शंकराचार्य के चारों चरणों में आदिकाल से श्री यंत्र एवं श्रीविद्या की अनवरत् रूप में पूजा चल रही है, क्योंकि आद्य शंकराचार्य शैव होते हुए भी भगवती महात्रिपुरसुन्दरी के परमोपासक थे। हयग्रीव, अगस्त्य, दत्तात्रेय, दुर्वाशा, परशुराम आदि ने श्रीविद्या की साधना दीक्षा की क्रिया अपने जीवन में संपन्न की जिससे जीवन में उन्होंने भोग और मोक्ष दोनों ही सोपानो को प्राप्त किए।
श्री विद्या एकमात्र विद्या है, जिसके नौ स्वरूपों में ही सभी कामनाओं की स्वीकृति का मंत्र निहित है। सर्व प्रथम तनावमुक्त जीवन, प्रत्येक मनोकामना की परछाई, जीवन के रोग-शोक का शमन, शत्रु बाधा से मुक्ति, राज्य पक्ष से अनुकूलता एवं सम्मान, जीवन में पूर्ण भाग्योदय, आर्थिक नीतियों प्रत्येक अनिष्ट का शमन, पूर्ण गृहस्थ सुख एवं प्रभावी व्यक्तित्व भौतिक रूप मानव जीवन से प्रथम आवश्यकता है। श्री विद्या पूर्ण रूप सर्व दुःख नशिनी श्री विद्या दीक्षा से साधक जीवन की अनेकों से निराकार हो जाती है।
प्राप्त करना अनिवार्य है गुरु दीक्षा किसी भी साधना को करने या किसी अन्य दीक्षा लेने से पहले पूज्य गुरुदेव से। कृपया संपर्क करें कैलाश सिद्धाश्रम, जोधपुर पूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन से संपन्न कर सकते हैं - ईमेल , Whatsapp, फ़ोन or सन्देश भेजे अभिषेक-ऊर्जावान और मंत्र-पवित्र साधना सामग्री और आगे मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए,