शंख का उत्पति स्थान समुद्र है। साथ ही तांत्रिक और वैज्ञानिक प्रभाव के फल स्वरूप पवित्र और प्रभावशाली है कि यह प्रतिमा की समानता है। साथ ही मनोवांछित कार्य सिद्धि में सफलता प्रदान करता है। जहां शंख ध्वनि का नाद होता है वहां सभी अनिष्टों का नाश होता है। किसी भी पूजन कार्य व यज्ञादि गिराए जाने से पूर्व में शंख ध्वनि वातावरण को शुभ, चेतन्य व मंगलमय निर्मित करती है।
स्वयं महालक्ष्मी के मुखारविन्द से उच्चारित हुआ है-
मैं कमल, कमल, शंख के बीच में रहता हूं और हे ब्रह्मांड के भगवान, मैं चंद्रमा में रहता हूं।
शंख प्रमुख रूप से दो तरह के होते हैं। वामवर्ती- दक्षिणावर्ती।
वामवर्ती शंख के विग्रह का कुजव बंयी ओर होता है तथा ये बंयी ओर से खुले होते हैं और शुद्ध मुख आत्मीय भाव से शंख ध्वनि की जाती है। इसका ध्वनिक रोगोतक कीटाणु न्यून होने लगता है। यें शंख में उत्पन्न होने से आसानी से मिल जाता है। शंखों के बारे में शास्त्रों में फैलाता है कि शंख नाद से भूत-प्रेत, पिशाच और सभी प्रकार की नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है। पूजा स्थान में शंख में पवित्र जल भर कर रखने से शुद्ध देवमय वातावरण बनता है।
दक्षिणमुखी शंख विशेष रूप से मिलते-जुलते मिलते-जुलते संबंधों की वजह से दक्षिणावर्ती शंख कहलाते हैं, इस शंख को देवस्वरूप माना जाता है। दक्षिणवर्ती शंख से अभिषेक करने से हठधर्मिता होती है और गृहस्थ लक्ष्मी प्राप्ति के साथ-साथ संपत्ति भी बढ़ती है। इस शंख की उपस्थिति ही कई विषादों का नाश करती है।
मंत्र सिद्ध प्राण प्रतिष्ठा युक्त दक्षिणावर्ती शंख में रात में जलभरकर रखने से और सुबह उठकर खाली खाली पेट ऐसे ही शुद्ध पवित्र शंख को किसी भी शुभ मुहूर्त जैसे गुरू और रवि पुष्यामृतयोग के शुभ मुहू पर्त या दीपावली, अक्ष तृतीया, विजय दशमी, बसंत पंचमी, धन त्रयोदशी आदि शुभ मुहूर्त में पूजा करने के बाद शंख से घर में जलभर कर छिड़कने से दुख, दरिद्रता, दुर्भाग्य दूर होते हैं और भाग्य चमक है, व सुख-समृद्धि में वृद्धि है।
प्रत्येक शंख का गुण अलग-अलग माना जाता है। कोई शंख विजय लाभ है, तो कोई धन और समृद्धि। नों यश और कीर्ति। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार शंख चंद्रमा और सूर्य के समान ही देवस्वरूप है। इसके मध्य में वरूण, पृष्ठ भाग में ब्रह्मा और अग्र भाग में गंगा और सरस्वती का निवास है।
शंख नाद से संक्रामक तत्वों के विषाणु नष्ट हो जाते हैं और वायु शुद्ध मानव शरीर को स्वस्थ बना देती है। शंख उल्लेखनीय से शंख का जल पीने से, शंख की भस्म खाने से लाभ होता है। आयुर्वेद में शंख भस्म का उपयोग कई उच्च कोटि की औषधि बनाने के लिए किया जाता है। छोटे-दादा शंखों की माला धारण से उच्चता की शक्ति प्राप्त होती है और शरीर निरोग रहता है।
विज्ञान के अनुसार शंख समुद्र में पाए जाने वाले का एक प्रकार का घोंघे खोला जाता है जिसे वह अपनी सुरक्षा के लिए बनाता है। दुनिया का सबसे बड़ा शंख केरल राज्य के गुरूपुर के श्री कृष्ण मंदिर में स्थित है, जिसकी लंबाई लगभग आधा मीटर है और वजन दो किलोग्राम है।
हिन्दु धर्म में विशेष रूप से आसाम, बंगाल, बिहार, उड़ीसा प्रदेशों में शुभ अवसर पर इसकी चूड़ी धारण कर मंगल उत्सव मनाया जाता है। आयुर्वेद में शंख भस्म से पेट की बीमारिया व पथरी बयान से लाभ प्राप्त होता है।
भगवान कृष्ण के पास पाञ्चजन्य शंख था जिसकी ध्वनि कई किलोमीटर तक पहुंचती थी। यजुर्वेद के अनुसार युद्ध में शत्रुओं का हृदय दहलाने के लिए शंख फंकने वाला व्यक्ति अपराजित होता है। गोरक्षा संहिता, विश्वामित्र संहिता, पुलस्त्य संहिता आदि ग्रंथों में शंख को आयुर्वद्धक और समृद्धि दायक कहा गया है।
स्वस्थ काया के साथ माया शंख देती हैं। दैवीय शक्ति के साथ-साथ मायावी भी होती है। शंख से ऋंद्धदोष ही दूर नहीं होती इससे आरोग्य, वृद्धि, आयुष्य प्राप्ति, धन लक्ष्मी, पुत्र प्राप्ति के साथ-साथ पितृ-दोष शांति, विवाह आदि की रूकावट भी दूर है। उक्त सुस्थितियों की प्राप्ति के लिए मंत्र सिद्ध प्राण प्रतिष्ठा युक्त चैतन्य शंख को संसाधन सामग्री कार्यालय से प्राप्त कर पूजा में उपयोग करने से उक्त तरह की श्रैष्ठ प्राप्तकर्ताओं की धारणा हो जाती है।
प्राप्त करना अनिवार्य है गुरु दीक्षा किसी भी साधना को करने या किसी अन्य दीक्षा लेने से पहले पूज्य गुरुदेव से। कृपया संपर्क करें कैलाश सिद्धाश्रम, जोधपुर पूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन से संपन्न कर सकते हैं - ईमेल , Whatsapp, फ़ोन or सन्देश भेजे अभिषेक-ऊर्जावान और मंत्र-पवित्र साधना सामग्री और आगे मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए,