स्वभाव से शरीर के चक्कर की कार्य प्रणाली में सुधार करता है तथा कथन को दूर करने में सहायक सिद्ध होता है, साथ ही इसके सेवन से शरीर पर कोई भी विपरीत प्रभाव भी नहीं पड़ता।
तुलसी की भारतीय संस्कृति में पवित्र स्थान है। यह हिन्दू धर्म में पूज्य माना जाता है। देव पूजन में इसका श्रेष्ठ स्थान दिया जाता है। इसे घर में लगाने को शुभ माना जाता है। तुलसी में जल अर्पण करने से परिवार में सुख, शांति एवं समृद्धि की वृद्धि होती है। धार्मिक कार्य, प्रसाद, पंचामृत आदि में तुलसी की क्रेजी को विशेष महत्व दिया जाता है। जहां सूक्ष्म सूक्ष्म के संयंत्र होते हैं वहां प्रभाव की उत्पत्ति करने वाले मच्छर, कीट आदि नहीं पहुंचते, वहां का वातावरण शुद्ध बना रहता है। यह माना जाता है कि जिस घर में तुलसी का पौधा होता है, वहां भय, रोग एवं दुःख दर्ज नहीं करते।
तुलसी एक कड़वा भोग भी है। धार्मिक दृष्टि से ही नहीं वरन् औषधीय गुणों की दृष्टि से भी यह अद्वितीय है। आयुर्वेद ग्रंथों में तुलसी के गुणों का विस्तृत विवरण मिलता है। रोग निवारण की दृष्टि से यह कहता है अतिशयोक्ति नहीं होगी कि तुलसी केवल औषधि ही नहीं वरन् महा औषधि है, अमृत है। इसी कारण से आयुर्वेद में ऋषियों ने घर में तुलसी लगाने के लिए निर्देश दिए हैं।
हर रोज तुलसी के पांच काम का निरंतर सेवन करते हैं तो स्वत: अलग-अलग संबंध से बचाव होता है। जैसे खाँसी, जुकाम, ज्वर, पेट दर्द, सिरदर्द, गले एवं नाक का दर्द, वमन, दस्त, चर्मरोग, मुहाँसे आदि रोग इसके सेवन से ही दूर हो जाते हैं।
तुलसी के 3-4 फुट ऊंचे, घने, छतरीदार, सुन्दर एवं कोमल होते हैं। पत्तियाँ बहुत अधिक भिन्न होती हैं, जो लगभग एक इंच लम्बी होती हैं, इसमें 4-5 दीर्घ मंजरियाँ होती हैं। यह कठोर घरेलू वनस्पति है। यह हर प्रकार की भूमि में उगती है काली, ग्राह्य एवं ग्राह्य होने के कारण अधिक उपयुक्त होती है। इसकी डालियां के बराबर मोटी होती है। इसके उपयोगी अंग पत्ते, बीज एवं वृक्ष हैं।
इसे संस्कृत, हिन्दी, बंगाली, मराठी, भिन्न, तैलिंगी सभी में तुलसी कहते हैं। कर्नाटक में एरेड तुलसी, अंग्रेजी में व्हाईट बेसिल एवं परफ्रलूस्टैक्ड बेसिल, लैटिन मे ओसीम, आल्वं, ओरिस सेक्शनं, फारसी में तहहान, में उलसी बदरूत कहते हैं। यह सबसे सुरक्षित होने के कारण इसे सुरसा भी कहा जाता है। चूंकि यह आसानी से हर जगह उपलब्ध होती है। इसलिए इसे सुलभा भी कहा जाता है। गुणधर्म-तुलसी के बीज स्निग्ध एवं शीतल होते हैं।
यह कृमिनाशक, कफ, वातशामक, दीपन, पाचन, हृदय हितकर, विषहर, स्मृतिवर्द्धक होते हैं। इसके गुण आयुर्वेद ग्रन्थों में निम्न प्रकार हैं- हृदय के लिए हितकारी, गरम, दाहकारक, पित्त जनक, दीपन, कष्ठ, मूत्रकृच्छ, रक्तविकार सफेद और काली तुलसी के गुण समान हैं। यह सभी प्रकार के दावों में भ्रम है।
-तुलसी का रस अत्यंत हितकारी है। तुलसी की 2-4 पत्तियों को काली मिर्च के साथ पीसकर पिलाने या ओपनर सेवन से मलेरिया रोग से बचाव होता है। तुलसी का क्रेज का रस, नींबू का रस एवं नीम का क्रेज का स्वरस तीनों को समान भाग में निर्णय से ज्वर में लाभ मिलता है।
वमन (उल्टी)- तुलसी की क्रेक को इलयची के साथ परिवार से जुड़ी हुई है।
मन्दाग्नि- भोजन के प्रति अरूचि हो और खाये हुए भोजन का ठीक पाचन नहीं होता है तो भोजन करने से पहले एक चम्मच तुलसी का रस, एक चम्मच अदरक का रस, आधा चम्मच नींबू का रस और आधा चम्मच शहद मिलाकर चाटने से लाभ होता है।
अजीर्ण- तुलसी अजीर्ण में भी कमजोर है। एक तोला तुलसी की कब्र में 2 ग्राम काला नमक साथ गर्म पानी में पीने से अजीर्ण में फायदा होता है।
अम्लपित्त- तुलसी की मंजरी, नीम का छाला, पीपर और काली मिर्च को सभी भाग लेकर कूट पीसकर चूर्ण बनाकर प्रातः काल अतिरिक्त जल से पांच ग्राम की मात्र में सेवन करने से एसिडपित्त में लाभ होता है।
दस्त- तुलसी दस्त बन्द करने में भी प्रभावी है। तुलसी की सूझबूझ का चूर्ण 2 ग्राम एवं 4 ग्राम ईसबगोल मिलाकर प्रतिदिन सेवन करने से दस्त बन्द हो जाते हैं।
पेचिश- काला नमक समभाग एवं तुलसी के सूखे सनकी के चूर्ण में जीरा दही या मट्ठे में मिलाकर खाने से पेचिश में उपयोगी है।
उदर स्कूल- पेट में दर्द होने पर तुलसी की ताजी अजीब का एक तोला रस पीने से फायदा होता है।
वायु विकार- तुलसी का रस, घी और काली मिर्च समभाग लेकर चूर्ण बनाकर प्रतिदिन इसकी 10-10 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से सभी प्रकार का वायु विकार नष्ट हो जाता है।
बवासीर-तुलसी के बीजों का चूर्ण एक तोला प्रातः सायं पानी के साथ एक माह निरन्तर लेने से बवासीर में लाभ होता है।
रोग नेत्र- काली तुलसी की अजीब के रस की 2-2 बूंद होती 15 दिन तक आंखों में डालने से आंख की बीमारी रतौंधी दूर होती है।
कान के रोग- तुलसी कर्ण कथन में भी प्रभावशाली है। तुलसी के पत्ते के रस में कानों को डालने से दांतों का दर्द ठीक हो जाता है।
नाक के रोग- नाक में फुंसी होने पर तुलसी के पैर को सुखाकर कूट-पीसकर चूर्ण बनाकर सूंघाने से लाभ होता है।
दाग में-तुलसी के पंचांग के चूर्ण का क्वाथ रहने से दांतों के गुण से बचाव होता है। दांतों को दूर करने में भी यह प्रभावी है। यह करने से दांतों के कीड़े भी मर जाते हैं।
मुँह के छाले- तुलसी व चमेली की पत्तियाँ वचन से मुंह के छालों में लाभ होता है।
सिर के रोग- जैसे बेहोशी होने पर नाक में तुलसी का अस्पष्ट होने से बेहोशी दूर हो जाती है।
हृदय शक्तिवर्धनक- तुलसी की वर्क का चूर्ण 2 ग्राम एवं अर्जुन वृक्ष की छाल का चूर्ण 4 ग्राम शहद के साथ निर्णय से हृदय रोग में लाभ होता है।
हंकृति- एक छोटा चम्मच तुलसी का रस में आधा चम्मच शहद मिलाकर प्रातः सायं हाइक्रिट मिटती है।
इस प्रकार तुलसी औषधीय गुणों से भरपूर है। इससे कई संक्रामक निष्कर्ष से डेटा रक्षा होती है।
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