रक्ताल्पता (पांडुरोग) का रोगी जब अत्यधिक पित्तकारक आहार-विहार का सेवन करता है तो उसका पित्त रक्त और मांस को झुलसा देता है या अत्यंत क्षतिग्रस्त कर पीलिया कामला रोग की उत्पत्ति करता है, इस रोगी की त्वचा, आंखें, नख, मुख आदि सभी पीला हो जाता है और मल-मूत्र भी लाल-पीले रंग का हो जाता है, रोगी का वर्ण मेंढक के समान हो जाता है रोगी हर्य निर्बलता महसूस करता है, रोगी अजीर्ण, दाह, दुर्बलता, अवसाद और अरूचि से पीडित होकर कृश हो जाता है है, यह शरीर की बीमारी में पित्त का अत्यधिक बढ़ने का कारण बनता है।
आधुनिक चिकित्सा प्रणाली में पीलिया के तीन प्रकार बताए जाते हैं-
अवरोधित पीलिया ((अवरोधक)-इस पीलिया की पहचान सबसे पहले मरीज के मल को देख कर होती है, इस अवस्था में आंतों में पित्त का अभाव होता है और इसके कारण मल का रंग सफेद या मिट्टी के रंग के होता है, इस अवस्था में आंतों में संध बढ़ जाती है है और मल में वसा की वृद्धि होती है, रक्त में पित्त की मात्रा और कोलेस्ट्रॉल भी बढ़ जाता है।
संक्रामक पीलिया (विषाक्त या संक्रामक)-इस प्रकार की पीलिया में कुछ आंतों में प्रवेश करता रहता है, मूत्र में यूरोबिलियन की अधिकता रहती है, अमीनो एसिड और अमोनियम एसिड बढ़ जाते हैं, पीलिया की इस स्थिति में लीवर के सेल को नुकसान पहुंच सकता है।
हीमालाइटिक पीलिया (Haemolytic)-पीलिया के इस प्रकार से रक्त के कण अधिक संख्या में टूटते हैं, यह सहज हो सकता है या बाद में भी हो सकता है, इस स्थिति में मल का रंग स्वभाव से रहता है, सामान्यतः मूत्र में बिलीरूबीन या पित्त नमक नहीं होते, आप रुकते नहीं हैं व सूजी होती रहती हैं।
शिशु कामला पीलिया के प्रकरण में यह एक सामान्य स्थिति होती है जो बच्चों को प्राप्त होती है, यह जन्म के दूसरे या तीसरे दिन प्रकट होता है, यह बहुत तीव्र नहीं है, मुश्किल से एक या दो सप्ताह रहता है, मल स्वाभिक रंग का होता है इसमें कोई अन्य विकृति भी नहीं मिलती, यह अवस्था निश्चित रूप से रक्ताणुओं में हीमोलिसिस के कारण प्राप्त होती है।
इस अवस्था में चिकित्सा करते समय बार-बार रक्त का ट्रांसफ्रूजन करना चाहिए और विटामिन का प्रयोग करना चाहिए, यदि सहज सिफ्लिस के कारण या पित्त प्रणाली के न होने की संभावना कम रहती है।
कभी-कभी संक्रमण के कारण भी बच्चे को पीलिया हो जाता है, इस समय किसी भी अच्छे चिकित्सक की सलाह अनिवार्य लेनी चाहिए।
पीलिया के वायरस के शरीर में प्रवेश करने के लगभग एक महीने बाद इस बीमारी के लक्षण सामने आते हैं, लक्षण शुरू होने से एक हफ्ते पहले ही इससे लीवर सेल्स के मरीज हो जाने से आमाशय में सूजन आ जाती है जिससे भूख खत्म हो जाती है , भोजन के प्रति अत्यधिक अरूचि हो जाती है, जी मिचलता है और वमन के लक्षण भी होते हैं, भोजन के प्रति अधिक अनिच्छा और भोजन के नाम से भी अरूचि के लक्षण होना पीलिया के प्रमुख लक्षण हैं।
आमाशय में सूजन के कारण या पहचान के नीचे भारीपन या लिक-सा दर्द भी होता है, शरीर में संक्रमण के कारण सिरदर्द बना रहता है, शरीर तनाव-थका और अस्वस्थता महसूस करता है, पित्त के रक्त में जाने से मूत्र का रंग गहरा हो जाता है है।
इन शुरूआती लक्षणों के शुरू होने के एक सप्ताह के अंदर सूक्ष्म धब्बे, संदेश के अवरूद्ध हो जाने पर मूत्र में पीलापन आ जाता है और आंख, नाखून, त्वचा आदि भी पीले हो जाते हैं।
रोग इस कारण चलते- फिरते जीवन से विषाणु का प्रभाव जिगर पर पड़ता है, क्योंकि रोगी को पूर्ण विश्राम करना चाहिए, उसके साथ-साथ घरेलु औषधियों का प्रयोग करें, क्योकि इसमें घरेलू औषधियां अधिक शाकाहारी सिद्ध हैं, कुछ घरेलू नुस्खे निम्न प्रकार हैं ।-
पीलिया का सबसे अच्छा इलाज गन्ना है, गन्ने को जमा या उसका ताजा रस पीने से पीलिया का शमन होता है, भुने हुए जौ या चने के सत्तू के साथ गन्ने के रस का सेवन से भी पीलिया हमेशा के लिए खत्म हो जाता है।
रोज बेल के 25 पत्तों को पानी के साथ पीसकर एक सप्ताह तक नियमित रूप से पीने से उग्र पीलिया भी दूर हो जाता है।
10 ग्राम सोंठ के चूर्ण में गुड़ मिलाकर सुबह- शाम दो बार गुनगुने पानी के साथ कम से कम एक सप्ताह तक सेवन करने से पीलिया रोग की रोकथाम होती है।
एक ग्राम पीपल की छाल की राख फांककर एक या दो ग्लास छाछ लेते हैं, इससे सारा पीलापन निकल जाता है।
आयुर्वेद के अनुसर पीलिया रोग में निम्नलिखित योगों में से किसी एक का प्रयोग करना चाहिए।
सोलोभस्म योग-लौहभस्म, हल्दी, दारूहल्दी, त्रिफला, कुट के सभी समान भाग लेकर चूर्ण बनाएं फिर इसे 3 ग्राम की मात्र में घी-मधु के साथ सेवन करें, इससे पीलिया रोग दूर हो जाता है।
अयोरजादि चूर्ण-लौहभस्म, हरड़, हल्दी, तीनों समान भाग लेकर चूर्ण बनायें, इसे 1 ग्राम की मात्र में घी-मधु के साथ सेवन करें।
हरेकी चूर्ण-त्रिकटु, त्रिफला, मुस्ता, पिप्पलीमूल, चित्रक, त्रिजातक, चव्य, इमली, एसिडबेंट 1-1 भाग लेकर पक्का चूर्ण बना लें, फिर सभी के सुवर्ण-मासिक भस्म लेकर एक साथ मिलकर रखें लें 3 ग्राम चूर्ण और 3 ग्राम खांड मिलाएँ के साथ चाटें।
आहार-पीलिया रोग में पथ्य का विशेष ध्यान रखना चाहिये, व्ही, चावल को मूंग, अरहर, मसूर या कुलथी के ज्यूस या दूध के साथ सेवन करना चाहिये, गन्ने का रस, संतरा, मोसंबी, अंगूर, गाय के दूध का मट्ठा-द, मूली , ककड़ी, खिरा, टमाटर, आंवला, परवल, गजरा, पपीता, करेला आदि पथ्य हैं।
धन श्रीमाली
प्राप्त करना अनिवार्य है गुरु दीक्षा किसी भी साधना को करने या किसी अन्य दीक्षा लेने से पहले पूज्य गुरुदेव से। कृपया संपर्क करें कैलाश सिद्धाश्रम, जोधपुर पूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन से संपन्न कर सकते हैं - ईमेल , Whatsapp, फ़ोन or सन्देश भेजे अभिषेक-ऊर्जावान और मंत्र-पवित्र साधना सामग्री और आगे मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए,