मनुष्य के शत्रु एक नहीं हजारों होते हैं, जब तक वह एक परास्त करता है, तब तक दूसरे अनेक शत्रु उस पर युद्ध करते हैं और इस सामाजिक-संग्राम में युद्ध करते-करते उसकी शक्ति क्षीण होने लगती है, क्योंकि यह व्यक्ति जीवन रूपी संग्राम को अपनी शक्ति के बल पर जीत नहीं सकता, इसके लिए उसके पास साधना का बल होना आवश्यक है, मंत्र सिद्धि की आवश्यकता है।
महाभारत काल में श्रीकृष्ण ने गीता में यही कहा है, कि हे अर्जुन! तुम युद्ध को शास्त्रों के माध्यम से नहीं जीत सकते, जब तक कि तुम्हारे पीछे ईश्वरीय बल नहीं होगा, जब तक कि परमेश्वर मंत्र सिद्धि नहीं होगा, इसलिए जो द्रोणाचार्य से मंत्र सिद्धि प्राप्त करते हैं, उस सिद्धि को स्मरण करते हुए मंत्र गांडीव उठाओ , उसी समय तुम महाभारत युद्ध को जीत सकोगे, केवल धनेश्वर और तीर चलाने से ये दुर्योधन, दुःशासन जैसे पापी समाप्त नहीं हो सकते, उसके लिए द्रोणाचार्य ने देव तीर ही नहीं सिखाते, अपितु शक्ति भी दी है।
साधना ही एकमात्र ऐसा प्रबलतम शस्त्र है, जिसके माध्यम से जीवन के सभी शत्रुओं को परास्त कर जीवन के महासंग्राम में विजय प्राप्त की जा सकती है और वह भी पूर्ण के साथ। साधना शक्ति का ड्डोत है, जिससे वह व्यक्ति शारीरिक रूप से स्वस्थ और बलवान हो जाता है, क्योंकि उसे साधना का बल, ओज और तेजस्विता प्राप्त होती है, जो उसे जीवन के हर क्षेत्र में विजयी बनाने में सहायक सिद्ध है। आप सभी अबोध जीवन के महानतम शक्ति पर्व पर शक्ति से संपन्न होने के लिए विशिष्ट साधनाएं संपन्न करते हैं।
शक्ति से पूर्णता होने का यह महान पर्व साधक जीवन का निर्माणकारी क्षण होता है, क्योंकि इसी अवसर पर उच्चकोटि के साधक शक्ति साधनायें समृद्धि कर जीवन में व्यापक अंधकार को समाप्त करते हैं। योगी, संती, सामान्य गृहस्थ, साधक सभी को शक्ति की आवश्यकता है। साधना सफलता, कुण्डलिनी जागरण, भौतिक जीवन में विकास आदि सभी पक्ष शक्ति पर ही आधारित है।
इसलिए आवश्यक है कि शक्ति के साथ ही उससे संबंधित दीक्षा ग्रहण कर और अधिक क्षमता और बल के साथ सफलता प्राप्त की जाए, क्योंकि सभी साधन और सिद्धियों के प्रदाता होते हैं सद्गुरु नारायण ही हैं। उनका चेतन, तेजस्विता धारण कर यदि किसी साधना में प्रवेश किया जाए तो सफलता सुनिश्चित ही होती है। शक्तिपात दीक्षा के माध्यम से साधना में आने वाली बाधाएँ, रुकावटों का शमन होता है, जिससे साधना में सफलता अवश्य मिलती है। सद्गुरुदेव तो दीक्षा के माध्यम से सफलता उसी क्षण प्रदान करते हैं, फिर केवल साधनाओं द्वारा उस शक्ति को संग्रहित करने का कार्य ही शेष रह जाता है।
राज-राजेश्वरी महात्रिपुर सुन्दरी दीक्षा ग्रहण कर साधक सूर्य शक्ति युक्त भूः भुवः स्वः महाशक्तियों से युक्त हो जाता है। जिससे मन, बुद्धि, चित्त पराम्बा आद्या शक्ति विराजित होती हैं और साधक जीवन में आध्यात्मिक और भौतिक प्राप्त करते हैं, साथ ही नवरात्रि पर्व संहार शक्ति का पर्व है। जिसका चेतन आत्मसात कर साधक दीपावली पर्व की रचना शक्ति को पूर्णतः आत्मसात कर पाता है। क्योंकि विपरीत परिस्थियों के संहार होने पर ही लक्ष्मी का पूर्ण अस्थायित्व जीवन में पाया जाता है
प्राप्त करना अनिवार्य है गुरु दीक्षा किसी भी साधना को करने या किसी अन्य दीक्षा लेने से पहले पूज्य गुरुदेव से। कृपया संपर्क करें कैलाश सिद्धाश्रम, जोधपुर पूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन से संपन्न कर सकते हैं - ईमेल , Whatsapp, फ़ोन or सन्देश भेजे अभिषेक-ऊर्जावान और मंत्र-पवित्र साधना सामग्री और आगे मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए,