प्रेम का प्रतिबिम्ब उसी तरह निश्चल और शांत, जिसमें कोई उत्साह नहीं, कोई छिछलापन नहीं, वासनाओं का उमड़ता ज्वाइ नहीं और न कोई उद्वेलन। अप्सराओं के तीखे नयन नक्श की जगह पुष्पदेहा के चेहरे पर अजीब है मृदुता, उसके अंग-अंग की तरह ही कोमल और सुडौलता यानी उदार सभी रूप में, भले ही वह अण्डाकार चेहरा हो या विदेश-भरे स्वस्थ कपोल, आंखों की कठोर भी व्यवहार करता है में घुली शालीनता, अपनापन लिए होठों से कारक होती गुनगुनाहट में जीवन का मधुर संगीत सुनाती हुई।
ऐसी ही तो है मृगाक्षी रूपिता। गर्व अपने रूप का, अपने दिल में भरी खूबियों की खान का और गर्व अपनी नारीत्व का, ऐसा गर्व जिसमें कोई हठी नहीं, गर्व जिसमें कि वह बोध हो कि मैं नारी हूं, पुरुष को पूर्ण करने में समर्थ, अपने हृदय से प्रेम-प्रमोद करने में समर्थ, गर्व जो कि समाया हो अपने अन्तर्राष्ट्रीय प्रचारकों को लेकर और ऐसा ही गंदा अभिमान जो घंटियों की तरह खनकते आते आते पहुँच जाते हैं।
अपने रूप में प्रकाश से अपने यौवन की आभा से रौशनी-हल्की, दबी-दबी उठती हंसी की फुलझड़ियों से, जब वह अपने ही यौवन की विक्षिप्तता पर मुग्ध हो जाती है, खुद ही उसी में खोकर जब अपनी फिल्म-खिलाहट बिखेर देता है, भूल गया है कि वह कहाँ है, और कैसे है? तो घनी से घनी रात में भी खिल जाते हैं सौ-सौ दीपक ज्यों दीपावली अभी गई न हो, जाते-जाते फिर लौट आई हो, उसे भी पता लग गया हो कि मृगाक्षी जो उतरी है आई है इस धरा पर, उसके कोमल होठों के भीतर से वर्णी, स्वच्छ श्वेत छोटा और सुघड़ पंक्ति की झिलमिलाहटों से भर जाता है, मन में, जीवन में उत्साह का वातावरण। दादिम के दानों की तरह एक पर एक चौड़ा दांत और स्वस्थ कपोलों का आभा, रविवार को कोई उपमा ही नहीं, और जिस तरह से इसका ध्यान प्राचीन शास्त्रों में मिलता है, उसी के रूप में इसकी एक चमक सी दृष्टि है कामदेव के पंच बाणों की संज्ञा क्योंकि मृगाक्षी की विकट धुनखिलाहट की गणना ही नहीं की गई है।
जिससे मुनि जन अपना विवेक इस भ्रम में पड़ जाता है कि यह कोई नूपुर ध्वनि है या किसी वाद्य यंत्र से निकला है कोई संगीत का स्वर, कल्पना ही नहीं कर पाती, ही विश्वास नहीं होता कि ऐसी नारी स्वर भी हो सकता है।
मंदिर पीत आभा के रेशमी कपड़ों से खींच, सुडौल अंगो से युक्त, विहीत छवि वाली, मध्यम कद की यह रूप गर्विता जिसके आभूषणों में यत्र-तत्र नूपुर का बाहुल्य है—पैरों में लगे पायजेब या आधार में लगे हुए करधनी या लंबे सघन केशराशि और उन्नत वक्षस्थल को मर्यादा में आकर्षण का प्रयास करते हुए स्वर्ण तारे से रचित जेवर मंडल—जिसके शरीर से दिखाई विहीता की ध्वनि इन नूपुरों के संगीत को भी लज्जित कर रही है, वही समान रूप से चिंता—- रूप में भी अपनी परिभाषा भूल गई हो और निहार रहा हो मृगाक्षी के चेहरे को अपने-आप को देखकर खिलाडी हैरान हो जाते हैं।
तभी तो धन्वन्तरी जैसे श्रेष्ठ आचार्य भी बाउंड हो गए ऐसी अनोखी सुन्दरी को अपने जीवन में उतार कर अपने शास्त्र को पूर्णता देने के लिए। संपूर्ण शास्त्र लेखन के बाद भी वह उन्हें उपाय नहीं कर रहा था, जो एक ही बार में उनके संपूर्ण काया-कल्प कर दे। शरीर गिर गया और इन्द्रियो को फिर से जवान बना दिया। क्योंकि यौवन की कमी में तो फिर से पूरा किया जाता है संपूर्ण चिकित्सा पद्धति। शरीर निरोग हो लेकिन शामिल यौवन की छलछलाहट न आए, इसमें कुछ प्राप्त कर लेने की, किसी को अपना बना लेने की अदम्य लालसायें न उफन रही हों तो फिर वह यौवन किस अर्थ का—और यही उपाय नहीं मिल रहा था धनवंतरी को और न वे बन रहे थे चिकित्सा जगत के अनोखे अंश।
किस प्रकार की हब-विभाग, किस प्रकार की भस्म, किस प्रकार के लेप और सभी प्रकार के रस का प्रयोग करके देख चुके थे, लेकिन कोई नहीं सिद्ध हुआ उनकी आशाओं पर पूर्ण रूप से सत्यता प्राप्त हुई और तभी उन्हें प्राप्त हुआ यह संसाधन का सूत्र । संसाधन जगत में वे तो कल्पना भी नहीं कर रहे थे, चिकित्सा जगत की इस समस्या का, अद्वितीय यौवन प्राप्त करने का यह रहस्य जो जुड़ा हुआ है उसमें नहीं है, जो छिपा हुआ है मृगाक्षी रूप गर्विता की विभिन्न देह में, वहीं से तो इस शरीर और मन में यौवन की छींटाकशी और सच भी तो है, बिना सौन्दर्य साक्षात्, बिना ऐसे सौन्दर्य को जगाओ में, फिर जहां से फट शक है इस जर्जर शरीर में यौवन की गुनगुनाहट और उल्लासित हो गए अंश धन्वन्तरी शास्त्र की इस निरपेक्षता का रहस्य प्राप्त करें।
वे तो सिद्धतम अंश हैं, इस चिकित्सा जगत के ही नहीं, साधना जगत के भी। और उन्होंने मृगाक्षी रूप में अपने वश में करने की एक नई कार्यप्रणाली को खोजा। सच तो है कि मृगाक्षी स्वयं आतुर होग, ऐसे कामदेव युक्त युग पुरुष का सानिध्य प्राप्त करने को, और इसी तालमेल का परिणाम बनी रूप में गर्विता की यह साधना। इसने फिर आगे मार्ग परिमार्जन किया प्रत्येक साधक के लिए जो आतुर हो अपने जीवन को नवयौवन से भरने के लिए। ऐसे सौन्दर्य का सानिध्य पाकर अपने जीवन में कुछ नया रचित करने के लिए।
एक सामान्य सी अप्सरा साधना नहीं या सामान्य मृगाक्षी रूप अप्सरा साधना नहीं यह तो अप्सराओं में भी सर्वश्रेष्ठ, रूप का आधार, रूप गर्विता की डिग्री से विभूषित, एक नारी देह में घुला सौन्दर्य अपने रग-रग में बसा लेने की बात है। जब एक बार मृगाक्षी का टच साधक मिल जाता है, तो फिर वह अपने सिद्ध साधक को अपने जीवन में कभी भी धोखा नहीं देता, फिर भूल जाता है, अपने यौवन का गौरव और लुटाता है अपनी बातों को अपने सिद्ध साधक पर—-
किसी भी गुरूवार या 01 अक्टूबर को पुष्पदेहा अप्सरा चैतन्यता प्राप्ति दिवस सांयकाल जब सूर्य अस्त हो जाएं तब अत्यंत उल्लसित मन से साधना में प्रवृत्त पुरुष, पुरुष साधक पीला धोती और साधिका पीले रंग की रेशमी अधिकार धारण कर शिकायत को खुला रखना और अनुपालन आदि से अपने को सुगन्धित कर ले। दिशात्मक बंधन नहीं है।
सामने पीले रेशमी परिधान पर ही ब्रेज़ेन के पात्र में अष्ट पुष्पदेहा नमः कुंकुम से लिख सौन्दर्य चेतन युक्त अप्सरा यंत्र स्थापित करें व्हायोटेटर है कि मृगाक्षी अपनी अष्ट शक्तियों के साथ आवाहित और मुझमें समाहित हो। इसका पूजन पंखुडि़यो, अक्षर, एवं वर्षा ऋतु से करें तथा एक मंत्र मृगाक्षी अप्सरा माला से एक सौ आठ बार उच्चारण करते हुए केसर की एक आठ बिन्दियों को इस यंत्र पर लगाएं, घृत का दीपक प्रज्वलित रहे। यह 7 दिन की विधि है। प्रतिदिन संसाधना के उपरान्त यंत्र एवं ग्रंथि को वहीं स्थापित करें तथा उसे किसी स्वच्छ वस्त्र से ठीक करें।
प्रतिदिन एक माला अर्थात 108 बार उच्चारण करने के साथ-साथ अंतिम दिन इस मंत्र की 3 माला मंत्र जाप करें।
इसलिए उस दिन साधना में एक सावधानी से सावधानी से बैठें, वातावरण के स्वाद से भर और पूजन स्थान पर गर्मियों में पुष्प दें का आसन बनाकर उस पर व्यवस्थित करें। इस दिन सर्वथा गोपनीयता आवश्यक है, क्योंकि यही दिन है मृगाक्षी पुष्पदेहा अप्सरा के साक्षात् उपस्थिति होने का और इसमें कोई भी विघ्न होने से वह उपस्थित होते-होते रह जाता है।
दैना पूर्ण होते-होते कमरे में सुगंध बढ़ती हुई दिख सकती है या रोशनी बढ़ती दिख सकती है या नूपुर ध्वनि हो जाती है और ठीक यही समय है मृगाक्षी से वचन लेने का उसे जीवन भर अपनी प्रेमिका, अपनी सहचरी बना कर रखने का।
इस प्रकार यह जीवन की परिवर्तनकारी साधन सम्पन्न होती है और आधार बन जाती है आगामी साधनाओं की सफलता का कारण जहां ऐसी श्रेष्ठ पुष्पदेहा का साहचर्य हो वहीं प्रेम की लेते हैं, वहीं यौवन की फ्लैशिंग बिजली जैसी तीव्रता है और जो आधार है किसी भी साधना या विद्या को प्राप्त कर लेने का।
प्राप्त करना अनिवार्य है गुरु दीक्षा किसी भी साधना को करने या किसी अन्य दीक्षा लेने से पहले पूज्य गुरुदेव से। कृपया संपर्क करें कैलाश सिद्धाश्रम, जोधपुर पूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन से संपन्न कर सकते हैं - ईमेल , Whatsapp, फ़ोन or सन्देश भेजे अभिषेक-ऊर्जावान और मंत्र-पवित्र साधना सामग्री और आगे मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए,