शनि को ज्योतिष में ‘‘विच्छेदात्मक ग्रह’’ माना गया है। जहाँ एक और शनि मृत्यु प्रधान ग्रह माना गया है, वहीं शनि दूसरी ओर शुभ होने पर भौतिक जीवन में श्रेष्ठता भी देता है।
शनि सर्वाधिक मैलाफाइड, अकस्मात, कुप्रभाव देने वाला ग्रह माना जाता है, अतः भय तो सहज स्वाभाविक है। यह असमय-मृत्यु, अकाल मृत्यु, रोग, भिन्न-भिन्न कष्ट, व्यवसाय हानि, अपमान, धोखा, द्वेष, ईर्ष्या का कारण माना जाता है, पर वास्तविकता यह नहीं है, सूर्य पुत्र शनि हानिकारक न होकर लाभदायक भी सिद्ध होता है, क्योंकि
शनि अशुभ होने पर स्वार्थी, धूर्त, कपटी, दुष्ट, आलसी, मंदबुद्धि, उद्योग से मुंह मोड़ने वाला, नीच कर्म लिप्त, अविश्वास करने वाला, ईर्ष्यालु, विचित्र मनोवृत्ति युक्त, असंतोषी, दुराचारी, दूसरों की अलोचना करने वाला, विभत्स बोलने वाला, अपने को श्रेष्ठ मानना पसन्द करता है, वह दम्भी, झूठा और दरिद्री होता है, ऐसा व्यक्ति व्यर्थ इधर-उधर घूमना पसन्द करता है, ऐसा व्यक्ति आजीवन विपत्तियों से घिरा रहता है।
ज्योतिषीय विवेचना के अनुसार शनि की साढे़ साती जातक के पैरों में पीड़ा पहुँचाती है, मस्तिष्क विकृत एवं सिर दर्द, धन-धान्य, सम्पति का नाश, सन्तान को कष्ट, स्वयं को व्याभिचारी व कुमार्गी बना अपमानित करती है।
इस प्रकार शनि की साढ़े साती दशा के कारण ही मानव-मन में यह भ्रांति उत्पन्न हो गई है, शनि केवल हानिकारक, अमंगलकारी एवं विघनकारी ही होता है। शनि ग्रह की शांति के लिये जब यह ग्रह प्रतिकूल फल दे रहा हो अथवा शनि की साढ़े साती इत्यादि अवधियों में व्यक्ति को ग्रह शांति हेतु मंत्र जप अवश्य करना चाहिये।
समस्त ग्रहों में शनिदेव ही ऐसे ग्रह है, जो अत्यन्त क्रोधी होते हुए भी अत्यन्त दयालु कहे गये है। इनके विषय में कहा गया है, कि जब ये किसी पर क्रोधित होते है, तो उसका सर्वनाश कर डालते है। इसी प्रकार जब ये किसी से प्रसन्न होते है, तो रंक को भी राजा बना देते है।
शनि सर्वदा प्रभु भक्तों को अभय दान देते हैं और उनकी हर प्रकार से रक्षा करते हैं। शनि समस्त सिद्धियों के दाता है। साधना, उपासना द्वारा सहज ही प्रसन्न होते है और अपने भक्तों की समस्त कामनाओं को पूरा करते हैं।
शनि के दुष्प्रभाव
शनि का दुष्प्रभाव ही भीषण होता है, और कुछ दुष्प्रभाव विशेष रूप से इस प्रकार है-
अच्छे खांसे चलते हुये व्यापार में अचानक भयंकर घाटा हो जाना।
कर सम्बन्धी कोई गम्भीर प्रभाव आ जाना अर्थात् किसी सरकारी कर विभाग द्वारा गम्भीर जांच और उसके कारण से बड़ी परेशानी।
घर या व्यापार स्थल पर आग अथवा ऐसा कोई दुष्प्रभाव होना, जिससे कार्य पूरी तरह नष्ट हो जाये। प्रतिष्ठा को पूरी तरह से कलंक लग जाना।
परिवार के किसी प्रमुख सदस्य की आकस्मिक दुर्घटना अथवा अचानक किसी गम्भीर बीमारी का विकार हो जाना।
अचानक मुकदमेबाजी हो जाना। ऐसा कोई निर्णय ले लेना, जो कि जीवन को गलत दिशा में मोड़ दें।
किसी मित्र अथवा नौकर द्वारा विश्वासघात।
प्रत्येक व्यक्ति, जो इस ग्रह-दोष से पीड़ित एवं दुःखी हो, उसे दिनांक 27 मई 2025 ‘‘शनि जयंती’’ के दिन या फिर किसी भी शनिवार के दिन ‘‘शनैश्चरी प्रयोग’’ को अवश्य ही सम्पन्न करना चाहिये, क्योंकि इसे सम्पन्न करने पर शनि का उस पर अशुभ प्रभाव नहीं पड़ता।
शनैश्चरी प्रयोग शनि के कुप्रभाव को दूर करने वाला एक अत्यन्त ही गोपनीय प्रयोग है। इस प्रयोग को सम्पन्न करने पर शनि की समस्त महादशा व अन्तर्दशाएं शांत होने लग जाती है, जिससे उसका कोई अहित नहीं होता।
दिना विधान
करन्यासी
शनि के लिए अंगूठा ऊपर।
धीमी गति से चलने वाली तर्जनी को ओमे।
ॐ अधोक्षजया मध्यमा उँगलियाँ।
ॐ कृष्णांगाय नमः.
निचली भुजाओं पर 'ॐ शुशकोदाराय नमः'।
छाया को ओम-माजा, हथेली, हाथ और पीठ।
हार्दिक
शनि के हृदय में ओम।
धीमी गति के लिए सिर पर स्वाहा।
अधोक्षजया शिखायै वशात्
निचली भुजाओं पर ॐ शुशकोड़ाराय नमः।
छाया-जनित, हथेली, हाथ और पीठ को ओम।
हृदयदिन्यसा
शनि के हृदय में ओम।
धीमी गति के लिए सिर पर स्वाहा।
अधोक्षजया शिखायै वशात्।
हे शुष्क उदर वाले, हे त्रिनेत्र वाले, मैं आपको प्रणाम करता हूँ।
छाया-जनित हथियार को फाट।
पिंगला वभ्रु कौन में है और कृष्ण यम का भयानक संहारक है
सौरि शनि धीरे-धीरे चलता है और पिप्लादा द्वारा इसकी प्रशंसा की जाती है
जो व्यक्ति प्रातःकाल उठकर इन दस नामों का उच्चारण करता है,
शनि से होने वाली पीड़ा कभी नहीं होगी
हिन्दी में इस शनि स्त्रोत का पाठ किया जा सकता है-
जो भी व्यक्ति प्रातःकाल इन दस नामों का जप करता है, शनि उसे पीड़ा नहीं देते। इसे ग्यारह बार पढ़ना चाहिए।
नीला घुटी, भालाधारी किरौती, गिद्ध पर खड़ा, धनुषधारी को डराता हुआ।
मैं चतुर्भुज, शान्त सारथी सूर्य को नमस्कार करता हूँ, जो सदैव श्रेष्ठतम की कामनाओं को पूर्ण करते हैं।
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