कहा जाता है कि महाभारत युद्ध के बाद पाडंवों ने भी रामेश्वरम् में पूर्वजों के आत्माओं की शान्ति के लिए पिण्ड दान किया और दिव्य ज्योतिर्लिंग का अभिषेक कर महादेव से पाप-दोष मुक्ति के साथ सुखद सफल जीवन के लिए प्रार्थना की।
प्रत्येक शिष्य के दुःखों का कारण पूर्व जन्म के पाप-ताप, दोष, शाप, पितरों की अंशाति ही मुख्य है। जिसके कारण अत्यधिक परिश्रम के बावजूद भी सफलता नहीं मिलती। परिवार में कोई ना कोई हर समय बीमार रहता है। लाख प्रयास के बाद भी व्यापार में सफलता नही मिलती। समय से विवाह का ना होना। योग्य शिक्षा के बाद भी रोजगार में असफलता की प्राप्ति। इन सबके शमन के बिना श्रेष्ठ और सफल जीवन की कल्पना करना व्यर्थ है।
मान्यता है कि यदि कोई व्यक्ति रामेश्वरम् के घाट पर बैठ कर अपने शरीर पर वहां की रेत लगाता है तो जितने भी रेत के कण उसके शरीर पर लगते हैं उसके जीवन के उतने ही पाप दोष और पूर्व जन्म के पितृ दोषों का शमन होता है। यह भी माना जाता है कि वहां के तट पर बहने वाली हवा यदि किसी भी इन्सान के शरीर को छू कर गुजरती है तो उसे पूर्ण सुख और सौभाग्य के साथ-साथ आरोग्यमय जीवन की प्राप्ति होती है। परिवार का कोई भी प्रमुख सदस्य वहां 24 कुण्डों में स्नान के साथ विधि-विधान पूर्वक पूजन करता है तो जीवन की मलिन पूर्ण स्थितियों से निवृत्ति प्राप्त होती है।
यह भी माना गया है कि संसार में कहीं पर भी यदि कोई पाप कर्म हो जाए तो पवित्र स्थान पर स्थापित मंदिरों में जा कर उस पाप को मिटाया जा सकता है। यदि मंदिर में कोई पाप हो जाये तो उसे पवित्र तीर्थों की नदियों में डुबकी लगा कर मिटाया जा सकता है। यदि कोई पाप कर्म किसी तीर्थ पर हो जाए तो उसे यज्ञ के द्वारा मिटाया जा सकता है और यदि यज्ञ में कोई पाप कर्म हो जाये तो उसे रामेश्वरम् में ही मिटाया जा सकता है। यदि कोई पाप कर्म रामेश्वरम् में ही हो जाये तो उसे मिटाने के लिए अपने इष्ट या गुरु के निर्देशन में ऐसे पवित्र भूमि पर हवन, पूजन करने से सभी पापों से मुक्ति प्राप्त होती है।
श्रीरामेश्वरजी का एक बहुत सुन्दर स्फटिक ज्योतिर्लिंग है। इसके दर्शन प्रातःकाल 4 बजे से 5 बजे तक ही होते हैं। साधक प्रातः बेला में समुद्र में स्नान कर इसका दर्शन करते हैं तब यह स्फटिक शिवलिंग अत्यन्त स्वच्छ तथा पारदर्शी दिखाई देता है। इस मूर्ति पर दुग्धधारा चढ़ाते समय मूर्ति के स्पष्ट सुन्दर दर्शन होते हैं। पूजन के पश्चात् मूर्ति पर चढ़ा दुग्धादि पंचामृत प्रसाद स्वरूप में श्रद्धालुओं द्वारा ग्रहण करने से जीवन में सुस्थितियां निर्मित होती हैं। श्रीरामेश्वरम् मन्दिर के पूर्व समुद्र की ओर जाने पर समुद्र-तट पर महाकाली-मन्दिर स्थित है। समुद्र में ही अग्नितीर्थ माना जाता है। कहा जाता है कि श्रीजानकी जी की अग्नि परीक्षा यहीं हुई थी।
मन्दिर के अन्दर 22 पवित्र नदियों के जल कुण्ड स्वरूप तीर्थ हैं और समुद्र का अग्नितीर्थ तथा उसके पास अगस्त्य-तीर्थ ये मिला कर 24 तीर्थ है। इसमें से अग्नि-तीर्थ सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। सर्वप्रथम श्रद्धालु प्रथम दिन समुद्र-स्नान ही करते है। इन तीर्थों में माधव-तीर्थ और शिव-तीर्थ सरोवर है।, महालक्ष्मी-तीर्थ और अगस्त्यतीर्थ बावलियां है। सभी 24 तीर्थ कूप है जो कि- माधव तीर्थ, गवय तीर्थ, गवाक्ष तीर्थ, नल तीर्थ, नील तीर्थ, गन्धमादन तीर्थ, ब्रह्महत्याविमोचन तीर्थ, गंगा तीर्थ, यमुना तीर्थ, गया तीर्थ, सूर्य तीर्थ, चन्द्र तीर्थ, शंख तीर्थ, चक्र तीर्थ, अमृतवापी तीर्थ, शिव तीर्थ, सरस्वती तीर्थ, सावित्री तीर्थ, गायत्री तीर्थ, महालक्ष्मी तीर्थ, अग्नि तीर्थ, अगस्त्य तीर्थ, सर्व तीर्थ, कोटि तीर्थ। स्कन्दपुराण में इन्ही सभी तीर्थों की उत्पत्ति को विस्तार से बताया गया है। इनके जल से स्नान का अत्यधिक महत्व है।
दक्षिण भारत रामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग की तपोभूमि पर जहां पर स्वयं श्रीराम-लक्ष्मण जानकी और भक्त हनुमान ने शिवलिंग को स्थापित कर प्रतिष्ठित किया था ऐसे दिव्य ज्योतिर्लिंग जो कि द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक है। साधक को अपने जीवन में अवश्य ही ऐसे श्रेष्ठ और तेजमय शिवलिंग के दर्शन अपने सद्गुरुदेव के सानिध्य में अवश्य करने चाहिए जिससे उसके जन्मों के पाप-दोषों का शमन हो सके।
क्या हम एक सफल जीवन जीना भी चाहते हैं या नहीं। यदि आज तक आप अपने जीवन को संघर्ष करते हुए ही बिताते आये हैं और अब आपने जीवन को इसी प्रकार से रो-पीट कर बिताने का मानस त्याग दिया है, तो जीवन में सौभाग्य अवश्य ही आयेगा। जीवन तो वह है जिसमें हमारी सभी इच्छायें पूर्ण हों, हम सूर्य की तरह जाज्वल्यमान बन सकें, हमारी श्रेष्ठता को सभी मानें और हम सभी दृष्टियों से सुखमय जीवन बिता सकें। बड़ी बात यह नहीं है कि हम में से कोई ऐसा होगा जो ऐसे श्रेष्ठ जीवन को जीने का सौभाग्य प्राप्त कर रहा होगा, बड़ी बात यह है कि हममें से कितने ऐसे शिष्य हैं जो ऐसा जीवन जीना चाहते हैं और उसके लिए प्रयत्नशील हैं।
कहते हैं कि जहां चाह, वहां राह। इसलिए सर्वप्रथम यह आवश्यक है कि हम ऐसे जीवन की अभिलाषा करें और फि़र ऐसे जीवन को प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील बनें। यह बात भी धा्रुव सत्य है कि ऐसा जीवन जीने के लिए हमें जीवन में किसी ऐसे श्रेष्ठ व्यक्तित्व की आवश्यकता होती है जिन्हें हमारे शास्त्रों ने, हमारे पुराणों ने गुरु नाम से सम्बोधित किया है। यही वह श्रेष्ठ व्यक्तित्व हैं जो हमें उन ऊंचाइयों तक पहुंचा सकते हैं व मार्गदर्शन प्रदान करते हैं जहां पहुंच कर हमारा जीवन एक सफ़ल जीवन कहा जा सकता है।
गुरु शिष्य को कभी हारने नहीं देते हैं। उनकी शक्ति सदा अपने शिष्यों के साथ रहती है जो उन्हें उनके बुरे समय में सहारा देती है, उनको हतोत्साहित होने से बचाती है। गुरु तो यह आशीर्वाद प्रदान करते हैं कि तुम्हारा जीवन और ज्यादा संघर्षमय बने, पर साथ ही साथ वह यह क्षमता भी प्रदान करते हैं कि हम उन सभी संघर्षों पर सफलता प्राप्त करें। यह सत्य है कि जब तक सोने को आग में डाला न जाये, तब तक सोने को शुद्ध भी नहीं किया जा सकता, पर यह भी सत्य है कि सोने में उस आंच को सहने की क्षमता भी होनी चाहिये और यही क्षमता तो गुरु अपने शिष्यों को प्रदान करते हैं।
अपने जीवन के सभी मनोकामनाओं की पूर्ति और जीवन के सभी पाप-दोषों का शमन करने का उद्देश्य लेकर आपको तो बस घर से निकल पड़ना है व रामेश्वरम् आना ही है। यदि आप यह करने में सफ़ल होते हैं तो वास्तव में ही अपने जीवन का नवनिर्माण करने में सफ़ल होंगे और आप सही अर्थों में सफ़ल जीवन जीने में सक्षम बन पायेंगे।
शिव शक्तियों से युक्त जीवन ऐश्वर्य, धन सुख, समृद्धि, सम्पन्नता के साथ पाप-ताप से मुक्त श्रेष्ठ जीवन निर्माण की क्रिया पूज्य गुरूदेव के दिव्य सानिध्य में नववर्ष पूर्ण लक्ष्मी वृद्धि साधना महोत्सव 26-27 दिसम्बर को रामेश्वरम् में सम्पन्न होगा। पूर्ण चैतन्य दिव्यता युक्त ज्योतिर्लिंग स्वरूप भगवान सदाशिव की नगरी में समुद्र स्नान के बाद सभी चौबीस तीर्थ कुण्ड के जल से साधकों का अभिषेक स्वयं पूज्य गुरूदेव के दिव्य कर कमलों से होगा। साथ ही महामृत्युजंय अभिषेक, दुर्गा सरस्वती के वेदोक्त मंत्रों से नव चण्डी हवन, सर्व काल संहारक हनुमान शक्ति दीक्षा, ज्वाला मालिनी सौभाग्य धनदा लक्ष्मी दीक्षा प्रदान की जायेगी।
जिससे कि दिव्य तीर्थ स्थल पर सद्गुरूदेव के सानिधय में इस तरह की साधनात्मक क्रियायें करने से साधक पूर्णमदः पूर्णमिंद युक्त हो सकेंगे।
संपर्क: जोधपुर कार्यालय: 0291-2517025, 2517028, 07568939648,
सभी बड़े शहर से मदुरई और रामेश्वरम् के लिए रेल की सुविधा है।
प्राप्त करना अनिवार्य है गुरु दीक्षा किसी भी साधना को करने या किसी अन्य दीक्षा लेने से पहले पूज्य गुरुदेव से। कृपया संपर्क करें कैलाश सिद्धाश्रम, जोधपुर पूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन से संपन्न कर सकते हैं - ईमेल , Whatsapp, फ़ोन or सन्देश भेजे अभिषेक-ऊर्जावान और मंत्र-पवित्र साधना सामग्री और आगे मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए,