्वच्छ पीला धोती धारण कर पीले आसन पर पश्चिम दिशा की ओर मुख करके बैठ जाएं और अपने सामने लाल वस्त्र से ठीक हो जाएं बजोट पर कमला कंचन स्थापित कर उसका कुंकुम तथा गुलाब से पूजन कर ध्यान करें-
कमला कंचन माला से 3 माला मंत्र जप संपन्न करें-
साधना पूर्णता होने पर कमला कंचन व ग्रंथ होती नदी या जलमार्ग में विसर्जित कर, ऐसा करने से यह साधना सिद्ध सफल होते हैं और साधक भोग व मोक्ष से युक्त होता है।
श्री विद्या साधना विशिष्ट रूप से त्रिपूर सुन्दरी की ही साधना है, इन्हीं की नाम षोडशी एवं ललिता भी यही शक्ति हैं।
वास्तव में ये माँ जगदम्बा के रूप में ही, विभिन्न विवरणों के साथ-साथ उनके सभी संदर्भ भी बदलते रहते हैं। देवी के किसी विशिष्ट रूप की साधना करने पर तदनुकूल पद्धति से लाभ भी विशिष्ट रूप में मिलता है। जहाँ माँ भगवती जगदम्बा की साधना मूलतः भावना-प्रधान है वही षोडशी त्रिपुर सुन्दरी एवं ललिताम्बा की साधना तंत्रोक्त है।
जीवन में प्रत्येक व्यक्ति चाहे वह किसी भी व्यवसाय या नौकरी से जुड़ा हो, राज्यपक्ष से कार्य करता है। उनके मधुर संबंध होने पर समाज में उनका सम्मान भी बढ़ता है, साथ ही अनावश्यक तनाव एवं बाधाओं से भी बचत होती है।
इस हेतु सर्वार्थ साधिनी त्रिपुर श्रीं की साधना करने का विधान शास्त्रों में मिलता है कि किसकी कृपा प्राप्त करने के लिए राज्याधिकारी भी उपयुक्त व हित चिन्तक हो जाते हैं।
साधक अपने एक प्रकार के लाल रंग के वस्त्र पर अक्षर की संलग्नी में रहते हैं उस पर श्री चक्र यंत्र स्थापित कर उसका संक्षिप्तीकरण पूरा करें। इसका लघु नारियल को लेकर उसे पूरी तरह से केसर से रंग दें तथा यंत्र के विशिष्ट चावलों की ह्ली पर स्थापित कर पुष्प की पंखुडि़यों से तथा घिस के दीपक से पूजन कर श्री मातृभूमि से निम्न मंत्र की एक माला जप करें।
मंत्र जप के उपरान्त लघु नारियल को किसी लाल वस्त्र में बांधकर किसी पवित्र स्थान में रखें। ऐसा करने से निरन्तर जीवन में श्रीं युक्त व्यापार व राज्य पक्ष में मान सम्मान व समाज में ख्याति में वृद्धि होती है।
प्राप्त करना अनिवार्य है गुरु दीक्षा किसी भी साधना को करने या किसी अन्य दीक्षा लेने से पहले पूज्य गुरुदेव से। कृपया संपर्क करें कैलाश सिद्धाश्रम, जोधपुर पूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन से संपन्न कर सकते हैं - ईमेल , Whatsapp, फ़ोन or सन्देश भेजे अभिषेक-ऊर्जावान और मंत्र-पवित्र साधना सामग्री और आगे मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए,