तुम माया से जितना कटोगे, उतना ही तुम प्रकृति से जुड़ोगे और उतनी ही गहरी प्रकृति से जुड़ोगे तुम साधक बन सकोगे, क्योंकि प्रकृति को साधक ने कहा है।
तुम कह रहे हो कि हम शिष्य है तो साधक के आगे की अवस्था शिष्यता है। शिष्यता प्राप्त करने के लिए चढ़ाई करना अनिवार्य है क्योंकि जब ठोकर लगेगी तभी तुम मोह अनिद्रा से जागोगे।
ईश्वर कभी जीवन में ठोकर लगे, मैं तो ऐसा चाहता हूँ कि जल्दी ही लगे। ऐसा कोई एहसास हो सकता है कि जीवन का कुछ उद्देश्य, कुछ लक्ष्य है, तुम उस उद्देश्य के पथ पर गति हो सको।
यदि कोई गुरू आपके सामने हाथ जोड़ेगा, गिरगिड़ाएगा तो वह गुरू नहीं बन सकता क्योंकि गुरु का मतलब ही यह है कि वह विजिटर हिटये।
स्थूल जगत में जो कुछ हम देखना चाहते हैं और जो कुछ हम देखते हैं और जिनको देखने से हमें दीप्ति होती है, वह क्षणिक क्षण है।
भीतर जो कुछ दुर्गन्ध है, उसे करने की क्रिया को कुण्डिलिनी कहते हैं। भीतर जो कुछ गुप्त अवस्था में है उसकी दुनिया की क्रिया को कुण्डिलिन जागरण कहते हैं।
आंतरिक जीवन के आनंद को प्रदान करने की क्रिया को ही ध्यान कहते हैं, साधना कहते हैं, समाधि कहते हैं।
साधक आप पूरी तरह से नहीं पहुंच सकते। इसके लिए यह जरूरी है कि उसका पास समर्थ और सक्षम गुरु हो, इसके लिए जरूरी है कि वह गुरु की पहचान हो, इसके लिए जरूरी है कि उस शिष्य में पूर्ण आत्म समर्पण हो और इससे भी ज्यादा जरूरी है कि शिष्य अपने आप को पूर्ण रूप में से मिटा दे।
प्राप्त करना अनिवार्य है गुरु दीक्षा किसी भी साधना को करने या किसी अन्य दीक्षा लेने से पहले पूज्य गुरुदेव से। कृपया संपर्क करें कैलाश सिद्धाश्रम, जोधपुर पूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन से संपन्न कर सकते हैं - ईमेल , Whatsapp, फ़ोन or सन्देश भेजे अभिषेक-ऊर्जावान और मंत्र-पवित्र साधना सामग्री और आगे मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए,