अग्निवात्त, बर्हिषद्, आज्यप, सोमप, रश्मिप, उपहूत, आयन्तुन, श्राद्धभुक् और नान्दीमुख ये नौ दिव्य पितर बताते हैं, इसी प्रकार श्राद्धकर्ता पुरुष के मातामह, प्रमातामह या वृद्ध प्रमाताह और पिता, पितामह, प्रपितामह पद पर जब तक रहते हैं, तब श्राद्ध भाग ग्रहण करने से उनमें से क्रोध की अधिकता होती है। दिव्य पितर नित्य एवं सर्वज्ञ होते हैं, जो देव लोक या पितर लोक से अपने श्राद्ध भाग को ग्रहण करने आते हैं।
अश्विन कृष्ण पक्ष महालय अमावस्या में जो मनुष्य श्राद्ध की साधनात्मक क्रिया संपन्न करता है, उसके पितर वर्ष भर तृप्त रहते हैं। जो व्यक्ति पितृ पक्ष में श्राद्ध नहीं करता, उस पर अलक्ष्मी चाण्डाल योग बनता है। जिसके कारण जीवन में दीनता-हीनता, दरिद्रता, रोग-शोक और घर में झटके का वातावरण बनता है।
इसी कैलाश सिद्धाश्रम साधक परिवार साधकों को सचेत और सचेत प्रदान करने के लिए विभिन्न माध्यमों से पित्रो से होने वाले प्रभाव से अवगत है, साथ ही समाधान की संभावित विधि के सुझाव देता है। क्योंकि मानव जीवन की सफलता-असफलता का सबसे बड़ा कारण पितृ ऋण ही होता है, जिसकी ओर अधिकतर लोग ध्यान नहीं देते। लेकिन ऐसा करके वे खुद को ही नुकसान पहुंचाते हैं।
परम पूज्य सद्गुरुदेव कैलाश चन्द्र श्रीमाली जी महालय अमावस्या के चैतन्य दिवस पर पितृ दोष मुक्ति पूर्णत्व प्राधिकार योग्य शक्ति दीक्षा तालीपैथी (फोटो) के माध्यम से प्रदान करेंगे, जिससे उनमें न्यूनता, दीनता, रोग, शत्रु पीड़ा, कलह व अभाव रूपी असुर शक्तियों का शमन होता है है और साधक शक्ति पर्व की पूर्णत्व चेतन को आत्मसात कर श्रेष्ठ परिस्थितियों को प्राप्त करता है।
तीन पत्रिका सदस्य इसे दीक्षा उपहार स्वरूप प्रदान करते हैं!
प्राप्त करना अनिवार्य है गुरु दीक्षा किसी भी साधना को करने या किसी अन्य दीक्षा लेने से पहले पूज्य गुरुदेव से। कृपया संपर्क करें कैलाश सिद्धाश्रम, जोधपुर पूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन से संपन्न कर सकते हैं - ईमेल , Whatsapp, फ़ोन or सन्देश भेजे अभिषेक-ऊर्जावान और मंत्र-पवित्र साधना सामग्री और आगे मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए,