देवी के मूल स्वरूप वैष्णवी का पवित्र धाम, वर्तमान समय में त्रिकूट नामक चोटियों से निकलने वाली चरणगंगा की घाटी में स्थित है। इस घाटी में हरियाली से ओत-प्रोत जंगल, श्वेत हिमाच्छादित पर्वत श्रृंग, मुग्धा स्वर में गुंजरित निर्झरणी, कलरव करते पक्षियों से मन आनन्दित हो जाता है। ऐसे दिव्य स्थान पर देवी ने चरणगंगा के उद्गम स्थान पर स्थित गुफा में अपने तीन प्रतीक स्वरूपों महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के रूप में स्वयं को प्रतिष्ठित किया।
इन तीनों स्वरूपों की प्रतीक रूप गुफा में तीन पिण्डियां हैं। इन तीनों पिण्डियों में दक्षिण भाग में ‘महासरस्वती’ मध्य में ‘महालक्ष्मी’ तथा वाम भाग में ‘महाकाली’ जिन्हें वैष्णवी के रूप में पूजते हैं। अपने मूल रूप में ये पिण्डियां भी एक ही हैं, किन्तु देवी के त्रिविध रूपों के कारण ये भी सात्विक, राजसिक व तामसिक भेद से अलग-अलग हो गई हैं, अस्तु। महासरस्वती का ‘श्वेत वर्णीय’ है महालक्ष्मी का पिण्ड ‘रक्तवर्णीय’ है और महाकाली का पिण्ड कृष्ण वर्णीय’ है। गणेश, हनुमान, भैरव और सिंह वैष्णो देवी के प्रमुख गण हैं।
पवित्र गुफा में वास करने वाली वैष्णवी देवी ने अपने भक्तों पर विपत्ति आने पर समयानुसार विभिन्न रूप धारण कर पतितों का नाश किया। युग बदलते रहते हैं और वैष्णवी माँ समय-समय पर अपनी लीला द्वारा भक्तों को कृतार्थ करती रहती हैं।
लोक कथाओं में वर्णन आता है, कि त्रेता युग में महाशक्तियों की इच्छानुसार एक दिव्य कन्या ने ‘रत्नाकर सागर’ के घर जन्म लिया, जिसका नाम रत्नाकर ने ‘त्रिकुटा’ रखा। अपने पिता की अनुमति से त्रिकुटा समुद्र तट पर जाकर कठोर तपस्या करने लगी। रावण पर विजय प्राप्त करने के लिए जब भगवान राम सागर तट पर आयें, तब उन्होंने तपस्यारत त्रिकुटा से उसके तप का प्रयोजन पूछा। तब त्रिकुटा ने अपना परिचय दिया और उनको पति रूप में पाने की इच्छा व्यक्त की। राम ने त्रिकूटा से कहा – ‘मैंने एक पत्नी व्रत धारण करने का निश्चय किया है, फिर भी कुछ समयोपरान्त मैं वेश बदल कर तुम्हारे पास आऊंगा, यदि तुमने मुझे पहिचान लिया, तो मैं तुम्हारा पाणिग्रहण कर लूंगा।’
अयोध्या लौटते समय एक वृद्ध का रूप धारण कर राम त्रिकुटा के पास गये, किन्तु वह उन्हें पहिचान न सकी। फिर भी राम ने उसे आशीर्वाद देते हुए कहा – तुम कल्कि अवतार के समय मेरी सहचरी बनोगी, अतः तब तक तुम शत् श्रृंग पर्वत की एक गुफा में तपस्यारत रहो। समस्त पृथ्वी पर तुम ‘वैष्णवी’ नाम से प्रसिद्ध होओगी’ मानव संसार में सुख और शांति से जीना चाहता है, अतः इस संसार के भौतिक और दैविक विघ्नों के विनाश के लिए भगवती की आराधना आवश्यक है। यह जीवन कामना परक जीवन है और कामना सिद्धि के लिये त्रि-पिण्ड वैष्णवो देवी चैतन्य दिवस से बढ़कर कोई श्रेष्ठ मुहूर्त नहीं है। दुर्गा शक्ति तो मां भगवती आद्या शक्ति है जिनका तो पूजन, अर्चन हमें निरन्तर करना हैं मां का आशीर्वाद साधक को निरन्तर चाहिये, यायावर साधक ही जीवन में उच्चता और श्रेष्ठता की गतिशीलता को प्राप्त कर सकते है। क्योंकि उनमें कुछ दिव्यता को प्राप्त करने की ललक होती है। साथ ही अपने जीवन में कामनाओं की पूर्ति हेतु माता वैष्णों देवी के दर्शन करने की ललक होती है।
श्रेष्ठमय अवसर और तेजमय सद्गुरु का सानिध्य हो तो पूजा-अर्चना, ध्यान साधना, स्नान-दान, तपयुक्त धार्मिक यात्रा का कोटि-कोटि अक्षुण्ण लाभ साधक को जीवन में मिलता ही है क्योंकि साधक अपने जीवन को सुस्थिति में निर्मित करना चाहता है। साथ ही गुरु का कर्त्तव्य हो जाता है कि वह अपने शिष्य के जीवन की दीनता और सड़ी गली स्थितियों से निजात दिला सके। साधक अपने जीवन के मनोरथों को पूर्णरूपेण प्राप्त करने के लिए माता वैष्णों देवी की भक्ति व आराधना ही मनोरथों को पूर्ण करने की शक्ति अवश्य ही करता है। जीवन में अनेक विपत्तियों के समाधान में शक्ति स्वरूपा वैष्णों देवी ही पूर्णरूपेण सहायक होती है। इसी हेतु सद्गुरुदेव के सानिध्य में माता वैष्णों देवी की यात्रा कर त्रि-शक्ति को पूर्णरूपेण आत्मसात करने की क्रिया संपन्न की जा सकेगी।
प्राप्त करना अनिवार्य है गुरु दीक्षा किसी भी साधना को करने या किसी अन्य दीक्षा लेने से पहले पूज्य गुरुदेव से। कृपया संपर्क करें कैलाश सिद्धाश्रम, जोधपुर पूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन से संपन्न कर सकते हैं - ईमेल , Whatsapp, फ़ोन or सन्देश भेजे अभिषेक-ऊर्जावान और मंत्र-पवित्र साधना सामग्री और आगे मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए,