केतु का रत्न है, इसे सूत्र मणि भी कहा जाता है। इसे धारण करने से शारीरिक दुर्बलता समाप्त हो जाती है और वीर्य, ओज, तेज में वृद्धि होती है। यह रत्न दमा या संबंधित संबंधित रोगों में जीवित रहता है। लहसुनिया आध्यात्मिक गुणों में विकास करता है और केतु के सभी प्रकार के अनुमान से निवृत्त होता है।
गार्सिया जीवन में बेहतरीन प्रभाव डालने में समर्थ होता है। इसे धारण करने से संत सुख वृद्धि, जीव, स्थिर लक्ष्मी एवं आनंद, सुख-शांति में वृद्धि होती है। भूत-प्रेत का भय इसे धारण करने से समाप्त हो जाता है। यह प्रबल शत्रु संहारक रत्न है, जिसे धारण करने से किसी भी प्रकार के शत्रु निस्तेज व परास्त होते ही हैं।
जब कुण्डली में केतु ग्रह क्षतिग्रस्त, दुर्बल या अस्त हो, उसे लहसुनिया धारण करना चाहिए। यदि केतु ग्रह की महादशा या अर्न्तदशा चल रही हो तो लहसुनिया धारण करना चाहिए। केतु से संबंधित दोष से मुक्त होने के कारण भी इस रत्न को धारण किया जाता है। शुभ या सौम्य योजनाओं के साथ यदि केतु दर्द हो तो लहसुनिया धारण करें।
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