इलपुरे रम्यविशालकेऽस्मिन् समुल्लसन्तं च जगद्वरेण्यम्।
मैं अपने स्वभाव के परम उदार, घृष्णियों के स्वामी, आर्य, प्रपघे के आश्रयदाता को नमस्कार करता हूँ।
जो इलापुर के सुरम्य मंदिर में विराजमान हैं सभी जगत के आराध्य हो रहे हैं, यथार्थ स्वभाव बड़ा ही उदार है, हम उन घृष्णेश्वर नामक ज्योतिर्मय भगवान शिव की शरण में जाते हैं।
भगवान शिव का बारहवाँ ज्योतिर्लिगं घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिगं है, इन्हें घृष्णेश्वर और प्रवेशेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। यह ज्योतिर्लिगं अजन्ता एवं एलोर की पत्तियां के देवगिरी के निकट तड़ाप में अवस्थित है। शिवमहापुराण में घृष्मेश्वर ज्योतिर्लिगं का वर्णन है। ज्योतिर्लिगं घुश्मेरा के निकट ही एक सरोवर भी है, जिसे शिवालय के नाम से जाना जाता है। शिवालय का जल भी अत्यंत पवित्र और चमत्कारिक कहा जाता है, मान्यता है कि जो भी इस सरोवर का दर्शन करता है, उसकी सभी इच्छायें शीघ्र ही पूर्ण हो जाती हैं।
घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिगं महाराष्ट्र के दौलताबाद से लगभग 18 किलोमीटर दूर बेरूलठ गांव के पास स्थित हैं। सोलहवीं शताब्दी में इस मंदिर का छत्रपति शिवाजी के दादाजी मालोजी राजे भोंसले ने पुननिर्माण किया था। बाद में महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार विवरण दिया। इस ज्योतिर्लिगं के संबंध में शिवपुराण में यह कथा प्राप्त होती है।
प्राचीन काल में इस स्थान पर सदमा नामक ब्राह्मण और सुदेहा उनकी पत्नी रहती थीं। दोनों ही परम शिवभक्त और धर्मनिष्ठा थे। विवाह के कई वर्षों के आंकड़े जाने पर भी उनकी कोई अनबन नहीं हुई, जिससे पति-पत्नी हमेशा दुखी रहते थे।
सुदेह की एक छोटी बहन घुश्मा थी जो हमेशा शिवभक्ति में तल्लीन रहती थी और प्रतिदिन 108 शिवलिंगों की पूजा करती थी। सुदेहा ने ज्योतिषियों आदि से गणना कर अपने पति का विवाह घुश्मा से करवा दिया। विवाह बंधन भी घुश्मा की शिव पूजा यथावत् चलती रही और प्रतिदिन 108 पार्थिव लिंगों का पूजन करके वह उन सभी को निकट के सरोवर में विसर्जित कर देती थी। शीघ्र ही घुश्मा को पुत्र लाभ हुआ। जैसे-जैसे बेटे बड़े होते गए, वैसे ही वैसे सुदेह के मन में बहन के प्रति द्वेष बढ़ गए।
एक दिन रात में उसने सोते हुए घुश्मा के बेटे की हत्या कर दी और शव उसी सरोवर में डाल दिया, जहां घुश्मा, पार्थिव लिगं विसर्जन करती थी।
पुत्र वध की जानकारी होने पर भी निर्विकार भाव से घुश्मा अगले दिन प्रातः पूजन कर समाप्त करके शिवलिंगों को विसर्जित करने सरोवर पर गई। विसर्जन करके वह वापस लौटा तो उसका पुत्र भी सरोवर से जीवित निकल आया। तभी भगवान शंकर भी दिखाई देते हैं और घुश्मा से वर मांगने को कहा। घुश्मा ने अपनी बहन सुदेह के द्वेष नाश और सद्भावना की प्रार्थना की और कहा कि संसार की रक्षा और कल्याण के लिए भगवान शिव हमेशा निवास करें। तब से भगवान शिव ज्योतिर्लिगं के रूप में विशिष्ट प्रतिष्ठित और घुश्मेश्वर महादेव नाम से विख्यात समझते हैं।
इस प्रकार भगवान शिव के सभी बारह ज्योतिर्लिंगों का वर्णन संपन्न होता है। जगद्गुरु आदि शंकराचार्य भगवान शिव की ज्योतिर्लिंग की महिमा का वर्णन करते हुए बताया है कि-
यह बारह ज्योतिर्मय शिव आत्माओं के क्रम में कहा गया है।
स्तोत्रं पठित्वा मनुजाऽतिभक्तया फलं तदालोक्य निजं भजेच्च।।
अर्थात किसी भी व्यक्ति का विवरण बारह ज्योतिर्लिगों के स्तोत्र का भक्तिपूर्वक पाठ करें तो किसी दर्शन से होने वाले फल को प्राप्त कर सकते हैं। भगवान शिव के ये बारह अर्लिंग स्वयंभू हैं।
अर्थात-स्वतः ही प्रगट जाग्रत हैं। कई सदियों से उनकी पूजा-आराण होती चली आ रही है, और अस्पष्टता को भगवान शिव के आर्शीवाद व चमत्कारों से अवगत करा रहा है। समय क्रम में या अन्य कई कारणों से मन्दिरों के झाग हो जाने पर भी भक्तों की आस्था से पूनः अन्य लिंगों पर पुननिर्माण हो जाता है। वैसे तो पृथ्वी पर शिवलिंग की संख्या स्थापित होती है, लेकिन इन बारह शिवलिंगों को ज्योतिर्लिंग का विशेष स्तर प्राप्त होता है क्योंकि इन्हें भगवान शिव के प्रसिद्ध तीर्थस्थलों के रूप में सर्वश्रेष्ठ महत्व दिया जाता है।
श्रावण पूर्णिमा शिव पूर्णी पर्व पर शिवलिगं पर अभिषेक करते हुए परिवार के सभी सदस्यों को सद्गुरूदेव द्वारा उपहार स्वरूप फोटो द्वारा दीक्षा प्रदान कर सुहाग रक्षा ललिताम्बा संत लक्ष्मी वृद्धि लॉकेट धारण करने से द्वादशर्लिगं माया से संबंधित होगें। इस लॉकेट के प्रभाव से परिवार में आयु वृद्धि, स्वर सुख, धन लक्ष्मी, वशं वृद्धि युक्त जीवन प्रेम, रस, प्रणय, आनन्द, इच्छा, कामना की पूर्ण से सरोबार हो सकेंगे। लॉकेट लाईश कैलाश सिद्धाश्रम जोधपुर में श्रावण पूर्णिमा से पूर्व संपर्क करने पर आपके नाम व गौत्र से चैतन्य कर फिनाम्बा लॉकेट बनाया जा सका।
धन श्रीमाली
प्राप्त करना अनिवार्य है गुरु दीक्षा किसी भी साधना को करने या किसी अन्य दीक्षा लेने से पहले पूज्य गुरुदेव से। कृपया संपर्क करें कैलाश सिद्धाश्रम, जोधपुर पूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन से संपन्न कर सकते हैं - ईमेल , Whatsapp, फ़ोन or सन्देश भेजे अभिषेक-ऊर्जावान और मंत्र-पवित्र साधना सामग्री और आगे मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए,