मानव जीवन निरन्तर पल-प्रतिपल ग्रहों से ही संचालित होता है, और ये समस्त ग्रह आकाश मण्डल में निरन्तर अपनी धुरी पर घूमते हुए निर्दिष्ट समय में पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाते रहते हैं।
प्रत्येक ग्रह की स्वयं की किरणें या रश्मियां होती हैं। पृथ्वी के चारों ओर घूमते समय न्यूनाधिक रूप में इन ग्रहों की रश्मियां पृथ्वी पर पड़ती रहती हैं।
ग्रीष्मकाल में सूर्य ठीक हमारे ऊपर होता है, अतः उसकी किरणे भी सीधी पृथ्वी पर पड़ती हैं। इस सीधी किरणों का पृथ्वी वासियो पर भी प्रभाव पड़ता है। इसके विपरीत सर्दी की ऋतु में जब सूर्य की तेजस्विता न्यून होती है तो उससे उत्पन्न किरणें भी पृथ्वी पर सीधी न पड़कर तिरछी पड़ती है, फलस्वरूप उसकी तीव्रता का आभास भी मनुष्यों को कम ही होता है। इसी प्रकार निर्दिष्ट पथ पर चक्कर लगाते प्रत्येक ग्रह की किरणें पृथ्वी पर पड़ती हैं और जो ग्रह तिरछा या दूर होता है उसकी किरणें भी कम उष्ण और न्यून रूप से प्रभावित कर पाती हैं।
इस प्रकार जब बालक मां के गर्भ से पहले पहले पृथ्वी के वायुमण्डल में प्रवेश करता है तो उस समय वह निर्विकार और अरश्मियुक्त होता है, परन्तु ज्योंही वह जन्म लेकर पृथ्वी के वायुमण्डल के सम्पर्क में आता है, त्योंही उस समय समस्त ग्रहों की रश्मियां का प्रभाव उसके निर्विकार शरीर पर छा जाता है। उस समय जिस ग्रह की रश्मि घनीभूत होती हैं, उस ग्रह का प्रभाव उस बालक पर सर्वाधिक रूप में होता है और जिस ग्रह की रश्मियां विरल या हल्की होती है, उस ग्रह का प्रभाव उस बालक पर कम ही होता है। इस प्रकार पहले-पहले बालक का जिन रश्मियों से आच्छादन होता है, वह उसके साथ उम्र-भर रहता है।
जन्म कुण्डली भी एक प्रकार से तात्कालिक आकाश मण्डल का खाका ही तो है जिससे ज्ञात किया जा सकता है कि बालक के जन्म के समय कौन सा ग्रह किस स्थान पर था, और उनकी रश्मियों का कितना प्रभाव बालक के जन्म-स्थल पर पड़ रहा था।
जिस प्रकार शारीरिक स्वस्थता के लिए यह जरूरी है कि खाद्य, जल, लवण, विटामिन आदि का उचित अनुपात शरीर में हो, इसी प्रकार मानव की श्रेष्ठता एवं सफलता के लिए भी यह जरूरी है कि उसके जीवन पर समस्त ग्रहों का उचित प्रतिनिधित्व हो। एक उत्तम जीवन के लिए आवश्यक है कि उसका शरीर स्वस्थ हो, भाग्य प्रबल हो, सन्तान एवं पत्नी का पूर्ण सुख हो तथा आय के उचित साधन हों, जिससे गृहस्थी सुख-सुविधा पूर्ण जीवन व्यतीत कर सकें। इस प्रकार, पुत्र, पत्नी, विलासमय जीवन, आय, भाग्योदय आदि के अलग-अलग कारक ग्रह हैं और इस समस्त ग्रहों का उचित अनुपात ही मानव-जीवन की श्रेष्ठता के लिए आवश्यक है, इनमें से एक भी ग्रह की दुर्बलता मानव-जीवन की अपूर्णता ही कही जायेगी।
ऐसी स्थिति में अक्षम ग्रह की प्रबलता के लिए उसके अनुकूल रत्न धारण किया जाता है। उस ग्रह से सम्बन्धित रत्न धारण करने से उससे सम्बन्धित जो वस्तुएं या कारण हैं, उनकी वृद्धि व्यक्ति के जीवन में सम्भव हो जाती हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विशिष्ट रत्नों में ग्रहों की ऊर्जावान रश्मियों को आकर्षित करने की शक्ति होती हैं। जिससे ग्रहों का प्रभाव रत्नों के सामंजस्य से जातक को अनुकूलता प्रदान करती हैं।
किसी भी रत्न का पूर्ण प्रभाव तभी होता है। जब वह वैदिक मंत्रों द्वारा विधि विधान के साथ प्राण प्रतिष्ठित हो। बिना चैतन्य किये रत्न का प्रभाव सामान्य पत्थर की तरह ही रहता है। मंत्रों द्वारा प्राण प्रतिष्ठित चेतना युक्त होने पर वह साधक के अनुकूल स्थितियां निर्मित करने में सक्षम होता है।
यह मूलतः हल्दी, केशर, नीबू के छिलके, स्वर्ण और सफेद (पीली झाई के साथ) रंगो में पाई जाती है। यह रत्न चिकना, पारदर्शी होता है, पुखराज का स्वामी ग्रह बृहस्पति है, इसलिए पुखराज धारण करने वाले व्यक्ति को गुरू की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
जिन्हें शनि का ढैय्या अथवा शनि की साढे़ साती हो, राहु की वक्री तथा गुरु नीच का बना हो। पुखराज धारण करने से इस प्रकार के सभी दोष समाप्त हो जाते हैं और बल, बुद्धि, आयु, स्वास्थ्य, यश, कीर्ति व तनाव रहित जीवन की प्राप्ति होती है। विवाह में आ रही अड़चनों, बाधाओं में अनुकूलता मिलती है।
पति-पत्नी के मध्य अकारण तनाव, नौकरीपेशा, बुद्धिजीवी, व्यवसायियों को आर्थिक रूप से प्रगति की ओर अग्रसर करता है। पाप-विचारों एवं आलस्य में क्षीणता आती है तथा शुभ एवं आध्यात्मिक विचार प्रबल होते हैं, चित्त में शांति बढ़ती है।
पीलिया, एकांतिक ज्वर, तिल्ली, गुर्दा, लीवर, जोड़ों का दर्द, बवासीर, अस्थमा, पेट सम्बन्धी बीमारी को दूर करने में समर्थ। धनु और मीन राशि के व्यक्ति को अतिशीघ्र पुखराज धारण करना चाहिए।
कम से कम तीन रत्ति पुखराज को गुरूवार के दिन धारण करने से पूर्व ‘ऊँ ऐं श्रीं बृहस्पतये नमः’ का 51 बार जप करें।
सूर्य रत्न माणिक्य, यह तीन प्रकार के पत्थरों से उत्पन्न होता है, सौगन्धिक पत्थर से उत्पन्न माणिक भ्रमर के रंग के समान होता है, जिसकी चमक प्रखर होती है। कुरूविन्द पत्थर से उत्पन्न माणिक शुक्ल-कृष्ण मिश्रित, मन्द कान्ति और विधि वर्णयुक्त, अद्भुत कान्तिवान और विशुद्ध रूप में होता है। माणिक्य कई रंगों में पाया जाता है। लाल, रक्त कमलवत् सिन्दूरी, सिंगरिफ तथा वीरबहूटी आदि। यह स्निग्ध, कांतियुक्त, चमकीला और भारी होता है।
माणिक्य को सूर्य मणि भी कहा जाता है। यह रत्न भगवान सूर्य को समर्पित है और सूर्य को कालपुरूष की आत्मा कहा जाता है। यदि जन्म कुण्डली में सूर्य की स्थिति ठीक नहीं है। तो जातक में निराशा का भाव आता है। आत्मबल में कमी आती है। जिस कारण वह सफलता की ओर अग्रसर नहीं हो पाता। माणिक्य रत्न धारण करने से सूर्य प्रबल होता है। जिससे जातक के मान-सम्मान प्रतिष्ठा की वृद्धि होती है। नेतृत्व क्षमता का विकास के साथ राजनीतिज्ञ लाभ प्राप्त कर राजयोग का फल भोगता है। गृह क्लेश निवारण, रोजगार प्राप्ति, मुकदमें में विजय की प्राप्ति, घर-परिवार में सुस्थितियां निर्मित होती हैं जिससे प्रेममय वातावरण का निर्माण होता है और संतान सुख के साथ ही उसका प्रत्येक कार्य सुचारू रूप से संचालित, मान-सम्मान पद-प्रतिष्ठा की वृद्धि होती है।
नेत्र रोग, लीवर, स्नायु तथा मेरूदंड, सिर दर्द तथा समस्त प्रकार के मानसिक रोग, बदहजमी, क्षय, ज्वर, अतिसार, मंदाग्नि आदि रोगों में मंत्र चैतन्य संस्कारित माणिक्य धारण करने से लाभ प्राप्त होता है।
इसे धारण करने से सुख-संपत्ति, धन-धान्य की प्राप्ति होती है। इसके प्रयोग से पुत्री के विवाह का चिंता, श्रेष्ठ रोजगार की प्राप्ति, व्यापार की वृद्धि होती है। यह जीवन की समस्याओं को दूर कर उज्जवल भविष्य का निर्माण करने में सहायक होता है।
माणिक्य जितना ही बड़ा हो श्रेष्ठ होता है। तीन रत्ती से अधिक माणिक प्रभावशाली होता है। रविवार के दिन ऊँ ह्रीं हं सः सूर्याय नमः मंत्र का 10 मिनट जप कर धारण कर लें।
चन्द्र ग्रह इसका स्वामी है। यद्यपि मोती कई रंगों से युक्त चिकना, निर्मल, कांतियुक्त, कोमल और सुडौल होते हैं। किसी-किसी मोती में बाल के बराबर छिद्र भी पाया जाता है। ऐसा मोती दोषी नहीं कहा जाता। गज मुक्तक, सर्पमुक्तक, वशं मुक्तक, शंखमुक्ता, शूकर मुक्तक, मीन मुक्तक, आकाश मुक्तक, मेघ मुक्तक, सीप मुक्तक आदि प्रकार के मोती पाये जाते हैं।
चन्द्र रत्न धारण करने से सभी प्रकार की क्लेश का नाश और आनन्द की प्राप्ति होती है साथ ही अटूट संपत्ति, कर्ज से मुक्ति, विवाह बाधा निवारण, शत्रु शमन, मनोकामना पूर्ति, मोती धारण करने से व्यक्ति के पूर्व जन्म के पाप-दोष और कलिष्ट रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है। ज्ञान वृद्धि तथा निर्बलता को दूर कर पौरूषता की प्राप्ति होती है। जिनकी जन्म कुण्डली में राहु और मंगल दोष हो उसे अवश्य ही मोती धारण करना चाहिए।
पथरी रोग में मोती की भस्म शहद के साथ ली जाये, तो तुरन्त प्रभाव करती है। बवासीर और जोड़ो के दर्द में विशेष लाभ मिलता है। पेट रोग, मुख रोग, त्वचा रोग, ज्वर, पायरिया, दन्त रोग, ब्लडप्रेशर आदि रोगों का समाधान हो जाता है। गुरूवार को प्रातः ऊँ सौं सोमाय नमः मंत्र का 5 मिनट जप कर धारण करें ।
मूंगा का स्वामी मंगल है। मूंगा लाल, सिंदूरी, हिंगुले जैसा और गेरूआ रंग में पाया जाता है। यह इतना चिकना और चमकदार होता है।
मूंगा धारण करने से नवग्रहों से सम्बन्धित समस्त दोष समाप्त हो जाते हैं। मंगल ग्रह के अस्त या प्रभावहीन होने पर मूंगा धारण करना अत्यन्त आवश्यक है। यदि जन्मकुण्डली में मंगल, राहू या शनि के साथ कहीं भी स्थित हों, शत्रु बाधा का भय से मुक्ति मिलती है। मूंगा व्यापार, नौकरी, आरोग्यता, वंशवृद्धि, अकाल मृत्यु बाधा निवारण आदि में सहायक होता है। भूत-प्रेत बाधा का शमन के साथ ही श्रेष्ठ जीवन की प्राप्ति होती है।
रक्त विकार, मंदाग्नि, ब्लडप्रेशर, पीलिया, पेट का दर्द, कमजोरी, मिर्गी, हृदय रोग, वात रोग आदि विकार में मूंगा धारण करने से तुरंत लाभ दायक होता है। गले में धारण करने से पूर्व ‘भौं भौमाय नमः’ मंत्र का एक माला जप करना चाहिये।
पन्ना बुध ग्रह का रत्न है। इसका रंग हरे पानी के रंग जैसा, सरेस के पुष्प के रंग जैसा, मयूर पंख जैसा। पन्ना हृदय से कोमल होता है और इसके अंग-प्रत्यंग नरम होता है। यह चिकना साफ पारदर्शी, तेजस्वी चमक, अन्य पत्थरों की अपेक्षा यह कोमल होता है।
इसको धारण करने से चित्त की विकलता मिटती है। विद्यार्थी यदि पन्ना पहिने तो बुद्धि तीक्ष्ण होती है व एकाग्रता की वृद्धि, उच्च सफलता की प्राप्ति होती है, कुसंस्कारी संतान में संस्कार की वृद्धि होती है। जिस घर में यह रत्न है वहां अन्न की कमी नही होती है। और धन-धान्य के साथ सौभाग्य की वृद्धि होती है। सुयोग्य संतान वृद्धि, भूत-प्रेत-बाधा शान्त तथा काल सर्प दोष से मुक्ति, शत्रुओं पर विजय की प्राप्ति होती है। शत्रुओं द्वारा रचा गया षड़यंत्र का निराकरण होता है। जो भी स्त्री-पुरूष हाथ में पन्ना धारण करते हैं। उन पर जादू-टोना का असर नहीं होता है। मिथुन कन्या राशि के लिए पन्ना धारण करना सर्वोत्तम है। व्यापार, वाणिज्य कार्य, एकाउन्टेन्ट, बैंक सम्बन्धित कार्य करने वालो को आकस्मिक धन की प्राप्ति होती है। अत्यन्त शुभ धन लाभ प्राप्त होता है।
पथरी, आधा सीसी, बवासीर, ज्वर, गुर्दा, रक्त रोगों में विशेष फलदायी। बल-बुद्धि एवं वीर्य वर्द्धक में लाभ प्राप्त होता है। किसी बुधवार के दिन 2 माला निम्न मंत्र का जाप कर धारण करें। ऊँ ह्नां ह्लीं बुं ग्रहनाथ बुधाय नमः
नीलम शनिदेव का प्रधान रत्न है। इसका रंग नीला व चमकीला होता है। पारदर्शी होने के साथ ही इसका पानी सर्वश्रेष्ठ होता है तथा यह सुडौल होता है।
समस्त रत्नों में नीलम ही एक ऐसा रत्न है जो शीघ्र ही कुछ ही घंटों में अपना असर दिखाता है, जन्म लग्न से या चन्द्र से शनि बारहवाँ, जन्म का और दूसरा होता है, तो इसे पूरे समय को साढे़साती कहा जाता है। शनि एक राशि पर ढ़ाई वर्ष तक रहता है। इस प्रकार तीन राशियों पर उसका भ्रमण साढ़े सात वर्ष का होता है। यदि किसी पर साढे़साती का प्रभाव हो तो उसकी अवस्था दयनीय होती है। शनि के कुप्रभाव से व्यक्ति का जीवन छिन्न-भिन्न हो जाता है। नीलम धारण करने से गृह क्लेश निवारण, आज्ञाकारी संतान, तंत्र दोष से मुक्ति, कठिनाईयों, परेशानियों से जीवन का बचाव होता है। और सुख-सौभाग्य की वृद्धि होती है। किसी भी ग्रह की महादशा में शनि की अन्तर्दशा चल रही हो तो नीलम अवश्य धारण करें।
आंखों के रोग, धुन्ध, जाला, पानी गिरना, मोतिया, पागलपन, खांसी, उल्टी, रक्त विकार, विषम ज्वर आदि रोगों में लाभ प्राप्त होता है।
शनिवार के दिन मंत्र का जप कर किसी शनि मंदिर में एक पांव काला तिल अर्पित करें पश्चात् नीलम को धारण कर लें।
प्राप्त करना अनिवार्य है गुरु दीक्षा किसी भी साधना को करने या किसी अन्य दीक्षा लेने से पहले पूज्य गुरुदेव से। कृपया संपर्क करें कैलाश सिद्धाश्रम, जोधपुर पूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन से संपन्न कर सकते हैं - ईमेल , Whatsapp, फ़ोन or सन्देश भेजे अभिषेक-ऊर्जावान और मंत्र-पवित्र साधना सामग्री और आगे मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए,