यदि सही रूप से देखा तो हमारा अब तक का बीता जीवन का जाम, रुकावटें, रुकावटें और वजह से जुड़ा है, हमें जीवन में कुछ सुख मांगा था, वह नहीं मिला, हम जीवन में जो आनंद लेना चाहते थे, वह नहीं मिले और हम पद के लिए धन के लिए और प्रभुता के लिए बराबर परेशान होते रहे, झगड़ते रहे, जरूरत से ज्यादा मेहनत करते रहे, लेकिन हमें जो योग्यता एवं फल प्राप्त होने वाला था वह नहीं मिला।
इसका कारण यह है कि व्यक्ति का विकास तभी कर सकता है, जब उसके पास दैवी शक्ति हो, दैवी शक्ति की सहायता से ही व्यक्ति अपने जीवन में पूर्ण विकास और सफलता प्राप्त कर सकता है। महाभारत काल में जब अर्जुन को युद्ध में विजय प्राप्त करने की इच्छा हुई तो भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें यही सलाह दी, कि बिना दिव्य अस्त्रों के युद्ध में विजय प्राप्त करना असंभव है, क्योंकि यह जरूरी है कि पहले तुम शिव और इंद्र की भगवान करो , उन्हें दैविक अस्त्र प्राप्त करो और ऐसा होने पर ही तुम जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पूर्ण सफलता प्राप्त कर सकते हो।
जीवन में इस युद्ध में इस महामारी के दौर में लड़े तो रहे हैं, परन्तु जिस प्रकार से विजय होने लगी है, उस प्रकार से विजय या सफलता नहीं मिल रही है, यह जीवन का युद्ध केवल हम अपने बाहुबल से ही लड़ रहे हैं, जबकि हमारे पास दैविक शक्ति हो सकती है, यदि हम दैविक शक्ति को प्राप्त कर लेते हैं तो सफलता प्राप्त करने के लिए अधिक अनुकूल और अधिक पसंद किया जाता है, और ऐसा करने पर ही संपूर्ण जीवन में जगमगाहट प्राप्त हो सकता है।
साधना की पूर्ण सफलता के लिए यह जरूरी है कि साधक के मन में यह दृढ़ निश्चय हो कि मैं अपने जीवन को संवारना है, मुझे अपने जीवन में पूर्ण सफलता प्राप्त करनी है, और मैं समाज में तथा देश में विकास के शिखर पर पहुंच गया हूं पूर्णतया करके ही रहूंगा।
इस प्रकार की संकल्प शक्ति से निश्चय ही साधक के जीवन में पूर्णता, योग्यता ही दिखाई देती है, और वह जीवन का दुःख, दैन्य, बाधाएँ, ब्रेकअप को दूर करने में सफल हो पाता है तथा जीवन में वह सब कुछ प्राप्त कर लेता है, जो उसके जीवन का लक्ष्य होता है, जो जीवन का उद्देश्य होता है।
पद्मावती साधना मूलत जैन साधना है, हालांकि इसका उल्लेख मंत्रव और अन्य तांत्रिक मांत्रिक ग्रंथों में भी आया है, लेकिन इसका विस्तार से विवेचन जैन ग्रंथों में ही पाया जाता है। जैन समाज में दीपावली की रात्रि को देवी पद्मावती की साधना पूजन तो प्रत्येक व्यक्ति ही करता है। वस्तुतः रहस्य की बात यही है कि पद्मावती साधना एवं पूजन पद्धति के प्रभाव से आज जैन सम्प्रदाय के लोग समाज में उच्च पदों पर आसीन हैं या बड़े-बड़े गिनतियों व व्यापारों में संलग्न हैं। प्रतिष्ठा और सम्पदा तो जैसे इन्हें विरासत में ही मिलता है।
जैन धर्म मूलतः अहिंसा, शान्ति, प्रेम, सदाचार और अध्यात्म ज्ञान का प्रेरक धर्म रहा है, परन्तु इसके उपरान्त भी पद्मावती साधना के महत्व को जैन मुनियों ने मुक्त कण्ठ से स्वीकार किया है और इसके बारे में कहा है कि पद्मावती साधना तो उच्च उच्चकोटि की साधना है, जो प्रत्येक गृहस्थ को संपन्न होती ही होती है, चाहे वह किसी भी जाति का हो, धर्म का हो, देवी की कृपा तो उसे प्राप्त ही होती है।
जैन धर्म के आदिगुरू नेमिनाथ ने स्वयं महान साधनायें सिद्धि की और अपने शिष्यों को यह ज्ञान दिया, इनके शिष्य तीर्थंकर कहलाये। इस प्रकार जैन धर्म में चौबीस तीर्थंकर को प्रमुख पद दिया गया है, रविवार वाणी में पद्मावती तंत्र को धन की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है जो साधक पूर्ण मनोभाव से पद्मावती साधना करता है वह कभी अर्थ से विनीत नहीं रह सकता, साधना के माध्यम से व्यक्ति के जीवन में सर्वोच्च शिखर पर पहुंच सकता है।
भाद्रपद शुक्ल एकादशी को पद्मावती जयंती है। पद्मावती का पत्र है विष्णु की शक्ति लक्ष्मी, इस दिन पद्मावती सिद्धि दिवस पर्व भी कहा जाता है। पद्मावती का स्थान भगवान विष्णु का वक्षस्थल है, भगवान विष्णु जगत के पालनकर्ता हैं और जो साध पद्मावती का पूजन साधना करते हैं उसमें भगवान विष्णु के पालनकर्ता भाव आ जाते हैं। वह नर श्रेष्ठ बन कर यशस्वी एवं कीर्तिवान बनता ही है।
पद्मावती साधना के द्वारा जीवन का विघ्न होता है, क्योंकि इसे जैन आचार्यों ने सर्वार्थ सिद्धदायिनी साधना कहा है, इस साधना के माध्यम से जीवन में अष्टलक्ष्मी की प्राप्ति है। जीवन का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं जिसमें साधना के बल पर कार्य संपन्न नहीं किया जा सके और पद्मावती साधना साधकों के लिए वरदान स्वरूप ही है।
यदि दो टूक शब्दों में पूछा जाए कि जीवन का सौन्दर्य क्या है, जीवन की सार्थकता क्या है, तो निः संकेत उत्तर दिया जाना चहिये लक्ष्मी। यही जीवन का परम सत्य है, क्योंकि इसके अभाव में फिर जीवन का और विशेष रूप से गृहस्थ जीवन का कोई अर्थ नहीं रहता। केवल गृहस्थ जीवन तक ही नहीं वरन् लक्ष्मी का अर्थ व्यापक रूप से घटित जीवन के प्रत्येक पक्ष, प्रत्येक विधि और प्रत्येक शैली को अपनी प्रतिक्रिया ले ही लेता है, क्योंकि इसी से जीवन में फोकस संभव होता है। कामनाओं की निगरानी संभव होती है तथा उन सभी क्षेत्रों को अल्पसंख्यकों के आधार पर बनाया जा सकता है, इसलिए मानव अपने-आप को सुखी व सन्तुष्ट कर सकता है।
इस साधना द्वारा साधक के भीतर व्याप्त भय दूर हो जाता है, और इसके ब्रह्माणी स्वरूप द्वारा साधक शत्रुओं के समूह में जाने पर भी वे मित्रवत् हो जाते हैं। जीवन में रोग, शोक एवं दरिद्रता विकास के मार्ग में सबसे बड़े बाधक कहते हैं, और केवल पद्मावती साधना ही ऐसी साधना है, जिसका लक्ष्मी का स्वरूप भी है, और दोष से निवारण लीला भी व्याप्त है। जिससे साधक को जीवन में हर प्रकार के क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है।
शुक्ल पक्ष की एकादशी पद्मावती जयंती की रात्रि में साधक स्नान कर पीला धोती पहन कर पीले आसन पर पूर्व दिशा की ओर मुंह कर अपने सामने पद्मावती स्वरूप श्री यंत्र स्थापित करें और इसकी तिकड़ी त्रिकोण रूप में भृंगी, काली, करली को सुपारी रूप में बनाएं कर दो। ये भगवती पद्मावती की त्रिशक्ति का स्वरूप हैं। अब क्रमानुसार पूजा करने वाली श्री यंत्र के सामने एक छोटा ब्रेज़ेन का पात्र अवश्य प्राप्त करें।
सर्वप्रथम गुरु पूजन व भगवान विघ्नहर्ता गणपति का ध्यान संपन्न करें, उनकी देवी पद्मावती स्वरूप श्री यंत्र पर जल अर्पित करें, उनके मौली, और फिर अक्षर कुंकुम आदि देवी को अर्पित करें और दीपक जलाएं लें।
इसके बाद अपने दोनों हाथों में पुष्प लेकर सर्व सिद्धि दायिनी सर्वोन्नति प्रदायिनी भगवती पद्मावती का ध्यान रखें-
ॐ श्रीमद्गिर्वाण चक्र स्फुट मुकुट रूपी दिव्यमाण्क्यिभूमि।
ज्योतिर्ज्वाला कराला स्फुरितिका मकर घृष्ट पादारविन्दे।।
व्याघ्रोरूल्क सहस्त्रं ज्वलदनलशिखा लीलपाशां कुशाढ्ये।
आं क्रां ह्रीं मंत्ररूपे क्षपितक्लिमले रक्ष मां देवि पद्मे।।
इसके बाद भगवती पद्मावती ग्रंथ से निम्न बीज की 3 माला 5 दिन तक जप करें।
इससे दोष निवारण होता है, और जीवन में धन लक्ष्मी, व्यापार वृद्धि के मार्ग खुलते हैं साथ ही भूत-प्रेत पिशाच आदि के उपद्रव दूर होते हैं। साधना शक्ति के बाद सामग्री को किसी तालाब या नदी में विसर्जित कर दें।
अचूक धन व्यापार वृद्धि जैन तंत्र संसाधन व्यापार में वृद्धि, बिक्री में वृद्धि और निरन्तर धन लक्ष्मी की आकस्मिक रूप से प्राप्ति के लिए यह विधि सर्व श्रेष्ठ है। इस साधना के माध्यम से जीवन में आ रही कई प्रकार की बाधाओं पर विजय प्राप्त कर सकती है, संभावना की संभावना ही है।
पद्मावती जयंती के दिन की रात में पीले धोती धारण कर उत्तर की ओर मुख कर पीले आसन पर बैठें। अपने सामने एक चौकी पर पीले वस्त्र बिछाकर एक थाली में लक्ष्मी स्थापित करें। यंत्र पर पीला पुष्प व अक्षरत, कुंकुम, दुह, दीप से पूजन कर देवी पद्मावती के संदर्भ का ध्यान रखें-
दिव्योवताम् वै पद्मावतीं त्वां, लक्ष्मी तमेव धन धान्य सुतानवदानन्वै।
पूर्णत्व देह पूर्ण मदैव तुल्यं, पद्मावतीं त्वां शरणम् नमामि।।
ज्ञानेव सिन्धुं ब्रह्मत्व नेत्रं, चैतन्य देवीं वीं भगवन भवत्यम्।
मैं तुम्हें प्रणाम करता हूं, हे देवी, मेरे प्रति समर्पित, हे हरे, मुझ पर दया करो, मुझ पर दया करो, मुझ पर दया करो।
इसके बाद व्यापार वृद्धि ग्रंथ से निम्न मंत्र की 3 माला 3 दिन तक पूर्ण हो जाएं।
साधना समाप्ति के बाद सभी सामग्री को किसी भी नदी में विसर्जित कर दें।
प्राप्त करना अनिवार्य है गुरु दीक्षा किसी भी साधना को करने या किसी अन्य दीक्षा लेने से पहले पूज्य गुरुदेव से। कृपया संपर्क करें कैलाश सिद्धाश्रम, जोधपुर पूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन से संपन्न कर सकते हैं - ईमेल , Whatsapp, फ़ोन or सन्देश भेजे अभिषेक-ऊर्जावान और मंत्र-पवित्र साधना सामग्री और आगे मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए,