बन्धन शब्द का प्रमाण पत्र जो बंधा हुआ हो, जबकि इसके विपरीत यदि मानव बन्धन अनुपयोगी हो जाएं, साथ ही जो स्वतन्त्र विचार से सिद्धि हो व जो अपने जीवन में कुछ करने की शक्ति और हौसला रखता हो, जिसमें जोश हो, तुफान से टक्कर लेने व आकाश को मारने की क्षमता हो।
मोह, माया, आलस, काम क्रोध यह जीवन का बंधन ही तो है, दिन के कारण हम अपने जीवन को कुछ कर नहीं पाते, मनुष्य जीवन में वह आनंद प्राप्त नहीं कर सकता, जो कि हमारे जीवन का आधार होता है, जीवन की वह मस्ती नहीं कर सकते, जिसका कोई दायित्व नहीं है। घुटा हुआ, दबा हुआ साबेस ये जो बन्धन होते हैं, न तो ठीक अर्थों में मनुष्य ही बनता है, और न ही साधक और न शिष्य। क्योंकि हमने अपने आप को बन्धनों में इतना जकड़ लिया है, कि हम उनसे प्रस्थान करें तो भी नहीं निकल सकते हैं क्योंकि, भीतर में अनेक विकार विकसित हैं, कैसे अभियान है वहां से वह मार्ग ही नहीं पता हमको तो हम कैसे निकले वहां से इसलिए जीवन में हमें गुरु की आवश्यकता होती है, जो हमें उस तरीके के बारे में बताते हैं। सन्मार्ग की आकांक्षा हम चाहे कितना भी ग्रंथ, महाकाव्य पाठ लें पर हम इसमें शामिल हैं जो सा मार्ग सही है और गलत हैं, इसकी विवेचन करने की ऊर्जा नहीं है और यदि विवेचन कर भी मानते हैं तो आपको यथास्थिति से परिवर्तन करने का ज्ञान ही नहीं है।
इसलिए उसने सोचा कि इससे अच्छा मौका कहां मिलेगा कि समुद्र में नाव लेकर गिरने से ही जीवन में पूर्ण और कर्मबंधनों से मुक्ति मिल जाएगी। लेकिन उसे यह नहीं पता था कि समुद्र में कई बाधाओं से उसका सामना वास्तव में उसे ज्ञान नहीं होगा। कुछ दूर तक ही अचानक से एक अति लहरी और उसकी नाव के साथ उसे सुनने के लिए और उसका जीवन समाप्त हो गया क्योंकि उसने संत रविदास की पूरी बात ही नहीं सुनी थी संत रविदास ने कहा कि बिना गुरु के आप समुद्र रूपी जीवन को पार नहीं कर पाएंगे क्योंकि जीवन में कई दिखाई देते हैं। बीमारी के रूप में, धन की कमी के रूप में तंत्र बाधा, पिशाच बाधा ये सब जीवन की बाधा ही तो है। इसी तरह हम भी कभी-कभी आप को बहुत ज्ञानी समझ लेते हैं, और जाने अनजाने ही अपना नाव समुद्र में डाल देते हैं। इस नाव को चलाने का ज्ञान नहीं है। समुद्र की लहरें विकराल और निरन्तर बाधा के रूप में उभरती हुई असाधारण लहरें, नाव को एक ही थपेंडे में उलट देने में सक्षम हैं।
आपके गृहस्थ रूपी समुद्र में खारे पानी के अलावा कुछ नहीं है, इस जीवन के रूप में समुद्र में परेशानियां, बाधायें, धन हानि, शत्रु बाधा आदि विकराल जलचर बोआ पडे है, सत्य एक ही प्रयास है, कि कब मौका मिला और जब आपकी नाव को उलटा परन्तु फिर भी आप पर तैरता हुआ हिचकोलें आगे बढ़ता हुआ बढ़ रहा है और यह पूरे समुद्र के लिए आश्चर्य की बात है। क्योंकि वही जीवन से संघर्ष करते-करते, उसी समुद्र के खारे पानी में तूफान से टकराते हैं तुम्हारे पिता, दादा और तुम पीढि़यों की जल समाधि हो गई वे अपने जीवन में नाव तो अच्छी लेकर आए थे, उन लोगों को जीने का ज्ञान ही नहीं था क्योंकि उनके जीवन में कोई गुरु ही नहीं मिला जो उन्हें समझाए, ज्ञान दे सके। उनकी ताकतवर तूफान से टक्कर खाते-लेते खत्म हो गई, वे समुद्र में ही नाव के साथ डूब गए क्योंकि उनके पास हौसला नहीं था। बन्धनों को मारने की हार नहीं थी।
इसीलिए वे जीवन में पूर्णता को प्राप्त नहीं कर सकते हैं, इसलिए मैंने बन्धु शब्द से सम्बद्ध किया है, क्योंकि बंधन में रह कर तुम अपने जीवन में पूर्ण और वह आनंद, मस्ती प्राप्त नहीं कर पाते जो व्यक्ति जीवन का कोष हैं, जिसे जीवन में अखण्डानन्द कहा है, इसलिए जीवन में गुरु का होना बहुत जरूरी है। गुरु जीवन के कर्म बन्धनों से सर्वथा मुक्त है, वह समुद्र के उस पार जाकर चुका है, उन्हें पता है, कि कैसे उस पार भेजा जा सकता है, कैसे समुद्र में आने वाले कई बाधाओं को पार कर सकते हैं।
और इन सभी घटनाओं का यह समुद्र साक्षी भूत रहा है, यही नहीं अपितु आपके आस-पास जितना भी नावें हैं, जो बिना गुरू के समुद्र में चल रहा है। वे भी चौपट हो गए हैं तो आगे बढ़ रहे हैं, एक कदम आगे बढ़ता जा रहा है, तो पांच-दस कदम तूफान के झटके से पीछे हटना पड़ता है। और देखा होगा कि तुम्हारे भाई, सगेन संबंधों के नावें भी डगमगाने लगे हैं। उनकी आंखें उदास और मौत का आभास होने लगती हैं, उन्हें डर लगता है कि कभी भी कोई लहर उनकी ओर उठेगी और उनका नाव अपने साथ बहा के ले जाएगा, उनके जवानों की ताकतें कमजोर हो जाती हैं, किसी भी क्षण समुद्र में नाव को नीचा दिखाया जाएगा।
फिर वे कितना भी चीख-चिल्लाएं, कितना ही हल्ला करें, कोई उनकी नाव व उनका बचाव करने वाले नहीं हैं, क्योंकि वे अपने जीवन में कभी-कभी गुरु रूपी सद्ज्ञान की खोज ही नहीं करते हैं, इसलिए वे सभी कितने भी चिल्लाते हैं कोई लाभ नहीं होता क्योंकि अपनी-अपनी नाव में लगे हुए हैं, सभी की आंखों में भय-डर भर गया है, और मुंह में खारा पानी जाने की वजह से उनके जीवन का स्वाद कसैला हो गया। वे लोग वास्तविक आर्श्चयजनक दृष्टि से बने रहते हैं, वे उनकी नाव को देखते हुए डूबे रहते हैं, और वे भयभीत हो जाते हैं। है, और आपके चेहरे पर मुस्कान दिख रही है, क्योंकि आपके जीवन में जीवित जाग्रत गुरु है, जो आपके साथ हमेशा सतर्क हाथ पकड़ें हुए हैं, जो आपके जीवन को मनुष्य डूबने नहीं देता, मैं सीधे ज्ञान से इस अहंकारी से ग्रस्त रहता हूं है, कभी उसने अपने जीवन रूपी बन्धनों से निकल कर गुरु की खोज ही नहीं की, कभी गुरु घर के पास से या उनके सामने से निकले भी तो उनकी आँखें उन्हें पहचान ही नहीं पाई क्योंकि उन्होंने अपनी आँखों पर माया, मोह की इतनी गहरी पट्टी बांध रखी है, कि वह चाह के भी उस ज्ञान रूपी प्रकाश पुंज को नहीं देख पाश जैसे एक चमगादड़ अपनी आंखों को अपने झरोखों से पढ़कर उलटा लटका रहता है, उसी प्रकार अपने अनर्गल कर्मों की वजह से निरन्तर उल्टे-पुलते कार्य करता है।
क्योंकि वे अपनी नाव का चप्पू भूल गए हैं, और तुम्हारी ओर ताक रहे हैं, वे सोच रहे हैं, कि हम तो डूबेंगे ही, पर परमात्मा डुबायें क्योंकि वे स्वयं कैसे तो भटक रहे हैं ही और तुम भी भटकने की क्रिया ही कर रहे हो हैं, अपने शब्दों के माध्यम से, अपनी बातों से जैसे ही उन्हें यह पता चला के आपके पास ज्ञान रूपी सद्गुरु है जो हर पल, हर समय अपकी रक्षा करने को तैयार है। वह कहेगा कि तुम गुरू के पास मत जाओं क्योंकि यह सब बेकार है, ईश्वर भी मृत्यु की ओर खचने की कोशिश करेगा कि वे तुम्हारे साथ नाव भी डुबाना चाहते हैं, इस संसार में अधिकतर लोग यही सोचते हैं जब हम अस्वस्थ हैं तो सामने वाला खुश कैसे है, इसलिए वे आपके जीवन में अवरोध-बाधायें, परेशानियां, व्यथायें आदि कई स्वरूपों में मैली छाप के रूप में बाधा उत्पन्न करेंगे।
यदि आपके पास गुरू हैं, तो वे हर स्थिति में ब्लूहैंड पकड़े गए हैं, क्योंकि तुम गुरू के आत्मीय हो। गुरु गुरु के साथ आत्मा-प्राणों का संबंध है, इसलिए गुरु निरन्तर आगे बढ़ रहा है, और तुम आगे बढ़ रहे हो, मस्ती के साथ जीवन के संगीत गुनगुनाते हुए, अपनी धड़कन को आवाज देते हुए, जिस बेप्रिफकी से तुम आगे बढ़ रहे हो है, यह उनके लिए आश्चर्य की बात है, और प्रकट होना भी है, पर तुम कभी-कभी भय से ग्रस्त हो जाते हो, इसकी चिंता होने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि गुरु तुम्हारे साथ है, दृश्य के रूप में भी अदृश्य रूप में जो भी रास्ते और परिस्थितियों के बीच गुरू मानते हैं, और घनघोर अंधेरे में आपके लिए दीप-स्तंभ की तरह हैं, जिससे कि आप उसी जीवन में लक्ष्य तक पहुंचें, जो आप देखते हैं, रिश्ता नहीं कर पाते हैं वह उन्हें दिखा रहे हैं , जो तुम पीढ़ियां किनारे पर नहीं पहुंचे वे पाई वे उस हरित आनंद को नहीं पाए जो जीवन का कोष है, जो जीवन की श्रेष्ठता है, पर तुम कर सकते हो मस्ती के आनंद के साथ हिम्मत और हौसले के साथ जीवन रूपी नाव को लक्ष्य तक पहुंचा सकते हैं साथ ही पूर्ण आनन्द संदर्भ में जीवन की निर्मिति कर सकते हैं क्योंकि आपके पास मौका है , आपके पास जाग्रत गुरू है, जिनके बताए तरीके पर चल रहे कर नव निर्मित क्रियायें निर्मित कर सकते हैं। सद्गुरु की शक्ति तुम्हारी साथ है, जो तुम लोगों की शक्ति है।
आपके पास हौसला और अधिकार हैं, इसलिए चक्र पर रुकना ठीक नहीं इसी जीवन में पूर्ण प्राप्त करने वाले हैं, तुफानों के पेंशनर चढ़ना ठीक नहीं बन्धु इस ठांव पर नाव बांधना ठीक नहीं इस जीवन के रूप में समुद्र पर देवता बेशक अधिकार होना है।
प्राप्त करना अनिवार्य है गुरु दीक्षा किसी भी साधना को करने या किसी अन्य दीक्षा लेने से पहले पूज्य गुरुदेव से। कृपया संपर्क करें कैलाश सिद्धाश्रम, जोधपुर पूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन से संपन्न कर सकते हैं - ईमेल , Whatsapp, फ़ोन or सन्देश भेजे अभिषेक-ऊर्जावान और मंत्र-पवित्र साधना सामग्री और आगे मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए,